Bihar News: पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की परिकल्पना पर बने सरकारी अस्पताल को अब स्वास्थ्य विभाग निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रहा है. बड़े कारपोरेट हॉस्पिटल की तर्ज पर बनाए गए बिहार के इकलौते सरकारी नेत्र रोग अस्पताल को चलाने में सरकार की रुचि नहीं है. पटना के राजेंद्र नगर स्थित अतिविशिष्ट नेत्र रोग अस्पताल अब निजी अस्पताल बनने जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग जल्द ही इस अस्पताल को निजी हाथों में दे सकता है. इसके लिए कुछ निजी अस्पतालों से बातचीत चल रही है. तत्काल प्रभारी निदेशक के अलावा कोई डॉक्टर यहां पदस्थापित नहीं है. कोरोना महामारी के दौर में जब आइसोलेशन के लिए बेड कम पड़ गए थे तो यहां रोगियों को रखा गया था.
शंकर नेत्रालय ने दिखायी रुचि
देश की प्रसिद्ध नेत्र अस्पतान शंकर नेत्रालय के प्रबंधन ने इस अस्पताल को लेने में रुचि दिखायी है. पिछले दिनों बेंगलुरू से अस्पताल के चिकित्सक व पदाधिकारी पटना आये थे और अस्पताल का निरीक्षण किया. स्वास्थ्य विभाग से मिले निर्देश पर अस्पताल के प्रभारी निदेशक डॉ. अजीत कुमार द्विवेदी अवकाश के दिन भी आए और टीम को सभी छह माड्युलर ओटी समेत 106 बेड का पूरा अस्पताल दिखाया. हालांकि, टीम या निदेशक ने यह नहीं बताया कि वे किस अस्पताल से हैं, लेकिन विभागीय सूत्रों का कहना है की टीम शंकर नेत्रालय की थी. पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी में शंकर नेत्रालय के उदघाटन के अवसर पर अस्पताल प्रबंधन से बिहार में भी इस प्रकार के अस्पताल खोलने की आग्रह किया था.
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चार वर्ष में न डॉक्टर मिले न चिकित्साकर्मी
यह अस्पताल नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा गया था, लेकिन उद्घाटन के बाद ही यह सरकार के स्तर पर उपेक्षित रहा. यहां के कर्मचारियों ने बताया कि 2020 में नये भवन का उद्घाटन हुआ, लेकिन स्थापना काल से ही यहां निदेशक के अलावा कोई स्थायी डॉक्टर या चिकित्साकर्मियों की नियुक्ति नहीं हुई. वर्तमान में तो प्रभारी निदेशक के अलावा सिर्फ चार प्रतिनियुक्त डॉक्टर व चार बांड डॉक्टरों के सहारे यह अस्पताल चल रहा है. बावजूद इसके हर दिन चार से पांच मोतियाबिंद सर्जरी के साथ कई महंगी जांचें मुफ्त की जा रही है. ओपीडी सेवा का प्रतिदिन औसतन 300 से अधिक मरीज लाभ लेते हैं. कर्मचारियों के अनुसार यदि बेड संख्या के अनुसार चिकित्सकों व चिकित्साकर्मियों की नियुक्त की जाए तो यह प्रदेश का बड़ा अस्पताल बन सकता है.