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Patna News : जन्म के समय नहीं रोने वाले नवजातों में हो रही एसफिक्सिया की बीमारी

प्रसव के समय नहीं रोने वाले बच्चे बर्थ एसफिक्सिया के शिकार हो रहे हैं. पीएमसीएच के एनआइसीयू में वर्तमान में 11 ऐसे बच्चे भर्ती हैं, जबकि आइजीआइएमएस में चार और पटना एम्स में 12 बच्चों का इलाज चल रहा है.

आनंद तिवारी, पटना : डिलिवरी के बाद शिशु रोग विशेषज्ञों की गैर मौजूदगी बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ रही है. बच्चे बर्थ एसफिक्सिया के शिकार हो रहे हैं. यह बीमारी खासकर उन बच्चों में अधिक हो रही है, जो जन्म के तुरंत बाद रोते नहीं हैं. जन्म लेते ही नहीं रोने वाले बच्चों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है. पीएमसीएच के नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआइसीयू) में वर्तमान में 11 ऐसे बच्चे भर्ती हैं, जो जन्म के तुरंत बाद नहीं रोये. इसी तरह आइजीआइएमएस में चार और पटना एम्स में 12 बच्चों का इलाज चल रहा है.

ग्रामीण इलाके से अधिक आ रहे केस

संबंधित अस्पतालों में इलाज कर रहे डॉक्टरों की मानें, तो जन्म के तुरंत बाद नहीं रोने वाले रोजाना आठ से 10 बच्चे इलाज कराने आ रहे हैं. इनमें हर महीने 15 से 20 बच्चों को भर्ती कर इलाज किया जाता है. वहीं, एसफिक्सिया रोग से ग्रस्त भर्ती बच्चों में 70 प्रतिशत नवजात ही बच पाते हैं. पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ आइएस ठाकुर ने बताया कि बर्थ एसफिक्सिया से पीड़ित नवजातों का इलाज प्रसव के तत्काल बाद हो जाये, तो एनआइसीयू में भर्ती करने से बचाया जा सकता है. लेकिन, जब केस हिस्ट्री का पता किया जा रहा है, तो जानकारी मिल रही है कि जहां प्रसव हुआ, वहां पर इन बच्चों का इलाज बालरोग विशेषज्ञ से नहीं हुआ है. इस तरह के केस सबसे अधिक ग्रामीण इलाके से आ रहे हैं.

समय पर शिशु रोग के डॉक्टरों के नहीं होने से खराब हो रहा केस

आइजीआइसी के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ एनके अग्रवाल ने बताया कि ग्रामीण और निजी अस्पतालों में जो प्रसव हो रहा है, वहां पर शिशु रोग विशेषज्ञों की मौजूदगी न के बराबर है. अगर बाल रोग विशेषज्ञ मौके पर मौजूद रहे, तो काफी हद तक ऐसे मामलों को संभाला जा सकता है. नवजात की जान तो बचायी ही जा सकती है. साथ ही दिव्यांगता से नवजात बच सकता है. शिशु रोग विशेषज्ञों की गैरमौजूदगी के कारण केस रेफर होकर आते हैं. कई बार इतनी देर हो चुकी होती है कि बच्चे का मस्तिष्क और अंग स्थायी रूप से खराब तक हो जाता है.

मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पाता ऑक्सीजन

पीएमसीएच शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ भूपेंद्र सिंह का कहना है कि जन्म के बाद अगर नवजात नहीं रोता है, तो उस बच्चे को उल्टा करके नितंब और कमर पर हल्के हाथों से थपथपाया जाता है, जिससे कि वह रोने लगे. अगर नवजात रो नहीं रहा है, तो यह तय है कि गर्भ से बाहर आते ही उसके मस्तिष्क तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पा रहा है. ऐसी स्थिति में नवजात को की जान तक चली जाती है.

क्या है बर्थ एसफिक्सिया

बर्थ एसफिक्सिया को पेरीनेटेल एसफिक्सिया और न्यूनेटेल एसफिक्सिया भी कहा जाता है. यह बच्चे को जन्म के तुरंत बाद होता है, जब ऑक्सीजन बच्चे के मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पाता और बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है.ऑक्सीजन न लेने के कारण बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, शरीर में एसिड का स्तर बढ़ जाता है. यह जानलेवा हो सकता है. इसलिए तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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