पटना : लॉकडाउन का पालन सख्ती से करते हुए राज्य सरकार कोटा समेत अन्य राज्यों में पढ़ने वाले किसी भी छात्र को इस बीच बिहार नहीं लायेगी. मुख्य सचिव दीपक कुमार की ओर से इस संबंध में हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा पूछे गये सवाल के जवाब में गुरुवार को हलफनामा दायर किया है. इसमें कहा गया है कि वर्तमान में अगर किसी भी छात्र को यहां लाया जाता है, तो यह केंद्र सरकार द्वारा जारी की गयी एडवाइजरी का उल्लंघन माना जायेगा.
सूत्रों के अनुसार सरकार के इस जवाब से कोर्ट संतुष्ट नहीं है. इधर एक अन्य मामले में कोटा में पढ़ रही एक छात्रा के पिता की याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 27 अप्रैल तक सरकार से जवाब तलब किया है. इधर, वरीय अधिवक्ता अजय कुमार ठाकुर की याचिका के जवाब में सरकार ने अपने जवाब में कहा कि बड़ी संख्या में बाहर के प्रदेशों में पढ़ रहे बिहारी छात्रों को लाना सुरक्षा दृष्टिकोण से उचित प्रतीत नहीं होता है. संभव है कि इससे कोरोना वायरस का प्रकोप और बढ़ जाये. बाहर से लाये जानेवाले बच्चों की संख्या इतनी है कि उन्हें क्वारेंटिन करने के लिए जगह का अभाव हो जायेगा. सरकार के लिए काफी परेशानी भी होगी.
पटना हाइकोर्ट में न्यायमूर्ति हेमंत कुमार श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कोटा में पढ़ रही एक छात्रा के पिता की ओर से दायर याचिका की सुनवाई की. याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि दूसरे प्रदेशों की सरकार की तरह ही उनकी बेटी समेत अन्य छात्रों को यहां लाने की व्यवस्था की जाये. इसके लिए हिसुआ के विधायक का उदाहरण भी दिया गया. इस मामले की सुनवाई 27 अप्रैल को होगी.
वहीं आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव अमृत प्रत्यय ने पटना हाइकोर्ट के महानिबंधक को पत्र लिख कर हाइकोर्ट प्रशासन को यह जानकारी दी है कि लॉकडाउन में 17 लाख से भी अधिक बिहारी राज्य के बाहर फंसे पड़े हैं . लॉकडाउन कानून व केंद्र सरकार की गाइडलाइन का सख्त अनुपालन राज्य सरकार कर रही है जिसके तहत फंसे हुए किसी नागरिक को भी लॉकडाउन अवधि में बिहार वापस नहीं लाया जा सकता है. हालांकि राज्य के बाहर फंसे बिहारियों को समुचित भोजन व राशन के साथ प्रत्येक व्यक्ति को एक हज़ार रुपये की विशेष सहायता देने व उन सभी की शिकायतों को सुनने के लिए टेलीफोन / हेल्प लाइन नंबर व मोबाइल एप तक भेजे जा रहे हैं .