सुशील भारती. इको-टूरिज्म और धार्मिक पर्यटन में दिलचस्पी रखने वालों के लिए मगध के इलाकों में आकर्षण के कई केंद्र हैं. उन्हीं में एक है गया-जहानाबाद का बराबर पहाड़. पहाड़ के निचले हिस्से में पवित्र कुंड है, मध्य में मौर्यकालीन गुफाओं की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना जबकि इसकी चोटी पर सिद्धेश्वर नाथ मंदिर जो भगवान शिव के पुराकालीन मंदिरों में एक है. यह साधारण पर्वत नहीं है. ऋषियों मुनियों की तपस्थली रहा है. पौराणिक और पुरातात्विक धरोहर है. इसकी ऊंचाई ज्यादा नहीं है, लेकिन इसका महत्व इतना अधिक है कि इसे मगध का हिमालय कहा जाता है. सिद्धेश्वर नाथ मंदिर महाभारत कालीन है.
मौर्यकाल में हुआ था निर्माण
मौर्यकाल में इन गुफाओं का निर्माण सम्राट अशोक और उनके पौत्र दशरथ ने खासतौर पर आजीवक साधुओं के लिए कराया था. बरसात के मौसम में जैन, श्रमण, सनातन, बौद्ध और आजीवक साधु अपने शिष्यों के साथ इनमें शरण लेते थे.
कहां है बराबर पहाड़?
बराबर पहाड़ पटना गया रेलखंड में वाणावर हाल्ट के पास है. सड़क मार्ग की बात करें तो यह पटना-गया मार्ग पर पटना से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जबकि बोध गया से 40 किलोमीटर, गया से 30 किलोमीटर और जहानाबाद से 25 किलोमीटर की दूरी पर है. यह एक ऐसा पौराणिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थल है जहां मानव निर्मित गुफाओं के निर्माण की शुरुआत हुई थी, बाद में इसकी स्थापत्य की तर्ज पर अजंता-एलोरा आदि गुफाओं का निर्माण हुआ.
बाणासुर ने की थी शिवलिंग की स्थापना
पौराणिक काल की बात करें तो इसका संबंध महाभारत कालीन मगध सम्राट जरासंध के श्वसुर बाणासुर से जोड़ा जाता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक बाणासुर राजा बली के सौ पुत्रों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली और प्रतिभावान था. वह बहुत बड़ा शिवभक्त था. उसने शिव से वरदान के रूप में एक हजार भुजाएं प्राप्त की थीं और उनकी ताकत के बल पर काफी उत्पात मचाया था. उसने बहुत से पहाड़ों को खंडित कर दिया था. बराबर पहाड़ भी उनमें एक है. बराबर पहाड़ की चोटी पर उसी ने सिद्धेश्वर नाथ शिवलिंग की स्थापना की थी. इसलिए इसे वाणेश्वर महादेव भी कहा जाता है. बाणासुर ने यहां एक किला भी बनवाया था, मान्यता है कि उसकी पहरेदारी पर स्वयं भगवान शिव को तैनात रहने को राजी किया था.
यहां जुड़वा पहाड़ हैं
अब किला के अवशेष लुप्त हो चुके हैं. छोटी-बड़ी चट्टानों से निर्मित एक टूटे-फूटे पहाड़ जैसा दिखने वाला बराबर पहाड़ बाणासुर के उत्पात की गवाही देता है. यहां जुड़वा पहाड़ हैं. उससे लगा नागार्जुनी पहाड़ है. दोनों को मिलाकर सात मानव निर्मित गुफाएं हैं. इनका निर्माण ग्रेनाइट चट्टानों को काटकर कराया गया है. उस जमाने में मशीनें नहीं थीं. छेनी और हथौड़ी जैसे पारंपरिक उपकरणों से इन्हें बनाया गया था. इसकी पालिश इतनी जबरदस्त है कि कोई कल्पना नहीं कर सकता कि यह काम ढाई हजार साल पहले कराया गया था. आज भी एकदम ताजा लगता है. इसके पूर्व भारत के पहाड़ों पर सिर्फ प्राकृतिक गुफाएं ही हुआ करती थीं. बराबर पहाड़ पर चार और नागार्जुनी पहाड़ पर तीन गुफाएं हैं.
पहाड़ की चोटी पर शिवलिंग की स्थापना बाणासुर ने की थी लेकिन इसका जीर्णोद्धार सम्राट अशोक के काल में कराया गया था. इनकी दीवालों पर सम्राट अशोक के काल के शिलालेख मौजूद हैं.
त्योहारों पर उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
गुफाओं से पहले पहाड़ के निचले हिस्से में चट्टानों के बीच एक छोटा सा कुंड है. बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर में दर्शन से पूर्व इसमें स्नान की परंपरा है. कुंड से थोड़ा आगे बढ़ने पर प्राचीन गुफाएं दिखती हैं. उससे थोड़ा आगे बढ़ने पर एक बड़ा सा तालाब है जिसमें पर्यटकों के लिए नौका विहार की सुविधा है. वहां एक छोटा सा संग्रहालय भी है जिसमें पुरातात्विक और ऐतिहासिक धरोहर संग्रहित हैं. पहाड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं. सावन, बसंत पंचमी, मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि के समय यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं का आगमन होता है. उस समय यहां मेला लगता है. उस समय सुरक्षा व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त रहती है. अक्टूबर से मार्च तक बराबर पहाड़ आने के लिए उत्तम समय माना जाता है. मखदुमपुर के पास वाणावर द्वार बना हुआ है. वहां से बराबर पहाड़ का रास्ता निकलता है. एक रास्ता बेलागंज से भी निकलता है.
