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Karpoori Thakur Jayanti: ऐसे थे कर्पूरी ठाकुर, सख्त प्रशासक और बेमिसाल राजनेता..

भारतरत्न से सम्मानित जननायक कर्पूरी ठाकुर एक ऐसे जननेता थे, जिन्होंने राजनीति को सामाजिक बदलाव का औजार माना. अपनी राजनीतिक यात्रा के दौरान वह उपेक्षित और वंचित वर्गों की प्रखर आवाज बने.उनकी जन्मशती पर पढ़े प्रभात खबर की विशेष रिपोर्ट

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 24, 2024 8:53 AM
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यशवंत सिन्हा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के प्रधान सचिव के तौर पर काम किया. श्री सिन्हा 1960 बैच के बिहार कैडर के आइएएस अधिकारी रहे. बाद में वे बिहार में विपक्ष के नेता, सांसद और केंद्रीय मंत्री भी हुए. उन्होंने अपनी पुस्तक ”रीलेंटनेस एंड ऑटोबायोग्राफी” पुस्तक में कर्पूरी ठाकुर के बारे में विस्तार से चर्चा की है. प्रभात खबर के राजनीतिक संपादक मिथिलेश ने उनसे इस मुद्दे पर बातचीत की. आइए, कर्पूरी ठाकुर के बारे में जानते हैं यशवंत की जुबानी से…


बेहतर प्रशासक थे और  हार्डकोर ईमानदार

मैंने अपने पूरे जीवन मे जितने भी राजनेताओं के साथ काम किया या यों कहिए कि मैंने जितने के साथ काम किया, उनमें सबसे बेहतर दो से तीन नेताओं में से एक कर्पूरी ठाकुर थे. वे बेहतर प्रशासक थे, हार्डकोर ईमानदार थे. राजनीति में इतना ईमानदार मिलना या बने रहना मुश्किल है. केवल ईमानदार ही नहीं थे, बल्कि वे यह सुनिश्चित करते थे कि उनके साथ रहे लोग भी ईमानदार रहें. निकट के लोगों की गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं करते थे. मैंने बतौर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के रूप में दो साल (1977-79) काम किया था.

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कर्पूरी ठाकुर ने जब पीएस अप्पू की स्वीकार की थी शर्त

मुझे याद है एक बार मुख्य सचिवालय के आसपास बाहरी लोगों ने अतिक्रमण कर लिया था. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के साथ बैठक की और कहा कि ऐसे मामलों में हम एक कदम चलें तो आपको चार कदम उठाना चाहिए. उनके समय मुख्य सचिव का पद खाली हो रहा था. मुख्यमंत्री के रूप में कर्पूरी जी की पसंद सीनियर आइएएस अधिकारी पीएस अप्पू थे. पीएस अप्पू 1951 बैच के बिहार कैडर के बेहद ईमानदार आइएएस अधिकारी थे. मुख्यमंत्री खुद उनके आवास पर गये. मैं भी उनके साथ था. मुख्यमंत्री के रूप में कर्पूरी ठाकुर ने पीएस अप्पू से विनती की कि वे सरकार में मुख्य सचिव का पद स्वीकार करें. यह अद्भुत मिसाल है. पीएस अप्पू ने मुख्यमंत्री की इच्छा को स्वीकार किया. लेकिन, उन्होंने अपनी भी कुछ शर्तें रख दीं. पीएस अप्पू ने कहा- सर, मुझे आपके साथ काम करना अच्छा लगेगा, लेकिन मेरी एक शर्त है कि आप रविवार और अन्य सरकारी अवकाश के दिन मुझे कार्य करने को विवश नहीं करेंगे. मुख्यमंत्री एक मिनट रुके और उनकी शर्त स्वीकार कर ली.

लोगों से मिलना जुलना उनकी कमजोरी थी

कर्पूरी ठाकुर जी में कई गुण थे. लेकिन एक अवगुण भी था. अवगुण यह कि लोगों से मुलाकात को वे कंट्रोल नहीं कर पाते थे. एक बार हमलोग किसी सरकारी मीटिंग में शामिल होने दिल्ली गये. वहां भी मिलने-जुलने वालों की लंबी कतार थी. मैंने उन्हें अलग ले जाकर कहा-सरकारी काम कैसे होगा? अगर आप यहां भी लोगों से इसी तरह मिलते-जुलते रहेंगे? मुख्यमंत्री ने कहा कि आप मेरा रूटीन बना दीजिए. हम किस समय में कौन सा काम करेंगे. मैने रूटीन बना दी. लेकिन, पटना पहुंचते ही सारा रूटीन फेल हो गया. वे पहले की ही तरह लोगों से मिलते-जुलते रहे. इससे सरकारी कामकाज में मुश्किल होती थी. मुझे कई बार उन्हें लेकर किसी रेस्टोरेंट तो कभी कहीं सरकारी गेस्ट हाउस भागना पड़ता था, ताकि जरूरी फाइलें निबटायी जा सकें.

दूसरे राज्यों के सीएम उनसे करते थे विचार-विमर्श

कर्पूरी जी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने अच्छा काम किया. बहुत सारे विवादित मामले भी रहे. आरक्षण बढ़ाने का फैसला उन्होंने लिया था. भारी विरोध हुआ, लेकिन वे झुके नहीं. उन दिनों खबरें आयीं कि आरक्षण के विरोध में बिहार में भारी हंगामा हो रहा है. ऐसे ही एक दिन मैं मुख्यमंत्री सचिवालय के अपने कक्ष में बैठा था. वहां एक विदेशी अखबार के पत्रकार आए. उन्होंने मुझसे कहा कि बिहार में कहां मारकाट चल रही है. मैं उसे कवर करने आया हूं. मैंने उन्हें समझाया कि ऐसी कोई मारकाट यहां नहीं हो रही. आपको गलत सूचना मिली है. दिल्ली में नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल की जब बैठके होतीं, कर्पूरी जी उन बैठकों में शामिल होते. न सिर्फ शामिल होते बल्कि, बिहार समेत पिछड़े राज्यों की वे अगुवाई भी करते थे. इन राज्यों में पड़ोस का राज्य यूपी भी शामिल था. कर्पूरी जी से मिलने राज्यों के मुख्यमंत्री बिहार भवन पहुंचते और उनसे विचार-विमर्श करते. दिल्ली की बैठकों में उनका दबदबा होता था.

मुख्यमंत्री होने का लाभ उनके परिवार के लोगों को नहीं मिला

परिवार के लोगों को उनके मुख्यमंत्री होने का कोई लाभ नहीं मिलता था. उनकी पत्नी गांव की झोपड़ीनुमा अपने घर में रहती थीं. एक बार हमने तय किया कि उनसे मिलना है. किसी सरकारी कार्यक्रम में मैं समस्तीपुर गया और वहां से उनके गांव. घर क्या था, टूटी हुई झोपड़ी थी. एक टूटा हुआ स्टूल था. उसे पोछ कर मुझे बैठने के लिए दिया गया. मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी की आग से मेरे लिये उन्होंने चाय बनायी. उस समय कर्पूरी जी बिहार के मुख्यमंत्री थे. कर्पूरी जी निजी जीवन में भी बेहद सरल व्यक्ति थे. साधारण जीवन, साधारण भोजन पसंद करने वाले थे. लोगों से वे बचना भी चाहते थे, लेकिन लोग भी कहां मानने वाले थे. उन्हें ढूंढ़ ही लेते थे. ऐसे में उन्हें भोजन और नाश्ते का भी समय नहीं मिल पाता था.

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