पटना : विधान परिषद की 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारने को लेकर राजनीतिक दलों में नये सिरे से सामाजिक समीकरण गढ़ने की कोशिश हो रही है. जातियों की गोलबंदी इस कदर है कि जहां अगड़ों में उपजातियों का हिसाब-किताब रखा जा रहा, वहीं पिछड़ों में अति पिछड़े और उसमें भी अब तक अरसे से सत्ता से बेदखल रही उपजातियां भी गोलबंद हो रही हैं. अति पिछड़ी जाति के नेताओं का दर्द है कि वोट के लिहाज दमदार होने क बावजूद सत्ता की दौड़ में दूसरी दबंग जातियों से वे पिछड़ जा रहे. कुम्हार, तांती, मल्लाह, बिंद, धानुक, केवट,नोनिया समेत कई उपजातियों के नेताओं में भी ऊपरी सदन पहुंचने की आस जगी है. दूसरी ओर पार्टियां तीन महीने बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव को सामने रख कर बूथ पर दमखम दिखाने वाली जातियों को तवज्जो देना चाहती हैं.
सूत्र बताते हैं कि अति पिछड़ों के फोकस में रहे जदयू धानुक और कुशवाहा जातियों को तरजीह देने वाला है. जदयू की सूची में मुस्लिम, दलित और अगड़े भी शामिल हैं. खाली हुई 29 सीटों में सबसे अधिक जदयू के ही 20 सदस्य रिटायर्ड हुए हैं. मौजूदा समीकरण में इसी दल को सबसे अधिक हिस्सेदारी भी मिलने वाली है. लोकसभा चुनाव में बेटिकट हुए निर्वतमान सांसद भी विधान परिषद में भेज जा सकते हैं. भाजपा में ओम प्रकाश यादव और जनक राम ऐसे ही दो पूर्व सांसद हैं, जिन्हें विधान परिषद भेजे जाने की चर्चा है.
पार्टी इनसे दो मजबूत यादव और दलित मतदाताओं का भरोसा जीतना चाहती है. हालांकि, बिहार एनडीए की दूसरी बड़ी पार्टी भाजपा के जेहन में अति पिछड़ी और अगड़ी जातियां भी हैं. विधानसभा की दो सीटों के अलावा मनोनयन की आधी सीटों पर भाजपा अपना दावा जता रही है. मनोनयन की सीटों में एक कम भी मिले, फिर भी सात सीटों पर उसके उम्मीदवार आसानी से विधान परिषद पहुंच सकते हैं. इसके इतर शिक्षक और स्नातक निवर्चाचन की आठ सीटों में भी इसकी हिस्सेदारी होगी. पूर्व सांसदों में सीतामढ़ी से जीते उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से रामकुमार शर्मा भी सक्रिय हैं.
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राजद सूत्रों के मुताबिक इस बार विधानसभा चुनाव के साथ ही विधान परिषद में भी अति पिछड़ों को आगे करने की राणनीति है. पार्टी अपने को माय समीकरण के दायरे से बाहर विस्तार चाहती है. इसी कड़ी में पटना स्नातक निर्वाचन सीट के लिए अति पिछड़ी जाति से आने वाले आजाद गांधी को अपना उम्मीदवार बनाने की संकेत दिया है. वहीं, विधानसभा कोटे की तीन सीटों में कम-से-कम एक सीट चंद्रवंशी समाज को दिये जाने की चर्चा है.
-कांग्रेस का चुनावी मिजाज अगड़ों के साथ चल रहा. हालांकि, दल के भीतर कई पिछड़े और दलित नेताओं की नजर विधान परिषद की एक सीट पर टिकी है. सूत्र बताते हैं, आलाकमान की चौखट तक जिस उम्मीदवार की पहुंच होगी, वहीं सिकंदर साबित होगा.
-पिछड़ी जातियों में जदयू के सोनेलाल मेहता, प्रो रामबचन राय, अल्पसंख्यक नेताओं में प्रो हारूण रशीद, कहकशां परवीन के अलावा भी कई नाम चर्चा में हैं. इनके अलावा भाजपा और राजद में अति पिछड़ी जाति के नेताओं की एक लंबी कतार है, जिनकी दावेदारी बड़े नेताओं तक पहुंच चुकी है.
दिग्गज नेताओं मे सबसे बड़ा नाम सूचना मंत्री नीरज कुमार के हैं. नीरज कुमार पटना स्नातक सीट से चुनकर आये थे. इस बार उनके सामने भाजपा से आने वाले पुराने प्रतिद्वंद्वी भी ताल ठोक रहे. सूत्र बताते हैं कि नीरज कुमार की पहली पसंद पटना स्नातक की सीट ही है, पर यदि उन्हें मनोनयन कोटे से विधान परिषद भेजा जाता है तो उनकी खाली सीट पर एनडीए कोई दूसरा उम्मीदवार उतार सकता है. दूसरे प्रबल दावेदार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डाॅ मदन मोहन झा हैं. दरभंगा शिक्षक स्नातक निर्वाचन सीट से चुनकर आये डाॅ झा का कार्यकाल भी समाप्त हो चुका है. दरभंगा स्नातक सीट पर भी उम्मीदवार का पेच फसा है. ब्राह्मण जाति से आने वाले डॉ दिलीप चौधरी पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर चुन कर आये थे. बाद में वह जदयू में शामिल हो गये. जदयू ने पिछली बार विनोद कुमार चौधरी को उम्मीदवार बनाया था. अगड़ी जाति के नेताओं में जदयू में संजय सिंह, लवली आनंद, पीके शाही, प्रो रणवीर नंदन, भाजपा में प्रदेश महामंत्री देवेश कुमार, संजय मयूख, राधा मोहन शर्मा, रितुराज सिन्हा आदि के नाम हैं. वहीं, राजद में प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, बिस्काेमान अध्यक्ष सुनील सिंह या किसी नेता के पुत्र का नाम लिया जा रहा है.
Posted By : Amitabh Kumar