बिहार इंटर रिजल्ट : विलाप बंद कीजिये, सबक लीजिये
रजनीश उपाध्याय बिहार का इंटर का रिजल्ट आने के बाद दो-तीन तरह की राय सामने आ रही है. एक तबका रिजल्ट को आधार बना कर मान रहा कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था चौपट हो चुकी है. दूसरी श्रेणी में वे लोग हैं जो मजाक उड़ाते हुए और तंज कसते हुए इसे बिहार की हकीकत बता […]
रजनीश उपाध्याय
बिहार का इंटर का रिजल्ट आने के बाद दो-तीन तरह की राय सामने आ रही है. एक तबका रिजल्ट को आधार बना कर मान रहा कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था चौपट हो चुकी है. दूसरी श्रेणी में वे लोग हैं जो मजाक उड़ाते हुए और तंज कसते हुए इसे बिहार की हकीकत बता रहे हैं. यानी प्रकारांतर से वे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की प्रतिभा पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. इसके लिए बच्चा राय प्रकरण का हवाला भी दिया जा रहा है. वही बच्चा राय, जो मैट्रिक की परीक्षा में पास कराने का ठेका लेते थे, लेकिन टॉप कराने के चक्कर में धरे गए. एक मानस खराब रिजल्ट से उपजे गुस्से का है जो मान रहा है कि कॉपी जांचने में गड़बड़ी हुई.
इंटर साइंस में सिर्फ 30 फीसदी रिजल्ट लोगों को सचमुच चौका रहा है, क्योंकि हम सबने मान रखा है कि मैट्रिक और इंटर का रिजल्ट किसी स्टेट या किसी बच्चे की प्रतिभा या मेधा का प्रकटीकरण होता है. इसीलिए बिहार के रिजल्ट की सीबीएसई या दूसरे राज्य के बोर्ड से तुलना कर निष्कर्ष पर पहुंचने के आदी रहे हैं हम. अभी दो दिन पहले सीबीएसई का रिजल्ट आया है, करीब 82 फीसदी है. पंजाब और उत्तराखंड के रिजल्ट भी ठीक-ठाक रहे हैं.
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लेकिन, स्टेट बोर्ड के रिजल्ट का गणित समझने के लिए थोड़ा पीछे चलिये. एक उम्रदराज व्यक्ति बता रहे थे कि 1972 में केदार पांडेय मुख्यमंत्री थे तो मैट्रिक का रिजल्ट 19 फीसदी हुआ था. कहा जाता है कि उनके कार्यकाल में नकल रुक गयी थी. उत्तरप्रदेश में एक दशक पहले एक मुख्यमंत्री ने भी ऐसा कदम उठाया. रिजल्ट गिरा और जनाक्रोश बढ़ा. दूसरे सीएम आये तो रिजल्ट सुधर गया. लोग भी वाह-वाह करने लगे. बिहार का एक औरदृष्टांत है. 1997 में भी इंटर का रिजल्ट सिर्फ 14 फीसदी था. मैट्रिक में तो इससे भी कम सिर्फ 12 फीसदी.
मुझे लगता है कि बिहार के रिजल्ट ने आईना दिखाया है, न सिर्फ सरकार को बल्कि समाज को भी. नकल की प्रवृत्ति और शिक्षा माफिया सिर्फ बिहार में ही नहीं हैं. पंजाब, यूपी, एमपी कोई अछूता नहीं है. हाँ, बिहार ने नकल पर रोक लगाने का साहस किया. यह बड़ी बात है. जिस नकल को एक तरह से सामाजिक स्वीकृति मिली थी, उसके खिलाफ कदम उठाने का साहस कम बड़ी बात नहीं है. नकल रोकने की मांग को लेकर कोई धरना-प्रदर्शन हुआ है क्या? कितने दलों या संगठनों ने ये साहस किया या अभियान चलाया था?
पहले हम आप मानें की नकल की प्रवृत्ति बिहार के भविष्य के लिए घातक है और यह भी की इसे खत्म करने का मुद्दा समाज की तरफ से उठे. फिर स्कूलों की गुणवत्ता दुरुस्त करने पर बात हो. सरकार पर दबाव बढ़े. इस रिजल्ट का एक संदेश यह भी है कि बिहार सरकार को लफ्फाजी छोड़ बड़ी और ठोस कार्य योजना बनानी होगी. सरकारी शिक्षा व्यवस्था चौपट हुई नहीं, बाजार के दबाव में की गयी. ठेके पर अयोग्य शिक्षक बहाल हुए, सिर्फ बिहार ही नहीं देश के कई राज्यों में. कैसे-कैसे शिक्षकपढ़ा रहे हैं, ये किसी से छुपा नहीं है. अध्यापन के प्रति उनकी निष्ठा कितनी है? उन्हें बहाल किसने किया? जिम्मेवारी तो तय करनी ही होगी, ऊपर से नीचे तक. पिछले चार-पांच साल की प्रथम (प्राथमिक शिक्षा का आकलन करने वाली संस्था) की रपट पढ़िये. हर बार यह रिपोर्ट कहती रही है कि शिक्षा की गुणवत्ता गिर रही. पाचवीं के छात्र दूसरी के गणित हल नहीं कर पाते. शिक्षा महकमे के कर्ता-धर्ता से पूछा जाना चाहिये कि उस रपट के आधार पर आपने क्या किया? यानी रिपोर्ट के मुताबिक अगले कई साल तक मैट्रिक या इंटर का रिजल्ट इसी तरह होगा, यदि तुरंत कदम नहीं उठाया गया तो. जब शराबबंदी पर पूरे शासन-प्रशासन को झोंका जा सकता है तो शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए यह उद्यम क्यों नहीं हो सकता?
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सवाल यह भी पूछा जाना चाहिए की सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा में दिल्ली के सरकारी स्कूलों का रिजल्ट लगातार दूसरे साल कैसे सुधर गया?
.. तो फिर रास्ता क्या है? रास्ता है शून्य से शुरुआत. रिजल्ट पर स्यापा बंद होना चाहिये. रिजल्ट को बिहार की मेधा से जोड़कर भी देखना बंद करना होगा. यदि बिहार में पढ़ाकू नहीं होते तो आईआईटी में इतने लड़के कहाँ से चयनित हो जाते? गया का पटवा टोली का उदाहरण सामने है, जहां हर साल बड़ी संख्या में कमजोर तबके से आने वाले बच्चे इंजीनियरिंग में सफल होते हैं.
यदि बच्चा राय प्रसंग से उपजे अपमान बोध की पृष्ठभूमि और ठेके पर रखे गए शिक्षकों द्वारा जांची गयी कॉपी के बावजूद 30 फीसदी पास हुए तो इसे रेखांकित किया जाना चाहिए. एक सूचना यह भी आ रही कि इस बार कॉपी की जाँच मिडल स्कूल के शिक्षकों ने की. यदि यह सही है तो फिर तुरंत जाँच हो. रिजल्ट का स्कूलवार विश्लेषण भी होना चाहिए, ताकि पता चले की कमी कहां है.
खराब रिजल्ट ने बिहार को बढ़िया मौका दिया है – अपनी कमजोरी दूर करने का. यह समय सबक लेने का है.