बिहार को नहीं भाये निर्दलीय उम्मीदवार, डुमरांव महाराज के नाम है जीत का ये रिकार्ड
बिहार में दलीय उम्मीदवारों का दबदबा रहा है. 1952 से अब तक गिने चुने लोग ही निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीत पाये हैं. वैसे डुमरांव के महाराजा दो बार और गिद्धैर राजघराने के दिग्विजय सिंह एक बार चुनाव जीत चुके हैं.
मनोज कुमार, पटना. लोकसभा में निर्दलीय प्रत्याशियों पर बिहार के मतदाताओं की दिलचस्पी बहुत नहीं रही है. 1952 से अब तक हुए चुनावों में इक्का-दुक्का निर्दलीय ही जीत पाये हैं. जाति के हिसाब से देखें तो इस दौरान तीन राजपूत और तीन यादव विजय हासिल करने में सफल रहे. विजयी अधिकांश उम्मीदवार राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले थे. हाल में वर्ष 2009-10 के बाद बिहार से कोई भी निर्दलीय जीतकर संसद नहीं पहुंचा. इससे पहले 1967, 1991, 1999, 1996 और 1968 में बिहार से कुछ निर्दलीय चुने गये थे. जीतने वाले निर्दलीय कभी बगावत तो कभी अपनी निजी साख के सहारे सांसद बने. विजयी उम्मीदवारों में कई इस दुनिया से विदा हो चुके हैं. वर्ष 2009 में दो निर्दलीय सांसद बिहार से चुने गये थे. बांका से दिग्विजय सिंह और सीवान से ओमप्रकाश यादव ने जीत हासिल की थी.
कमल सिंह दो बार निर्दलीय जीते
1952 के चुनाव में दरभंगा पश्चिम सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे दरभंगा के महाराजा कामेश्वर सिंह आठ हजार मतों से चुनाव हार गये, वैसे उसी चुनाव में शाहाबाद उत्तर पश्चिम सीट से डुमरांव महाराज कमल सिंह निर्दलीय चुने गये. तब वे सबसे युवा थे. डुमरांव महाराज कमल सिंह 1957 में भी जीते. बिहार में लगातार दो बार निर्दलीय चुनाव जीतनेवाले वो अकेले सांसद हैं. उनको विरासत में राज गद्दी मिली थी. मुल्क के आजाद होने के बाद डुमरांव महाराज ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आकर क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखा.
जदयू से बागी होकर दिग्विजय सिंह ने बांका फतह किया था
गिद्धौर राजघराने के दिग्विजय सिंह भी एक बार निर्दलीय चुनाव जीत चुके हैं. 2009 चुनाव से पहले वो जदयू से बागी हो गये थे. वर्ष 2009 में बांका से उनको टिकट नहीं मिला. इससे वे खफा हो गये और फिर वे निर्दलीय मैदान में उतर आये. वे भारी बहुमत से चुनाव जीते. जीत की खुशी बहुत दिनों तक नहीं रही. उनका जल्द ही निधन हो गया. इस सीट से उनकी पत्नी पुतुल कुमारी वर्ष 2010 में निर्दलीय मैदान में उतरीं. सहानुभूति व दिग्विजय सिंह के प्रभाव से पुतुल कुमारी ने भी जीत दर्ज की.
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सुर्खियों में रही थी काली पांडेय की जीत
बाहुबली काली पांडेय ने 1984 में गोपालगंज सीट से रिकॉर्ड मतों से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी. उस दौर में काली पांडेय का निर्दलीय चुनाव जीतना देश भर में सुर्खियों में था. काली पांडेय को तब बाहुबलियों का गुरु भी कहा जाता था. काली पांडेय की जीत ने बाहुबलियों को संसद में जाने का रास्ता साफ किया. बाहुबलियों को लगने लगा कि वे भी चुनाव जीतकर कुर्सी हासिल कर सकते हैं.
पूर्णिया से दो बार जीते राजेश रंजन
नवादा से 1967 में सूर्यप्रकाश पुरी, बेगूसराय में 1996 में रमेंद्र कुमार, मधेपुरा से 1968 विंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी. वहीं, 1991 और 1999 में पूर्णिया से राजेश रंजन निर्दलीय चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे.