Sarkari Naukri 2020: बिहार में लेक्चरर पद पर चयन के लिए युवा अभ्यर्थी के लिए 50 अंक बने परेशानी का सबब, टॉपर के लिए भी नौकरी पाना होगा मुश्किल…

पटना: सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के लिए अधिसूचित नये परिनियम 2020 के प्रावधान शानदार अकादमिक रिकॉर्ड रखने वाले प्रतिभाशाली युवा प्रतिभाओं के शैक्षणिक कैरियर के लिए घातक साबित होंगे. दरअसल इस परिनियम में अकादमिक के लिए निर्धारित कुल 100 अंकों में 50 अंक बिहार के प्रतिभाशाली युवा अभ्यर्थियों को नहीं मिल पायेंगे. इसकी वजह से उनका सहायक प्राध्यापक पद पर चयन होना संभव ही नहीं होगा.

By Prabhat Khabar News Desk | August 17, 2020 8:28 AM

पटना: सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के लिए अधिसूचित नये परिनियम 2020 के प्रावधान शानदार अकादमिक रिकॉर्ड रखने वाले प्रतिभाशाली युवा प्रतिभाओं के शैक्षणिक कैरियर के लिए घातक साबित होंगे. दरअसल इस परिनियम में अकादमिक के लिए निर्धारित कुल 100 अंकों में 50 अंक बिहार के प्रतिभाशाली युवा अभ्यर्थियों को नहीं मिल पायेंगे. इसकी वजह से उनका सहायक प्राध्यापक पद पर चयन होना संभव ही नहीं होगा.

यदि अभ्यर्थी नेट भी निकाल चुका हो, तो भी उसे पचास अंक नहीं मिल पायेंगे

आधिकारिक जानकारी के मुताबिक सहायक प्राध्यापक के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता 55 फीसदी अंकों के साथ स्नातकोत्तर निर्धारित है. यदि अभ्यर्थी नेट भी निकाल चुका हो, तो भी उसे पचास अंक नहीं मिल पायेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि मैट्रिक से स्नातकोत्तर तक उच्च अकादमिक रिकॉर्ड रखने वाला युवा अभ्यर्थी पीएचडी के 30 अंक और पांच साल के अध्यापन कराने के अनुभव से जुड़े 10 अंक कभी नहीं ले सकेगा. इसी तरह शोध प्रकाशन के 10 अंक से भी वह वंचित हो जायेगा. जबकि तीन दशक पहले तक टॉपर सीधे सहायक अध्यापक के रूप में सेलेक्ट होते थे.

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सेलेक्ट नहीं होने पर पीएचडी में ऊर्जा लगाते हैं युवा

जब से पीएचडी में अधिकतम मार्क्स तय किये गये हैं, तब से युवा सहायक अध्यापक की नियुक्ति संभव ही नहीं हो पा रही है. दरअसल बिहार में जब टॉपर युवा सहायक प्राध्यापक की संभावनाएं नहीं देखता, तो वह प्रशासनिक सेवाओं की ओर उन्मुख होता है. वहां सेलेक्ट नहीं होने पर वह पीएचडी में ऊर्जा लगाता है. जानकार सवाल उठा रहे हैं कि आज के समय में जब उच्च शिक्षा में लगातार युवा प्रयोग हो रहे हैं, वैसे दौर में परिनियम में स्थानीय युवा प्रतिभाओं के लिए बहुत कम संभावनाएं बचती हैं.

एक्सपर्ट व्यू

वर्तमान परिनियम में टॉपर विद्यार्थियों की शिक्षण क्षमता की इमिडियेट एनर्जी का उपयोग ही नहीं हो पायेगा. दरअसल परिनियम में पीएचडी, रिसर्च पेपर प्रकाशन और शिक्षण अनुभव के अंक उसे मिल ही नहीं पायेंगे. इस तरह युवा अभ्यर्थी का चयन हो ही नहीं पायेगा. इसलिए इस दिशा में भी सोचा जाना चाहिए. फिलहाल मकसद परिनियम का विरोध नहीं है. फिलहाल इस मामले में सरकार का रुख संवेदनशील है. हालांकि प्रदेश के हक में संशोधन अनिवार्य हो गये हैं.

प्रो रास बिहारी प्रसाद सिंह, अवकाश प्राप्त कुलपति, पटना विश्वविद्यालय

Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya

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