Bihar News: हाइटेक युग में दीये की परंपरा हो रही है ओझल, कारोबार की सुस्ती से नयी पीढ़ी नहीं देते ध्यान

Bihar News: दीपों का पर्व दीपावली की रौनक बिना दीयों के अधूरी है. बीते 8-10 वर्षों में बिजली से जगमगाने वाले झालरों, लड़ियों, रंग-बिरंगे बल्बों सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामग्री का प्रचलन काफी बढ़ा है.

By Radheshyam Kushwaha | October 26, 2024 5:54 PM

Bihar News: दिवाली का त्योहार देशभर में अपनी रौनक पर है. दीपावली का त्योहार पांच दिनों का होता है. दीपावली के मौके पर इस बार बाजारों में मिट्टी के दीयों के अलावा आर्टिफिशियल दीयों की मांग बढ़ी हुई है. इस दौरान घरों को सजाने के लिए बाजारों में जमकर खरीदारी की जा रही हैं. दुकानदारों का कहना है कि इस बार मिट्टी के दीयों के मुकाबले आर्टिफिशियल दीयों की मांग अधिक है. हालांकि दीयों से ही दीपावली की रौनक है और प्रत्येक वर्ष दीपावली का इंतजार कुम्हारों को बहुत ही बेसब्री से रहता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में मिट्टी के दीयों की रोशनी फीकी पड़ती जा रही है. जिसके कारण चाक की रफ्तार पर भी ब्रेक लगाने लगा है.

हाइटेक दौर में चाक की रफ्तार पर लग रहा ब्रेक

बीते 8-10 वर्षों में बिजली से जगमगाने वाले झालरों, लड़ियों, रंग-बिरंगे बल्बों सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामग्री का प्रचलन काफी बढ़ा है. हाइटेक युग ने परंपराओं को ओझल करना शुरू कर दिया है. पहले दीपावली में दीपों का उपयोग होता था और जिससे इनकी अच्छी आमदनी हो जाती थी. प्रभात खबर का अपील है कि आप इस दीपावली अपने आसपास के कुम्हारों से मिट्टी के दीये खरीदें और उसी से दीपों का त्योहार दीपावली मनाएं. ये पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है और आपकी इस पहल से दर्जनों घर में दीये रोशन हो सकेंगे.

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कुम्हारी का धंधा पड़ा मंदा नयी पीढ़ी उदासीन

मोतिहारी के बंजरिया स्थित चैलाहां निवासी कुम्हार रामबाबू पंडित, सुरेश पंडित, ललन पंडित सहित अन्य ने बताया कि जब से चाइनीज आइटम बाजार में आये हैं, तब से दीये नहीं के बराबर बिकते हैं. धंधा मंदा पड़ जाने से परेशान बढ़ गया है. पहले दीपावली में लाखों दीये बिक जाते थे, पर अब हजार दीये ही बिक पाते. मिट्टी नहीं मिलने की समस्या अलग है. अब लखौरा से मिट्टी आता है. कारोबार की सुस्ती से नयी पीढ़ी ध्यान नहीं देती और जिसके कारण पुश्तैनी कारोबार अब समाप्ति की ओर है.

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