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बिहार विधान परिषद चुनाव: अब धनबल के जरिये वोट जुटाने पर लगेगी रोक, जानिये निर्वाचन आयोग क्या कर रहा बदलाव

बिहार विधान परिषद चुनाव 2022 में धनबल के जरिये वोट को रोकने के लिए चुनाव आयोग इस बार मतदाता बने पंचायत के जनप्रतिनिधियों के निर्वाचन प्रमाण-पत्र वाले सिस्टम को बदलकर अब आईडी कार्ड तैयार कर रहा है.

बिहार विधान परिषद चुनाव: बिहार विधान परिषद के खाली हुए 24 सीटों पर जल्द ही चुनाव होना है. निर्वाचन आयोग इसकी तैयारी में लग गया है. वहीं सियासी दलों ने भी अपनी तैयारी जोर-शोर से शुरू कर दी है. सीट शेयरिंग से लेकर उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया भी लगभग सभी दलों की आखिरी चरण में ही है. इस बीच चुनाव आयोग नयी तैयारी में है. धनबल से जीत को रोकने के लिए अब प्रमाण पत्र की जरुरत को खत्म कर दिया जा सकता है. जानिये किस बदलाव की है तैयारी….

धनबल से वोटर खरीदने पर लगेगी रोक

स्थानीय निकाय प्राधिकार के जरिये अभी विधान परिषद का चुनाव होना है. अभी तक इस चुनाव में ये शिकायत आती रही है कि धनबल के जरिये कई मजबूत उम्मीदवार पंचायत प्रतिनिधियों से उनकी जीत का प्रमाण-पत्र (सर्टिफिकेट) ले लेते हैं. मतदान के दिन मतदाता के साथ उम्मीदवार के करीबी भी जाते और अपने नेता के पक्ष में वो वोट करा लेते थे. आयोग ने इसपर लगाम लगाने के लिए अब नये तरीक निकाले हैं.

प्रमाण-पत्र के बदले अब आईडी कार्ड का सिस्टम

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आयोग अब प्रमाण-पत्र का झंझट ही खत्म करने वाला है. अब प्रमाण-पत्र के बदले जिला निर्वाचन कार्यालय से आईडी कार्ड जारी किया जाएगा. बताया जा रहा है कि जिला के निर्वाचन कार्यालय में आईडी कार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है.

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साक्षर या निरक्षर, ऐसे होगा तय…

इस बार बिहार MLC चुनाव में कोई मतदाता खुद को निरक्षर बताकर वोटिंग के दौरान अपने साथ सहयोगी नहीं ले जा सकेंगे. चुनावी शपथ पत्र में दर्ज विवरण के आधार पर ही उनके साक्षर होने या निरक्षर होने का फैसला होगा. इसकी जानकारी आईडी कार्ड पर भी रहेगी. जिसके बाद झूठ बोलकर कोई सहयोगी साथ नहीं जा सकेगा.

जानिये क्या पड़े फर्क

बता दें कि कई उम्मीदवार इस बात को लेकर चैन से बैठे होते हैं कि धनबल के जरिये वो आसानी से मतदाताओं के निर्वाचन प्रमाण-पत्र को खरीद लेंगे. ऐसे उम्मीदवारों की परेशानी इस बार बढ़ने वाली है. वहीं अगर कोई उम्मीदवार पहले ही लेन-देन करके डील कर चुके हैं तो अब उन्हें घाटा भी उठाना पड़ सकता है. पहले उम्मीदवार पैसे से प्रमाण-पत्र अपने पक्ष में मंगवाते और अपने सहयोगी को मतदाता के साथ उनके वोट की निगरानी में लगा देते थे. अब ये बंद हो सकेगा.

Posted By: Thakur Shaktilochan

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