भागलपुर के दीप बाबू, जिन्होंने बैलगाड़ी से स्वराज फंड के लिए जुटाया था एक लाख रुपये
भागलपुर के दीप बाबू ने बैलगाड़ी पर सवार हो तिलक स्वराज फंड के लिये अकेले ही एक लाख रुपये जमा कर लिया था.
दीपक राव, भागलपुर
भागलपुर स्वतंत्रता सेनानी दीपनारायण सिंह की जयंती व गणतंत्र दिवस एक दिन होने के संयोग पर हर बार लोगों में चर्चा होती है. इतना ही नहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब भी भागलपुर आये, उनके आवास पर ही ठहरे या मुलाकात के बाद ही लौटे. दीपनारायण सिंह का जमींदार परिवार में जन्म लेना बड़ी बात नहीं थी, बल्कि देश के लिए किये गये योगदान उससे कहीं बड़ी बात है. उन्होंने इंग्लैंड की राजधानी लंदन से लॉ की डिग्री ली, लेकिन देशप्रेम ने उन्हें वापस लौटने को मजबूर कर दिया. बैलगाड़ी पर बैठकर स्वराज फंड के लिए एक-एक पैसे जोड़कर एक लाख रुपये जुटाये.
दीपनारायण सिंह का रहा अविस्मरणीय योगदान
दीपनारायण सिंह का योगदान सामाजिक, शैक्षणिक व अन्य विकास कार्यों में रहा. आधुनिक शिक्षा के लिए दीपनारायण सिंह ने लीला-दीप ट्रस्ट संस्थान एवं गरीबों के लिए अपनी पहली पत्नी रमानंदी देवी के नाम पर नाथनगर में एक अनाथालय एवं स्कूल भी खोला. उन्होंने समाज के विकास के लिये अपनी सारी संपत्ति न्योछावर कर दी थी.1909 में बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव बनाये गये दीपनारायण सिंह
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता जगतराम साह कर्णपुरी ने बताया कि नमक सत्याग्रह आंदोलन में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा. दीपनारायण सिंह का जन्म 26 जनवरी 1875 को भागलपुर जिले के जमींदार तेजनारायण सिंह के घर में हुआ था. 13 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता के साथ 1888 में इलाहाबाद अधिवेशन में भाग लिया. इस दौरान इनकी मित्रता संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष डाॅ सच्चिदानंद सिन्हा से हुई, जो ताउम्र रही.
1905-06 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने. 1906 से 1910 तक बिहार के लगभग सभी प्रांतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की. 1909 में इन्हें बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया. 1928 में वे बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष बने. 1930 के नमक सत्याग्रह के दौरान जब डाॅ राजेन्द्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया, तो उन्होंने दीप नारायण सिंह को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया.
अपनी यात्रा के दौरान 27 जुलाई, 1930 को आरा एवं बक्सर गये. 27 अगस्त को दीप नारायण सिंह को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें हजारीबाग जेल में चार माह तक रखा गया.पहली बार 1920 में हुई राष्ट्रपिता से मुलाकात, जीवनपर्यंत रहे गांधीवादीवरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता कमल जायसवाल ने बताया कि 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से पहली बार मुलाकात हुई.
बापू के विचारों उन्हें इतना प्रभावित किया कि जीवन-पर्यंत गांधीवादी रहे. असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. उन्होंने पूरे भागलपुर में बैलगाड़ी पर सवार हो तिलक स्वराज फंड के लिये अकेले ही एक लाख रुपये जमा कर लिया था. गणतंत्र दिवस पर हरेक साल घंटाघर परिसर स्थित स्मारक के सामने जयंती सह गणतंत्र दिवस मनाया जाता है.