मात्र दस वर्ष की बच्ची के पित्त की थैली में कैंसर पाया गया है. इस तरह का केस दुनिया में रेयर माना जाता है. आइजीआइएमएस में जब डॉक्टरों ने इस बीमारी को पकड़ा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. बच्ची की जान बचाने के लिए आइजीआइएमएस सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी डिपार्टमेंट में आठ दिसंबर को सफल सर्जरी की गयी. इसके बाद वह अब खतरे से बाहर है और जल्द ही अस्पताल से छुट्टी मिल जायेगी. सबसे कम उम्र में इस बीमारी का यह दुनिया का पहला केस है.
दस वर्ष की यह बच्ची सुपौल जिले के छिटही गांव की रहने वाली है. उसे नौ महीने से पेट में दर्द था और छह महीने से जांडिस की भी शिकायत थी. साथ ही भूख न लगने, वजन कम होने की भी उसे शिकायत थी. पूर्व में कई जगह डॉक्टरों को दिखाया लेकिन बीमारी पकड़ में नहीं आ पायी थी. उसका जांडिस और गैस का इलाज लगातार कई महीनों से चल रहा था. परिजन झाड़-फूंक और देशी इलाज भी करवा रहे थे लेकिन इन सबसे सुधार की जगह बीमारी लगातार बढ़ती जा रही थी.
जांडिस ठीक नहीं होने पर उसे डॉक्टरों ने आइजीआइएमएस रेफर किया जहां सिटी स्कैन जांच में पाया गया कि उसे पित्त की थैली का कैंसर है. कैंसर पित्त की नली और लिवर में जाने वाली खून की नली को भी जकड़ चुका था. आइजीआइएमएस के सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी डिपार्टमेंट में विभागाध्यक्ष कैंसर का डॉ मनीष मंडल के नेतृत्व में डॉ राकेश कुमार सिंह ने सफलता पूर्वक यह ऑपरेशन किया. ऑपरेशन के दौरान पित्त की थैली, लिवर का कुछ हिस्सा, पित्त की नली और लिवर को जाने वाली खून की नली को काट कर हटाने के बाद उसे बनाया गया. सर्जरी में डॉ सुजीत कुमार भारती, डॉ मनीष साह, एनिस्थेसिया विभाग के डॉ अरविंद कुमार, डॉ आलोक, डॉ प्रियंका और नर्स मधु ने सहयोग किया.
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डॉ मनीष मंडल ने कहा कि पित्त की थैली का कैंसर आम तौर पर 50 से 60 वर्ष की उम्र में देखने को मिलता है. कुछ केस में यह 40 से 50 वर्ष में भी सामने आता है, लेकिन बच्चों में यह देखने को नहीं मिलता. इससे पहले मेडिकल साइंस में सबसे कम उम्र में पित्त की थैली के कैंसर का रिपोर्टेड मामला करीब 13 वर्ष की आयु के बच्चे का पूर्व में आ चुका है. ऐसा केस पूर्व में एक ही आया था. आइजीआइएमएस में सामने आया यह केस दुनिया में अब तक रिपोर्टेड सबसे कम उम्र के मरीज का बन चुका है. इतनी कम उम्र में पित्त की थैली का कैंसर बच्ची को कैसे हुआ इस पर अब आइजीआइएमएस के डॉक्टरों की टीम रिसर्च करेगी. यहां के मॉल्यूकूलर जेनेटिक डिपार्टमेंट में जीन सिक्वेंसिंग कर इसकी जांच की जायेगी.
Posted By: Thakur Shaktilochan