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Bihar News: बिहार में पुनर्जीवित हो रहीं हस्तकलाएं, सदियों पुरानी हस्तकला व हस्तशिल्प को पुनर्जीवित कर रहे बिहार के लोक कलाकार

Bihar News: पटना में हस्तकलाएं पुनर्जीवित हो रहीं है. बुद्ध की जीवनी को लकड़ी पर उकेरते हैं धीरज मूल रूप से गया के रहने वाले धीरज कुमार पिछले 30 साल से कास्ट कला से जुड़कर कार्य कर रहे हैं.

Bihar News: पटना. अपने जिले में कई ऐसे कलाकार हैं, जो अपनी परंपरागत व सदियों पुरानी कला को पुनर्जीवित कर रहे हैं. इसमें कास्ट कला, भोजपुरी पेंटिंग, मंजूषा आर्ट, कनिया-पुत्री और टेराकोटा जैसी कई अन्य कलाएं शामिल हैं, जो विलुप्ति के कगार पर हैं. इन कलाकारों का मकसद ऐसे आर्ट से युवा कलाकारों को जोड़ना और इसे लंबे समय तक जीवित रखना है. ऐसे कलाकार इस प्राचीन कला को न केवल संरक्षित कर रहे हैं, बल्कि उनके आजीविका का प्रमुख साधन भी है. विलुप्त हो रही कलाओं को पुनर्जीवित करने वाले ऐसे ही कलाकारों से रू-ब-रू करा रही है, जूही स्मिता की रिपोर्ट.

वर्कशॉप व प्रशिक्षण के जरिये जुड़ रही आज की पीढ़ी

  • ये कलाकार अपनी कलाकृतियों का निर्माण करने में लगे हैं, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं
    बुद्ध की जीवनी को लकड़ी पर उकेरते हैं धीरज मूल रूप से गया के रहने वाले धीरज कुमार पिछले 30 साल से कास्ट कला से जुड़कर कार्य कर रहे हैं. वे कहते हैं, मैंने इस कला को अपने बहनोई से सीखा था. इस कला को लोग सीखना पसंद नहीं करते हैं, जिसका मुख्य कारण इसमें रोजगार का न होना है. लकड़ियों पर मैं बुद्ध की प्रतिमा और उनकी जीवनी पर आधारित प्रतिमाओं का निर्माण करता हूं. कास्ट से बनी मूर्तियों की मांग बनारस, राजगीर, पटना, बोधगया के अलावा विभिन्न संग्रहालयों में है. बिहार म्यूजियम में मैंने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है और यहां मुझे कई वर्कशॉप में भाग लेने का मौका मिलता है. आज की पीढ़ी, जो कला क्षेत्र से जुड़े हैं, उनसे अपील करता हूं कि वे इस कला को सीखें और दूसरों को भी सिखाएं.

भोजपुरी पेंटिंग को आज की पीढ़ी से जोड़ रहे संजीव

मूल रूप से आरा के रहने वाले संजीव सिन्हा विलुप्त हो रही ‘भोजपुरी पेंटिंग’ को संरक्षित कर रहे हैं. वे कहते हैं, लोक कलाएं हमारे समाज की संस्कृति से परिचय कराती हैं. भोजपुरी क्षेत्र की लोक कलाओं का समृद्ध इतिहास रहा है. भारतवर्ष में भित्ति चित्रों की बहुत प्राचीन परंपरा रही है. अजंता और एलोरा की गुफाओं में बने भित्ति चित्र कला के क्षेत्र में आज भी विशेष स्थान रखते हैं. पर भोजपुरी भित्ति कला और भित्ति चित्र लेखन आधुनिकता के दौर में बहुत पीछे छूटती चली जा रही है. आज संस्कृति के इन रूपों को पहचान कर उजागर करने की जरूरत है. मैं पिछले 15 साल से इस कला से न सिर्फ जुड़ा हूं, बल्कि स्कूल, कॉलेज और गावों में युवाओं को इस कला का प्रशिक्षण भी देता हूं.

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कन्या-पुत्री कला को संजो रहीं नमिता आजाद

कंकड़बाग की रहने वाली नमिता आजाद पिछले 21 साल से पश्चिम चंपारण की परंपरा ‘कन्या पुत्री’ को संजोने का कार्य कर रही हैं. पहले गांवों में कन्या-पुत्री को शादी-विवाह के मौके पर परिवार वाले अपनी बेटी को विदाई के समय में इससे बने सामानों को गिफ्ट के तौर पर देते थे. शादि के बाद विदाई में बेटी को डॉल यानी गुड़िया देने की परंपरा रही है. इस कला को जब लोग भुलने लगे, तो उन्होंने इसे फिर से लोगों के सामने लाने की सोची. इनकी बनायी गयी डॉल बिहार, नयी दिल्ली, मुंबई, सिंगापुर के अलावा अमेरिका व सऊदी अरब में भी डिमांड रहती है. वे अपने आस-पास की रहने वाली महिलाओं और युवतियों को इसका प्रशिक्षण देती हैं. उनका मकसद इस परंपरा को जीवित रखने के साथ-साथ उन्हें रोजगार से भी जोड़ना है.

संजु देवी ‘सुजनी’ कला की सीखती हैं बारीकियां

‘सुजनी’ बिहार की लोकप्रिय कला है. ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं वर्षों से इस कला के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में इसे अपनी आर्थिक उन्नति का आधार बनाये हुए हैं. बड़ी संख्या में महिलाएं इस कार्य को कर रही हैं. कंकड़बाग की रहने वाली संजु देवी पिछले 36 साल से सुजनी कला से जुड़ी हैं. शुरुआत में सुजनी कला में बेडशीट, कुशन कवर और साड़ी ही बनाये जाते थे, लेकिन बदलते वक्त के साथ पारंपरिक चीजों के साथ-साथ साड़ियों, दुपट्टा, स्टोल, वॉल हैंगिंग में भी इस आर्ट का इस्तेमाल होने लगा है. इनकी कला की मांग नयी दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया तक में है. ये युवतियों को इस कला का प्रशिक्षण देकर उन्हें भी रोजगार से जोड़ती हैं. ताकि इसे सिखकर युवतियां खुद को हुनरमंद बना सकें.

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