मगध के इलाके कई धर्मों के तीर्थ स्थल रहे हैं. पर्यटकों के लिए यहां बहुत कुछ है. चाहे उनकी दिलचस्पी इको टूरिज्म में हो या धार्मिक पर्यटन में. लेकिन मगध आकर बराबर पहाड़ को नहीं देखा तो कुछ भी नहीं देखा।
बराबर की गुफाएं
- बराबर पहाड़ी पर स्थित तीन गुफाओं के नाम सुदामा गुफा, कर्ण गुफा और लोमस ऋषि की गुफा है. उसकी छत और दीवारों पर की गई पालिश अशोक स्तंभों की पालिश की तरह है. लेकिन उनसे कहीं ज्यादा चमकदार. क्योंकि यह गर्मी-बरसात से सुरक्षित रही हैं. गुफाओं के अंदर सुरंगें भी हैं लेकिन उनके अंदर प्रवेश करना कठिन है.
- लोमस ऋषि की गुफा का निर्माण सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के तुरंत बाद कराया था. इसके प्रवेश द्वार पर बने मेहराब में अद्भुत नक्काशी की गई है.
- सुदामा गुफा का निर्माण सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के बारहवें वर्ष में कराया था. इसका उद्देश्य आजीवक साधुओं को सुविधा प्रदान करना था. इसके अंदर एक आयताकार मंडप है और एक गोलाकार कक्ष है, जिसमें मेहराब बना हुआ है.
- कर्ण चौपड़ नामक गुफा का निर्माण सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 19 वें वर्ष में कराया था. इसकी दीवारों पर ब्राह्मी लिपि में शिलालेख मौजूद है. इसे सुप्रिया गुफा भी कहा जाता था.
- इनके अलावा बराबर पहाड़ पर एक विश्व झोपड़ी है. इसमें दो आयताकार कक्ष हैं. उन तक पहुंचने के लिए अशोका सीढ़ियां बनी हुई हैं.
नागार्जुनी गुफाएं
- बराबर पहाड़ की गुफाओं से थोड़ी दूरी पर नागार्जुनी पहाड़ी पर तीन गुफाएं बनी हुई हैं. ये बराबर की अपेक्षा छोटे आकार की हैं और बाद की बनी हुई हैं.
- उनमें एक है गोपिका गुफा. इनका निर्माण सम्राट अशोक के पौत्र दशरथ ने आजीविक संप्रदाय के साधुओं और उनके अनुयायियों के लिए कराया था.
- दूसरी वदिथीका गुफा एक दरार के अंदर बनी हुई है. इसके अलावा एक वापिक गुफा है. इसका निर्माण मौर्य काल के दौरान योगानंद नामक एक ब्राह्मण ने कराया था. राजा दशरथ ने उसे आजीविका संप्रदाय को समर्पित कर दिया था.
इसे भी पढ़ें: Saharsa News : कैसे जायेंगे माता के द्वार, सड़क पर है गंदगी का अंबार
सिद्धेश्वर नाथ मंदिर
भगवान शिव के महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिरों में एक सिद्धेश्वर नाथ का उल्लेख शिव पुराण में भी प्रमुखता से किया गया है. इसका संस्थापक बाणासुर राजा बली का पुत्र और जरासंध का श्वसुर था. कहते हैं कि वह प्रतिदिन यहां जलाभिषेक करने आता था. यहां श्रद्धालुओं का आवागमन सालों भर जारी रहता है लेकिन श्रावण मास और अन्य विशेष अवसरों पर उनका तांता लगा रहता है. श्रावण में तो पूरे एक माह तक यहां मेला लग जाता है. इसके अलावा महाशिवरात्रि, मकर संक्रांति आदि के मौके पर मेला लगता है. श्रावण मेले के दौरान सर्वाधिक संख्या कांवरियों की होती है. मेले के मौके पर प्रशासन की तरफ से सुरक्षा की व्यवस्था चुस्त दुरुस्त रहती है. फिर भी हादसे हो जाते हैं. इस वर्ष अर्थात अगस्त 2024 में श्रावण मेले के दौरान मंदिर में कांवरियों के बीच आपसी झड़प में भगदड़ मच गई थी जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई थी जबकि दर्जनाधिक लोग घायल हो गए थे.
बिहार सरकार ने बराबर पहाड़, इसकी गुफाओं और सिद्धेश्वर नाथ मंदिर के रखरखाव पर पूरा ध्यान दिया है. पहाड़ की तली में यात्रियों के ठहरने और खाने की व्यवस्था के अलावा बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था की गई है.
आजीवक संप्रदाय
उपनिषदों के बीज चार वेदों से ही पड़े थे. लेकिन इनके ज्ञानयोग के दर्शन से नास्तिकवाद और भौतिकवाद को बढ़ावा मिला था. ये वेदों से निकले थे लेकिन वैदिक कर्मकांड का खंडन करते थे. आजीवक संप्रदाय भारत का पहला नास्तिक संप्रदाय माना जाता है. यह जैन और बौद्ध धर्म से भी पुराना था. इस संप्रदाय के संस्थापक मक्खलि गोशाल थे. वे पूरी तरह भौतिकवादी थे. आत्मा की शुद्धता और नैतिक आचरण पर उनका जोर था. बिंदुसार और सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान भारत में आजीवक पंथ का ही बोलबाला था. बौद्ध और जैन धर्म के आगमन के बाद धीरे-धीरे यह लुप्त हो गया. आज इस पंथ के अनुयायी तो दूर इसके बारे में बुनियादी जानकारी रखने वाले भी दुर्लभ हैं.