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सात अगस्त को मनेगा बिहार म्यूजियम का स्थापना दिवस, हर चित्रकला बयां करेगी एक कहानी

बिहार म्यूजियम का स्थापना दिवस समारोह सात अगस्त को मनाया जायेगा. इसे लेकर बुधवार को वैदेही सीता की जीवनी पर आधारित चित्रकला कार्यशाला का हुआ उद्घाटन हुआ. 31 जुलाई से सात अगस्त तक चलने वाले चित्रकला कार्यशाला में माता सीता को बेटी सीता के रूप में उनके बचपन से पूरे जीवन काल का वर्णन पेंटिंग के माध्यम से किया जायेगा.

बिहार म्यूजियम के बहुउद्देशीय सभागार में बुधवार को वैदेही सीता की जीवनी पर आधारित चित्रकला कार्यशाला का उद्घाटन बिहार संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने किया. बिहार संग्रहालय का स्थापना दिवस सात अगस्त को मनया जायेगा. इसे लेकर 31 जुलाई से सात अगस्त तक चलने वाले इस कार्यशाला में मधुबनी पेंटिंग, मंजूषा पेंटिंग, टिकुली आर्ट, सुजनी कला और एप्लिक आर्ट वर्क में पद्मश्री सहित 30 लोक कलाकार भाग ले रहे हैं. 

कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए बिहार संग्रहालय के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने कहा कि बिहार संग्रहालय में इसके स्थापना काल से ही विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रमों और गतिविधियों की शृंखला प्रारंभ की है. बिहार जनक दुलारी सीता की जन्मभूमि है, इसलिए बिहार संग्रहालय के स्थापना दिवस पर माता सीता की जीवन गाथा पर आधारित चित्र कार्यशाला सह प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है. इस आयोजन में राज्य के नामचीन लोक कलाकारों ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है. सभी देवी सीता के जीवन से जुड़े विविध प्रसंगों पर केंद्रित कलाकृतियों का सृजन करेंगे, जिसे आम दर्शक सात अगस्त को देख सकेंगे.

संग्रहालय में सात अगस्त को होगा प्रदर्शनी का उद्घाटन
सात अगस्त को इस प्रदर्शनी का उद्घाटन होगा. बिहार संग्रहालय के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम के माध्यम से हम ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को बिहार संग्रहालय से जोड़ रहे है. हम दर्शकों को जीवंत प्रदर्शनी, कलायात्रा, बाल कार्यशाला, कलाकारों के साथ वार्ता आदि गतिविधियों से भी जोड़ रहे हैं. जिसके चलते कलाकारों, कला–प्रेमियों., आम लोगों का रुझान बिहार संग्रहालय की तरफ तेजी से बढ़ा है.

एक ही विषय पर अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे 30 कलाकार
बिहार संग्रहालय पहुंचे कलाकारों ने प्रभात खबर से बातचीत करते हुए बताया कि यह पहला मौका होगा, जब अलग-अलग लोक कलाओं के कलाकार एक ही विषय पर अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे. सीता की जीवनी पर आधारित हम लोगों को पेंटिंग तैयार करनी है. इसमें कोई सीता के जन्म को दर्शायेगा, तो कोई उनके स्वयंबर को. कोई बनवास, रावण हरण, हनुमान का लंका में आना, फल्गु नदी का श्राप, त्रिजटा आदि को दर्शायेगा, तो कोई अयोध्या में वापसी, धोबी का सवाल, सीता का बनवास, वाल्मीकि के आश्रम में शरण, लव-कुश का जन्म, पिता से मुलाकात और सीता का धरती में समा जाने के प्रसंग को अपनी पेंटिंग में उकेरेगा. सभी कलाकारों की पेंटिंग में कहानी के साथ-साथ लोककला को भी दर्शाया जायेगा.

ये सभी प्रसिद्ध कलाकार बनायेंगे पेंटिंग
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता (मधुबनी)- पद्मश्री बौआ देवी, पद्मश्री दुलारी देवी, पद्मश्री शांति देवी, पद्मश्री शिवन पासवान, महनमा देवी, विभा लाल, हेमा देवी, आशा झा, मनीषा झा.
राज्य पुरस्कार विजेता (टिकुली आर्ट)- पद्मश्री अशोक विश्वास, शबीना इमाम, संतोष कुमार, किरण कुमारी, रूपा कुमारी.
राज्य पुरस्कार विजेता (एप्लिक/कशीदाकारी)- प्रभा देवी, सुशीला देवी, सुफिया कौसर, कमला देवी, रूमा देवी.
राज्य पुरस्कार विजेता (सुजनी पेंटिंग) – निर्मला देवी, संजू देवी, माला गुप्ता, सुमन सिंह, आशा देवी.
राज्य पुरस्कार विजेता (मंजूषा पेंटिंग)– मनोज कुमार पंडित, उरूपी झा, पवन कुमार सागर, विशुद्धानंद मिश्रा, अनुकृति कुमारी.

कोई उकेर रहा  ‘राम-सीता स्वयंबर’, तो कोई  ‘सीता का वनवास’
मैं पिछले 48 साल से मधुबनी पेंटिंग बना रहा हूं. बिहार संग्रहालय के स्थापना दिवस समारोह को लेकर मैं ‘पुष्पक विमान में रावण द्वारा सीता हरण’ को अपनी पेंटिंग को दर्शा रहा हूं. – पद्मश्री शिवन पासवान, मधुबनी

मैंने टिकुली कला पद्मश्री अशोक कुमार विश्वास से सीखी है. मैं टिकुली कला में ‘राम-सीता स्वयंबर’ बना रही हूं. यह पहला मौका है, जब सभी कलाकार एक ही थीम पर अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे. – शबीना इमाम, पटना

‘सुजनी’ बिहार की एक पारंपरिक कला है. मैं इससे वर्ष 1989 से जुड़ी हूं. इस कला को मैंने अपनी मां से सीखा था. पहली बार मैं इस कला के माध्यम से ‘सीता का वनवास’ थीम पर काम कर रही हूं. – निर्मला देवी, मुजफ्फरपुर

मंजुषा पेंटिंग करते हुए मुझे 35 साल हो गये हैं. मंजूषा पेंटिंग ‘बिहुला-बिशारी’ की किंवदंती से जुड़ी लोक कथाओं पर आधारित है. फल्गु नदी को जब माता सीता ने श्राप दिया था, इसी थीम पर मैं पेंटिंग बना रही हूं. मनोज कुमार पंडित, भागलपुर

एप्लिक कला के माध्यम से मैं ‘वाल्मीकि और माता सीता को उनके आश्रम में मिले आश्रय’ को दर्शा रही हूं. मैंने एप्लिक का काम अपने मायके में सीखा था, जो कई पीढ़ियों से चली आ रही है. प्रभा देवी, हाजीपुर

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