राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों का संग्रह ‘बापू टावर’, बनकर तैयार, उद्घाटन का इंतजार
बापू टावर महात्मा गांधी को समर्पित देश में अपनी तरह का पहला टावर है, जो बिहार के स्थापत्य और सांस्कृतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा. 129 करोड़ रुपये की लागत से बने इस टावर का उद्घाटन उम्मीद है की 15 अगस्त को किया जायेगा.
हिमांशु देव
‘बापू टावर’ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है. 129 करोड़ की लागत से गर्दनीबाग में इसका निर्माण कार्य अब पूरा हो चुका है. प्रदर्शनी गैलरियों में लगने वाली मूर्तियां और कलाकृतियों का निर्माण अहमदाबाद की फैक्ट्री में हुआ है, जिसे टावर में लगाया जा चुका है.
42 करोड़ की लागत से गांधी जी और बिहार के इतिहास से जुड़ी प्रदर्शनी यहां लगायी गयी है. टावर के आयताकार भवन का निर्माण कार्य अब पूरा हो चुका है. इसके आंतरिक भागों में सजावट का काम अपने अंतिम चरण में है. बापू टावर के परिसर का बड़ा हिस्सा ग्रीन एरिया में डेवलप किया गया है.
इसमें घास, फूल, सजावटी पौधे से लेकर कई औषधीय पौधे लगाये हैं. इन पौधों को कोलकाता, हैदराबाद व बेंगलुरु से मंगाया गया है. वहीं, गोलाकार भवन की बाहरी दीवार में 42 हजार किलो तांबे की परत लगायी गयी है. सात एकड़ में फैले इस टावर में विभिन्न गैलरी, शोध केंद्र, विशिष्ट अतिथियों के लिए लाउंज और प्रशासनिक कार्यालय शामिल हैं, जो इसे एक व्यापक शैक्षिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाते हैं.
पहले से छठे तले तक मिलेगी कई दिलचस्प जानकारी
बापू के जीवन पर आधारित शंकु के आकार वाले इस 31 मीटर ऊंचे टावर में उनकी जीवनी, शिक्षा, आदर्शों, मूल्यों और बिहार से उनके लगाव को कई रैंप में आकर्षक लाइट और आधुनिक कला से दर्शाया गया है. यहां रैंप पांच से चार तक में गांधी जी को एक प्रेरणा स्रोत, एक आइकन, एक आदर्श के रूप में प्रदर्शित किया गया है. जबकि, रैंप चार से तीन में तक में बिहार में गांधी जी, उनकी प्रार्थना सभा, लॉर्ड माउंटबेटन के साथ उनकी मुलाकात, कश्मीर और कलकत्ता यात्रा को दिखाया गया है.
वहीं रैंप तीन से दो में गांधी-जिन्ना वार्ता, शिमला सम्मेलन, 1946 के चुनाव एवं अंतरिम सरकार, कलकत्ता अशांति, नोआखाली यात्रा और बिहार में विभिन्न अवसरों पर उनके किये गये कार्यों को प्रदर्शित किया गया है. रैंप दो से एक में दूसरे विश्वयुद्ध और उसका भारत पर प्रभाव, भारत छोड़ो आंदोलन और बिहार की उसमें भागीदारी नजर आयेगी. जबकि अंतिम रैंप में गांधी जी का बिहार आगमन, चंपारण सत्याग्रह एवं बिहार में सामाजिक विकास के कार्य को प्रदर्शित किया गया है. इसके साथ ही इस भवन के भू-तल पर करीब 55-60 व्यक्तियों की क्षमता वाला ओरिएंटेशन हॉल भी बनाया गया है.
बिहार दंगे की कहानी व आंदोलन में महिलाओं की अगुवाई
प्रथम तल पर बिहार दंगे के बारे में भी जानकारी मिलेगी. जिसमें डायरेक्ट एक्शन डे के बाद दंगा बिहार में फैल जाने के बारे में विस्तार से बताया गया है. साल 1946 में अक्तूबर से नवंबर के बीच सात हजार से अधिक लोग व 10 हजार से अधिक घर नष्ट हो गये.
वहीं, भारत छोड़ो आंदोलन को भी दिखाया गया है. पटना, बिहार शरीफ, नालंदा, गया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और सीवान में हड़ताल और मार्च के बाद कई राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नियों और बहनों ने मोर्चा संभाला. प्रदर्श के माध्यम से डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की बहन भगवती देवी, तारा रानी कई को दिखाया गया है.
