काकोरी षड्यंत्र के नायकों में श्याम बर्थवार शामिल थे. उनका जन्म पांच दिसंबर 1900 को पुराने गया जिला अंतर्गत औरंगाबाद के खरांटी ग्राम में हुआ था. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न चरणों में क्रांतिकारी, समाजवादी विचारक, निर्भीक पत्रकार,लेखक, रंगमंच कलाकार आदि के रूप में अपना योगदान दिया. वे देश की आजादी के बाद 1962 से 67 तक गया नगर क्षेत्र से विधायक रहे और 26 जनवरी 1983 को अंतिम सांस ली.
पटना स्थित नौबतपुर के मालतीधारी कॉलेज के प्रो कन्हैया प्रसाद सिन्हा ने इन पर शोध कर पुस्तक लिखी है. आजादी के बाद श्याम बर्थवार ने स्वतंत्रता सेनानी का पेंशन और ताम्र पत्र लेने से इंकार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि हम देश के लिए लड़े थे. अपनी मातृभूमि के लिए साम्राज्यवादियों के खिलाफ संघर्ष करना हमारा कर्त्तव्य था, व्यवसाय नहीं.
श्याम बर्थवार ने काकोरी कांड के बारे में लिखा है कि “सुबह होते ही नौ अगस्त 1925 को कुछ वालंटियर और स्वामी सत्यानन्द के साथ हमलोग काकोरी के लिए प्रस्थान कर गए. यहां चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह प्रतीक्षा कर रहे थे. वहां से एक मुसाफिर गाड़ी लखनऊ के लिए चली. मैं गाड़ी पर सवार हो गया और सभी निश्चित अड्डे के लिए प्रस्थान कर गए. थोड़ी दूर जब गाड़ी बढ़ी मैंने जंजीर खींच दी. ट्रेन रुक गई युवकों ने गाड़ी घेर लिया. गार्ड और इंजन चालक हाथ उठा कर ज़मीन पर लेट गए. एक अंग्रेज को नहीं रहा गया. उसने अपने राइफल आजाद और मेरी तरफ तान दी. स्वामी सत्यान्नंद ने गोली चलायी जो अंग्रेज़ का कलेजा चीरती हुई निकल गयी और हमलोग चांदी का बैग लेकर निकल गये.
जयप्रकाश नारायण और श्याम बर्थवiर के अतिरिक्त कई क्रांतिकारियों को हजारीबाग जेल स्थानांतरित किया गया था. श्याम बर्थवार और जयप्रकाश नारायण एक ही सेल में रखे गये. दोनों की गाढ़ी मित्रता को देखते हुए महात्मा गांधी ने लिखा था “जयप्रकाश सावधान, जेल में कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जो व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व बदल डालते हैं.” जयप्रकाश नारायण के जेल पलायन में पांच क्रांतिकारियों की चर्चा हमेशा होती है, वास्तविकता यह है कि कुल दस कैदियों के पलायन का प्लान बना था लेकिन अंत समय में निर्णय को बदलते हुए केवल पांच ही सफल हुए. श्याम बर्थवार ने आठ नवंबर 1942 की रात आयोजित कार्यक्रम में जेल कर्मियों का ध्यान दिग्भ्रमित किया और जयप्रकाश नारायण का पलायन संभव हुआ. उन्हें अधिकारियों ने प्रताड़ित किया. उत्तर नहीं देने पर सजा छह महीने के लिये और बढ़ा दी गयी.