बिहार में विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है. प्रदेशवासियों को इस बजट सत्र से काफी उम्मीदें हैं. कोरोनाकाल में लागू हुए लॉकडाउन से सूबे के लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. वहीं दूसरी तरफ सरकार को भी काफी मस्सकत करनी पड़ी है. राज्य की अर्थव्यवस्था भी बेपटरी हो चुकी है. जिसे वापस पटरी पर लानी भी सरकार के लिए चुनौती है. जिसके लिए सरकार इस बार टैक्स के कुछ मदों में बढ़ोतरी कर सकती है.
अगले वित्तीय वर्ष (2021-22) की तैयारी में जुटे वित्त विभाग की हलचलों से ऐसा संकेत मिल रहा है कि राजस्व घाटे से जूझ रही बिहार सरकार इस बार बजट सत्र में बिहारवासियों के उपर करों का बोझ बढ़ा सकती है. सूबे के उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद की विशेषज्ञों के साथ चल रही बैठकों से ऐसा ही लग रहा है. दरअसल, सूबे की वित्त व्यव्सथा को लेकर तारकिशोर प्रसाद वित्त से जुड़े कई विभागों के एक्सपर्ट से राय ले रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हितघारक समूह के तरफ से सरकार को अधिक खर्च करने के सुझाव सामने आ रहे हैं.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इन विशेषज्ञों ने सरकार के सामने कुछ मांगे रख दी है. दोपहर के भोजन का दायरा इंटर तक कर देने के साथ ही नये विश्वविद्यालय खोलने की मांग भी हो रही है्. बता दें कि सरकार ने 19 लाख लोगों को रोजगार देने का वायदा किया है. इसमें आने वाले खर्चों का इंतजाम भी इसी वित्त वर्ष में करना होगा.
गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष में आंतरिक संसाधन से करीब 35 हजार करो़ड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य राज्य सरकार ने रखा था. लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण मार्च से लागू किए गए लॉकडाउन ने इस लक्ष्य को हासिल नहीं करने दिया आरै आंतरिक कर संग्रह में काफी कमी पायी गयी. दिसंबर से राज्य की आर्थिक गतिविधि बढ़ी जरूर है लेकिन अभी भी उस लक्ष्य को हासिल कर पाना मुश्किल है.
कोरोना ने सरकार के खजाने से आपात मद में हुए भुगतान का बोझ भी बढ़ा दिया है. बजट तैयार करते समय इतने बड़े मद के खर्च की उम्मीद सरकार कभी नहीं रखती है लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण ने सरकार के वित्तिय प्लानिंग की कमर हर तरह से तोड़ी है. जिसका असर इस बार के बजट में देखने को मिल सकता है. सरकार के पास आम लोगों को राहत देने से लेकर राज्य के वित्तिय हालत को पटरी पर लाने तक की चुनौती इस बार रहेगी.
Posted By: Thakur Shaktilochan