बिहार इंटरमीडिएट परीक्षा परिणाम : टाइट एक्जाम तो ठीक है, पढ़ाई कब टाइट होगी शिक्षा मंत्री जी?

पुष्यमित्र बिहार के इंटरमीडिएट के रिजल्ट्स एक बार फिर से चर्चा में हैं और अलग वजहों से हैं. बिहार के रिजल्ट्स हमेशा अलग वजहों से ही चर्चा में होते हैं. पिछले के पिछले साल जहां परीक्षा केंद्र में चमगादड़ की तरह लटके परिजनों की तसवीरें दुनिया भर में नजर आयीं, तो पिछले साल टॉपर ऑन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 30, 2017 4:56 PM

पुष्यमित्र

बिहार के इंटरमीडिएट के रिजल्ट्स एक बार फिर से चर्चा में हैं और अलग वजहों से हैं. बिहार के रिजल्ट्स हमेशा अलग वजहों से ही चर्चा में होते हैं. पिछले के पिछले साल जहां परीक्षा केंद्र में चमगादड़ की तरह लटके परिजनों की तसवीरें दुनिया भर में नजर आयीं, तो पिछले साल टॉपर ऑन कैमरा अपना विषय प्रोडिगल साइंस बताती हुई दिखीं. बहरहाल इस बार वजहें अलग हैं. टॉपर दुरुस्त हैं, शिक्षा माफियाओं पर नकेल कस ली गयी, इस बार कोई फरजी छात्र टॉप तो क्या संभवतः पास भी नहीं हुआ होगा. मगर उच्च शिक्षा विभाग ही फेल हो गया. साइंस में 30 फीसदी और आर्ट्स में 37 फीसदी बच्चे ही पास हो सके.

दिलचस्प बात यह है कि हमारे शिक्षा मंत्री अपनी ही पीठ थपथपाते हुए नजर आये कि देखा, रिजल्ट अच्छा हुआ है, पढ़ने वाले ही पास हो पाये हैं. उनका आशय शायद यह था कि देखा, हमने कदाचार मुक्त परीक्षा आयोजित करवा के दिखा दी. वे इसे अपनी उपलब्धि की तरह दिखाना चाहते थे. मगर वे भूल गये कि शिक्षा विभाग का काम सिर्फ कदाचार मुक्त परीक्षा ही आयोजित करवाना नहीं है, साल भर स्कूलों में बेहतर शैक्षणिक माहौल भी उपलब्ध कराना है ताकि बच्चे ठीक से पढ़ाई कर सकें और परीक्षाओं में पास होने की काबिलियत हासिल कर सकें. परीक्षाओं में सिर्फ बच्चा फेल नहीं होता, उसका स्कूल भी फेल होता है, उसके शिक्षक भी फेल होते हैं, उनकी साल भर की मेहनत भी फेल होती है. ऐसे में 12 में सेआठ लाख बच्चों का फेल होना सिर्फ उन बच्चों की नहीं बिहार के शिक्षा विभाग की भी विफलता है.

हमारे एक मित्र बिहार के प्लस टू स्कूल में शिक्षक हैं. वे बताते हैं कि बिहार के तीन चौथाई प्लस टू स्कूलों में विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं. प्रयोगशालाएं काम नहीं करतीं. पढाई-लिखाई की व्यवस्था ऐसी है कि बच्चे स्कूल जाने से भी कतराते हैं. उनका ज्यादातर वक्त कोचिंग संस्थाओं में ही बीतता है. बिहार के गांवों से होकर गुजरते वक्त यह देखा जा सकता है कि कैसे कोने-कोने कोचिंग संस्थान खुल गये हैं और उनके सामने साइकिलों की कतारें खड़ी रहती हैं. बच्चों और उनके अभिभावकों को लगता है कि ये कोचिंग वाले ही उनके बच्चों को अच्छे अंकों से पास करा देंगे. मगर इस बार कुकुरमुत्तों की तरह उगआये उन कोचिंग संस्थानों की भी पोल खुल गयी है.

कदाचार और पैरवी के दम पर बच्चों को प्लस टू में पास मार्क्स दिलवाने वाले ये कोचिंग संस्थान इस बार बुरी तरह फेल हो गये हैं, क्योंकि इन फेल हुए बच्चों में उनके यहां पढ़ने वाले बच्चों की भी बड़ी संख्या है.

यह ठीक है कि कदाचार और पैरवी के रोग से बिहार सरकार ने अपने छात्रों को इस बार मुक्त करा लिया. मगर यह कतई पीठ-ठोंकने का मौका नहीं है. अभी सिर्फ विष मुक्ति हुई है. और यह जरूरी काम है. आगे शिक्षा विभाग के सिर पर बड़ा दायित्व है. प्लस टू स्कूलों की लचर व्यवस्था को सुधारना. समय से किताबें उपलब्ध कराना. हर स्कूल में पर्याप्त संख्या में शिक्षक, पढ़ाई का माहौल और प्रायोगिक कक्षाएं शुरू करवाना बड़ा काम है. तभी इस टाइट एक्जाम वाली व्यवस्था में बच्चे पढ़ना सीखेंगे और अच्छे अंक लाकर पास करेंगे.

इस हताश कर देने वाले परीक्षा परिणाम की वजह से जाहिर सी बात है, लाखों घरों में उदासी का माहौल होगा. मगर यह उन बच्चों और उनके अभिभावकों के लिए भी सीखने का मौका है. उन्हें कदाचार, पैरवी और कोचिंग जैसी बैशाखियों का सहारा छोड़ना पड़ेगा. बच्चों को पढ़ाई की तरफ प्रेरित करना पड़ेगा. अंततः वही उनके काम आयेगा. ठीक है यह उदासी का मौका है, मगर इसी उदासी से कोई राह जरूर निकलेगी.

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