व्यक्तिगत सत्याग्रह और बिहार
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत अपनी स्वतंत्रता के मुद्दे पर ब्रिटेन के साथ राजनीतिक गतिरोध में फंसा हुआ था. इन तनावपूर्ण परिस्थितियों में हिंसा के खतरे के भय से गांधी जी ने 1940 में सावधानीपूर्वक व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया. इसके बारे में विशेष जानकारियां साझा की गई है. दर्शकों को बिहार में अनुग्रह नारायण सिन्हा, श्याम नारायण सिंह और गौरीशंकर सिंह समेत उन 907 सत्याग्रहियों के बारे में जानकारी मिलेगी, जिन्हें दिसंबर 1940 और मार्च 1941 के बीच गिरफ्तार किया गया था.
चंपारण सत्याग्रह व नील की खेती के खिलाफ आंदोलन
दीवार पर लगे पोस्टर व लोगों के स्वरूप के माध्यम से चंपारण सत्याग्रह व नील की खेती के खिलाफ आंदोलन को समझना आसान किया गया है. साथ ही डिस्पले के माध्यम से इसके बारे में जानकारी भी दी जा रही है. जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधी जी के 1915 में भारत वापस आने के बारे में बताया गया है. वहीं, गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह पर गांधी जी भारत एवं भारतीयों को बेहतर रूप से समझने के लिए भ्रमण पर निकल पड़े थे.
गांधी जी की वकालत की भी दिख रही झलक
गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में सफल रूप से वकालत की, जहां उन्होंने वहां के जीवन के सभी क्षेत्रों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व किया. चाहे वह अमीर, मध्यम वर्ग या गरीब वर्ग के हों. वे डरबन बार के एक सम्मानित सदस्य थे. इसके बाद ही उन्होंने अपने परिवार को वहां लाने का फैसला किया, ताकि वह उसे देश में बस सके और अपना घर बना सकें.
जब व्हाइट्स ओनली कह गांधी जी को फेंक दिया था ट्रेन से
गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में नक्सलवाद और भेदभाव का जो अनुभव किया, उसका सामना उन्होंने अपने लंदन प्रवास के दौरान कभी नहीं किया था. 7 जून 1893 की रात उन्हें पीटरमैरिट्सबर्ग रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन के प्रथम श्रेणी डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया. वैध टिकट होने के बावजूद ‘व्हाइट्स ओनली’ डिब्बे में यात्रा करने के कारण गांधी जी के साथ दुर्व्यवहार किया गया.
गिरमिटिया मजदूरों की दिखेगी दास्तां
दक्षिण अफ्रीका का नेटाल क्षेत्र एक ब्रिटिश उपनिवेश था. अंग्रेजों द्वारा यहां 19-20वीं सदी में भारत से डेढ़ लाख से अधिक बंधुआ मजदूरों को लाया गया था, जिसमें अधिक संख्या बिहार से थी. यह गिरमिटिया मजदूर के रूप में जाने गए.
कस्तूरबा से विवाह की भी मिलेगी जानकारी
गांधी जी के परिवार ने अपनी परंपरा, आस्था और कर्तव्य पर बहुत बल दिया. अपने समाज के रीति-रिवाज के अनुसार गांधी जी का विवाह महज 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा से हुआ. किशोरावस्था में विवाहित यह युगल कुछ महीनों तक अलग-लग रहा और बाद में राजकोट स्थित अपने पारिवारिक आवास पर रहने लगे. पूरी यात्रा के पांचवें तल पर देखने को मिलेगी. यहां दो प्रदर्शनी हॉल बना है जिसमें पहला ‘मोहन से महात्मा’ व दूसरा ‘चंपारण सत्याग्रह’ पर आधारित विशेष प्रदर्शनी देखने को मिलेगी.
ये भी हैं सुविधाएं
टावर के नीचे वाले हिस्से में लोगों की सुविधा के लिए बड़ी लॉबी तैयार की गयी है. यहां साउंड सिस्टम व एलइडी डिस्पले भी लगे हैं. इसमें बापू और चंपारण सत्याग्रह से संबंधित ऑडियो-वीडियो चलता रहेगा. वहीं, इसके पीछे वाले हिस्से में लिफ्ट लगाई गई है. हालांकि, अभी एक ही को चलाया जा रहा है. बाकि, दो बंद है. पर्यटक इस लिफ्ट से टावर के सबसे ऊपर वाले हिस्से तक जा सकेंगे और रैंप के सहारे एक-एक फ्लोर होते हुए नीचे उतरेंगे.