बिहार में कोरोना संक्रमण के गहराए संकट के बीच चुनाव आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को भी टाल दिया है. वहीं पंचायत चुनाव अभी नहीं होने के हालात में वैकल्पिक व्यवस्था को लेकर अब सत्ताधारी दल और विपक्षी पार्टियां आमने-सामने हो गई हैं. दोनों में इस राय को लेकर मतभेद है कि चुनाव टलने के हालात में जब पंचायत के प्रतिनिधियों का कार्यकाल पूरा हो जाएगा तो फिर इसकी वैकल्पिक व्यवस्था क्या हो?
बिहार में पंचायत चुनाव टलने से अब जो हालात सामने आ चुका है उसमें वैकल्पिक व्यवस्था के रुप में पंचायतों को अफसरों के हाथों में सौंप दिया जाए या मुखिया और सरपंच सहित अन्य पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल आगे बढ़ा दिया जाए, इसे लेकर दोमत है. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि 15 जून के बाद भी मौजूदा निर्वाचित प्रतिनिधियों को ही पंचायत के कामकाज का संचालन करने दिया जाए. वहीं सत्ताधारी दल इसके ठीक विपरीत राय सामने रख रही है. उनका मानना है कि सरकार इसपर उचित फैसले ले सकती है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा मौजूदा जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल बढ़ाने के पक्ष में नहीं है. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद का मानना है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपना कार्यकाल पूरा करने पूरे 5 साल का समय मिल चुका है. इस दौरान उन्होंने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभा ली है और अगर उनसे कोई काम पूरा नहीं हो पाया है तो वो सरकार अब अपने स्तर से पूरा करा लेगी.वहीं जदयू इस मामले को लेकर अभी खुलकर स्पस्ट कोई राय नहीं दे रही.
जदयू के नेताओं का मत है कि अभी कोरोना संकट के दौर से पूरा प्रदेश गुजर रहा है. उचित समय आने पर सरकार इसपर उचित फैसले ले लेगी. वहीं राजद इस मुद्दे पर पूरी तरह से सत्ताधारी दलों के मत से अलग है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा कि सरकार अभी किसी भी दूसरे विकल्प पर ना सोचते हुए वर्तमान जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल बढ़ा दे. वहीं कांग्रेस जनतांत्रिक निकाय में अफसरशाही के न्यूनतम हस्तक्षेप को आदर्श स्थिति मानती है. बिहार में कोरोना संक्रमण के कारण पंचायत चुनाव में रुकाबट तथा Latest News in Hindi से अपडेट के लिए बने रहें।
POSTED BY: Thakur Shaktilochan