जीवेश रंजन सिंह
बिहार-झारखंड में मैट्रिक व इंटर के रिजल्ट को लेकर दो घटनाएं याद आ गयीं. पत्रकारिता की शुरुआत जमशेदपुर से की थी, वहां उस वक्त एक डीएसइ हुआ करते थे. उनके अॉफिस में शिक्षकों का प्रवेश वर्जित था. कोई आ गया तो पहले पूछते थे कि छुट्टी का आवेदन किसको दे कर आये हैं. फिर स्कूल में पढ़ाई और बच्चों की उपस्थिति की जानकारी लेते थे, फिर उनके काम की बात होती थी.
दूसरी घटना रांची में पत्रकारिता करते हुए सामने आयी. अलग राज्य बन गया था. चतरा में माओवादियों की तूती बोलती थी. अचानक हमारे वहां के प्रतिनिधि ने खबर की कि हंटरगंज के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक की पिटाई कर दी गयी. उन्हें खटिया से बांध कर पीटा गया था और फिर माओवादी ही उन्हें अस्पताल पहुंचा गये थे. किसी शिक्षक की पिटाई की यह पहली खबर थी हमारे लिये. मामले की पड़ताल के दौरान पता चला कि उक्त शिक्षक लगातार स्कूल से गायब रहते थे और मुख्यालय में माअोवादियों की बात कह कर वहां पढ़ाने से इनकार करते थे. घटना के कुछ दिन पहले उस गांव में माओवादियों का दस्ता रुका था उन्हें जब पता चला कि उक्त स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रही और कारणों का खुलासा होने पर उन लोगों ने उक्त शिक्षक की पिटाई की साथ ही यह भी कहा कि वो अगर पढ़ाने नहीं आया तो उसको और कड़ी सजा दी जायेगी.
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आज के संदर्भ में ये बातें याद आ रही. आज रिजल्ट को लेकर घमसान है. तू काला, मैं गोरा की लड़ाई जारी है. बैठे-बिठाये उजर बग-बग जामा (पजामा-कुरता) पहननेवालों को भी एक मौका मिल गया है. कोई न कोई चैनल वाला बुला ही ले रहा. चैनल न सही कोई न कोई पुराना जानपहचान वाला कलमखिसू पत्रकार तो बात सुन ही ले रहा. सब भिड़े हुए हैं एक-दूसरे की खिंचाई में. पर कहीं कोई ऐसी कहानी नहीं आ रही कि फलां रात-दिन एक कर पढ़नेवाला बच्चा आज डिप्रेशन का शिकार हो गया है. फलां विधवा मां बेटी के फेल हो जाने के गम में घर के किसी कोठरी में पड़ी है.
क्यों नहीं दोनों ही राज्य में कोई इस बात को कहने को तैयार है कि ऐसी स्थिति नहीं हो इसके लिए उसने साल भर कोशिश की. क्यों नहीं कोशिशों की लिस्ट सामने रखने के साथ यह बता रहा कि इस प्रयास में जिसने भी सकारात्मक तरीके से साथ नहीं दिया, उन पर कार्रवाई हुई और अब जब कि अधिकतर का एक वर्ष बरबाद हो गया है, तो किसी जवाबदेह पर क्या कार्रवाई होगी.
खत्म हुई शिक्षादान की परंपरा
कार्रवाई की चर्चा कुछ दिन होगी, पर होगा कुछ नहीं. कारण कि अब शिक्षा दान की परंपरा नहीं रही अब शिक्षा खरीदने की प्रथा चल रही है. गुरु-शिष्य की परंपरा से बाहर निकल अब शिक्षा का भी प्रबंधन हो रहा. शायद यही कारण है कि पहले जहां कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों के भरोसे अच्छे अंक और डिग्रियां पा कर बच्चे बाहर निकलते थे, वहीं अब पदाधिकारियों की फौज और निकायों के बाद भी रिजल्ट को लेकर कोई आश्वस्त नहीं. अब जितनाबड़ा शैक्षणिक संस्थान, उतना बड़ा ट्यूशन या कोचिंग की जरूरत हो गयी है. पर इस पर कोई मंथन नहीं.
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स्कूल बन गये भवन
झारखंड में दसवीं का रिजल्ट हो और एक से 10 के बीच नेतरहाट आवासीय विद्यालय के बच्चों का दबदबा न हो यह नहीं हो सकता था, इस बार यह भी नहीं हुआ. सबको पता है कि नेतरहाट के स्कूल की क्या दशा है, पर पूरे वर्ष इस पर कोई चर्चा नहीं हुई. सरकारी स्कूलों के नाम पर बिहार-झारखंड में एक से बढ़ कर एक भवन बन गये, पर वो भवन शिक्षा का मंदिर नहीं बन पाये. पढ़ाई नहीं हो रही. दोपहर में भोजन के वक्त, साल में एक बार स्कूल ड्रेस और साइकिल के पैसे के लिए स्कूल के भवन गुलजार रहते हैं, दो वर्ष पहले तो भागलपुर के कई इलाकों में शिक्षकों की इसलिए पिटाई भी की गयी बच्चों और उनके माता-पिता द्वारा क्योंकि उनके बच्चों को ड्रेस के 2500 रुपये और साइकिल के पैसे नहीं मिले थे. पता चला कि वो बच्चे स्कूल नहीं आते थे सिर्फ पैसे के लिए नाम लिखवाया था. कई जगह तो उस पैसे में से कमीशन लेकर बच्चों को पैसे दे भी दिये गये. साइकिल की राशि के लिए कई साइकिल दुकानों ने तो कुछ पैसे लेकर फरजी रसीद देना भी शुरू कर दिया था.
पारा शिक्षक के नाम पर घपला
दोनों राज्यों में शिक्षकों की कमी है. इस कमी को दूर करने के लिए पारा शिक्षकों की बहाली हुई. पर इन पारा शिक्षकों की बहाली के लिए किस तरह से मारामारी और चढ़ावा है, यह किसी से नहीं छुपा. जिसे अक्षर ज्ञान नहीं उसे भी शिक्षक बना दिया. नेताओं से लेकर दबंगों तक कि इस मामले में चली, पर क्या इस पर कोई मंथन हुआ. कम शिक्षकों व सुविधाओं की कमी का रोना लेकर तो जरूर शिक्षक नेताओं ने भी आंदोलन किया या फिर चेतावनी दी, पर कभी भी स्कूलों में पढाई नहीं होने की चर्चा नहीं कि गयी. मुख्यालय में डेपुटेशन पर रहने के लिए मारामारी जरूर दिखा. गांवों में स्कूलों की निगरानी करनेवाली कमेटियों की भी चिंता कभी नहीं दिखी कि उनके स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रही. खाने में दिक्कत की बात जरूर कही, पर पढ़ाई को लेकर कहीं कोई आंदोलन या शिकायत सामने नहीं आयी.
अब तो चेते सरकार
इस वर्ष के रिजल्ट के बाद एक बार फिर हंगामा है. यह सबको पता है कि यह हंगामा भी हप्ता-दस दिन में खत्म हो जायेगा. पर निदान क्या है. उच्च शिक्षा या कोचिंग के लिए तो बच्चे दूसरे राज्यों में भाग ही रहे, क्या स्कूल की पढ़ाई के लिए भी बच्चों का पलायन कराना चाहते हैं जवाबदेह. अगर नहीं तो आज ही चेतें. चाहे कितना भी पावरफुल क्यों न हो, नहीं पढ़ानेवाला बाहर जायें, तभी साल के अंत में इस जलालत से निजात मिलने की उम्मीद है.