अगस्त क्रांति दिवस : तिरंगा फहराने के लिए हंसते-हंसते शहीद हो गये थे बिहार के सात सपूत

आज अगस्त क्रांति दिवस है. 77 साल पहले आज ही देश में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी. पूरे देश की तरह बिहार भी इस आंदोलन में एक झटके में कूद पड़ा था और यहां अगुआई कर रहे थे डॉ राजेंद्र प्रसाद. इ

By Prabhat Khabar News Desk | August 9, 2020 8:02 AM

पटना : आज अगस्त क्रांति दिवस है. 77 साल पहले आज ही देश में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी. पूरे देश की तरह बिहार भी इस आंदोलन में एक झटके में कूद पड़ा था और यहां अगुआई कर रहे थे डॉ राजेंद्र प्रसाद. इसकी जानकारी अंग्रेजी सरकार को हो गयी थी. इस दौरान राजेंद्र बाबू बीमार पड़ गये थे. सदाकत आश्रम में ही रह रहे थे. पटना के तत्कालीन डीएम डब्लू सी आर्चर की प्लानिंग थी कि उनको भागलपुर भेज दिया जाये ताकि आंदोलन गति नहीं पकड़ सके लेकिन जब वे सदाकत आश्रम पहुंचे तो देखा कि राजेन बाबू की तबीयत उस लायक नहीं है कि भागलपुर भेजा जाये. इसके बाद उन्होंने सरकार से सलाह लेकर यह फैसला किया कि उनको बांकीपुर जेल में ही रखा जायेगा.

इतिहास अध्येता अरुण सिंह कहते हैं कि राजेंद्र बाबू ने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि उस दिन पटना में बहुत बारिश हो रही थी. वे चारपाई पर लेटे हुए थे. डीएम डब्लू जी आर्चर के पहुंचते ही उन्हें पता चल गया कि उनका मकसद क्या है. डीएम ने सिविल सर्जन से जांच करायी तो सिविल सर्जन ने कहा कि ये तो सफर पर जाने लायक नहीं हैं. इसके बाद उन्हें बांकीपुर जेल में रखा गया. हालांकि जेल जाने के पहले ही पूरे पटना में यह बात तुरंत फैल गयी. इस दिन जेल जाने के बाद राजेंद्र बाबू 15 जून 1945 को बांकीपुर जेल से बाहर निकले थे.

9 अगस्त की इस ऐतिहासिक घटना के मजह दो दिनों के बाद 11 अगस्त को पटना सचिवालय में जो घटना घटी वह पूरे देश के लिए चकित कर देने वाली थी. सचिवालय पर झंडा फहराने की कोशिश में सात स्कूली छात्र एक-एक कर ब्रिटिश पुलिस की गोलियों का शिकार हो गये. अपने झंडे की शान के लिए जान देने वाले इन निहत्थे छात्रों की याद में आज भी पटना विधानमंडल के सामने शहीद स्मारक बना है, जहां प्रसिद्ध मूर्तिकार देवी प्रसाद रायचौधरी की इन सात शहीदों की दुर्लभ मूर्ति लगी है. इसका शिलान्यास बिहार के प्रथम राज्यपाल जयरामदास दौलतराम के द्वारा किया गया था.

क्या हुआ था 11 अगस्त को?

11 अगस्त की सुबह को अशोक राजपथ जनसमूह से भरा हुआ था. आंदोलनकारी बांकीपुर के बाद सचिवालय की ओर झंडा फहराने चल निकले. मिलर हाई स्कूल के नौवीं के छात्र 14 वर्षीय देवीपद चौधरी तिरंगा लिए आगे बढ़ रहे थे. देवीपद सिलहट के जमालपुर गांव के रहने वाले थे, जो अब बंग्लादेश में है. अचानक सीने में गोली लगी, वे गिर पड़े. तिरंगे को पुनपुन हाई स्कूल के छात्र रायगोविंद सिंह ने थाम लिया. रायगोविंद पटना के दसरथा गांव के थे. उन्हें भी गोली मार दी गयी. अब तिरंगा राममोहन राय सेमिनरी के छात्र रामानंद सिंह के हाथों में था. रामानंद पटना के ही शहादत नगर गांव के थे. अगली गोली से वे भी वीरगति को प्राप्त हो गये. तब तक तिरंगा को पटना हाई स्कूल गर्दनीबाग के राजेंद्र सिंह लेकर आगे बढ़ने लगे.

राजेंद्र सारण के बनवारी चक गांव के रहने वाले थे. उनकी शादी हो चुकी थी. उन्हें भी गोली लगी और भारत माता की जय कहते हुए गिरने तक तिरंगा बीएन कॉलेज के छात्र जगपति कुमार थामकर आगे बढ़े. जगपति औरंगाबाद के खरांटी गांव के रहने वाले थे. लक्ष्य बस कुछ ही कदमों पर था. जगपति तेजी से आगे बढ़े. उन्हें एक साथ तीन गोलियां लगीं. एक गोली हाथ में, दूसरी छाती में और तीसरी जांघ में. जगपति के शहीद होते ही पटना कॉलेजिएट के छात्र सतीश प्रसाद झा ने तिरंगा थाम लिया. सतीश भागलपुर के खडहरा के रहने वाले थे. उन्हें भी गोली मार दी गयी. तिरंगा अब राममोहन राय सेमिनरी के 15 साल के छात्र उमाकांत सिंह के हाथों में था. लक्ष्य सामने था. गोली चली, उमाकांत गिर पड़े, लेकिन तिरंगा तब तक सचिवालय पर लहराने लगा था.

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