महिलाओं का स्वास्थ्य एक ऐसा मुद्दा है जो हमेशा से उपेक्षित रहा है. भारतीय समाज में महिलाएं ना तो अपने खान-पान पर ध्यान देती हैं और ना ही बीमारियों पर. घर के सभी सदस्यों को खिलाकर खाने को अपना धर्म मानने वाले महिलाएं अकसर एनीमिया की शिकार होती हैं. आंकड़े बताते हैं कि लगभग 55 प्रतिशत से भारतीय महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं. वर्ष 2020 में किये गये एक सर्वे के अनुसार भारत में हर 10 में छह महिला एनीमिया की शिकार है.
एनीमिया के कारण महिलाओं को प्रसव संबंधी कई परेशानियां भी होती हैं, कई बार तो प्रसव के दौरान उनकी मौत भी हो जाती है. सरकार की ओर से महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए कई तरह के प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के नवीनतम आंकड़ों से जो तथ्य सामने आ रहे हैं उसे देखकर यह नहीं लगता है कि स्थिति में बहुत बदलाव हुआ है. राष्ट्रीय डाटा तो अभी उपलब्ध नहीं है, लेकिन आंध्र प्रदेश में 15 से 49 साल की 60 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं.
वहीं गर्भवती माताओं में यह आंकड़ा 53.7 प्रतिशत है. बिहार में एनीमिया की शिकार महिलाओं की संख्या 63.5 प्रतिशत हो गयी है. पिछले पांच साल में एनीमिया की शिकार महिलाओं की संख्या तीन प्रतिशत बढ़ गयी है. जबकि बंगाल में यह आंकड़ा 71.4 प्रतिशत हो गया और ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति और भी गंभीर है जहां आंकड़े 74 प्रतिशत को पार गये हैं.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के अनुसार भारत में 53.1 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की शिकार थीं, जिनकी आयु 15 से 49 वर्ष के बीच थी. गर्भवती माताओं में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत था. बंगाल में एनीमिया की शिकार महिलाओं की संख्या 62.5 प्रतिशत से अधिक है जबकि बिहार में यह आंकड़ा 60.3 प्रतिशत था. झारखंड में तो स्थिति बहुत ही खराब है जहां 65 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एनीमिया की शिकार थीं.
प्रसव के दौरान मिलने वाली सुविधाओं की भी देश में कमी है, स्थिति यह है कि प्रसव पूर्व जांच भी सभी महिलाएं नहीं करा पाती हैं. जननी सुरक्षा योजना का लाभ भी सभी महिलाओं को नहीं मिल पाता है, हालांकि देश में संस्थागत प्रसव बढ़ा है और 85 प्रतिशत तक महिलाएं संस्थागत प्रसव के लिए जाती हैं.
Posted By : Rajneesh Anand