पश्चिम चंपारण के बेतिया में पुलिस कस्टडी के अंदर युवक की मौत के बाद जमकर हंगामा हुआ जिसमें एक पुलिसकर्मी की मौत हो गयी. वहीं दर्जन भर से अधिक पुलिसकर्मी जख्मी हुए हैं. पुलिस कस्टडी में मौत का मामला यह पहली बार सामने नहीं आया है. इससे पहले भी हाल में ही कई मौतें हुई जिसके बाद पुलिस पर सवाल खड़े हुए और हंगामा हुआ.
बेतिया के बलथर थाना की पुलिस ने डीजे चलाने वाले युवक को हिरासत में ले लिया और कस्टडी में ही उसकी मौत हो गयी. पुलिस पर आरोप लगा है कि बेरहमी से युवक की पिटाई की गयी और उसकी मौत हो गयी. जबकि उसका जुर्म इतना गंभीर नहीं था कि उसे बेरहमी से पीटा जाए. पुलिस इस आरोप को नहीं मान रही है लेकिन गुस्साए भीड़ ने एक पुलिसकर्मी की जान तक ले ली. पुलिस कस्टडी में मौत के कुछ मामले को जानते हैं.
पिछले दिनों पटना के अगमकुआं थाने में मोबाइल लूट मामले में गिरफ्तार एक व्यक्ति की मौत अस्पताल में इलाज के दौरान हो गयी थी. मृतक रंजीत साहनी के परिवार का आरोप था कि पुलिस ने उसे बेरहमी से पीटा था और उसी से उसकी मौत हुई है. पटना के एसएसपी मानवजीत सिंह ढिल्लों ने इस मामले को लेकर बताया था कि वो नशे का आदी था. कस्टडी में उसे बेचैनी महसूस हुई और अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गयी.
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नालंदा जिला में भी ऐसा मामला सामने आ चुका है जब पुलिस कस्टडी में इलाजरत कैदी की सदर अस्पताल में संदेहास्पद स्थिति में मौत हो गयी थी. पिछले ही दिनों की ये बात है जब अपने खलासी की हत्या के आरोप में जेल में बंद धुरल यादव की मौत के बाद उसके परिजनों ने पुलिस पर आरोप लगाया था कि कस्टडी में बेरहमी से पीटकर उसकी जान ले ली गयी. आरोप लगा था कि धुरल यादव डायबिटीज, दमा और ब्रोकाइटिस बीमारी से ग्रसित था लेकिन पुलिस ने बेरहमी से पीटा. पिटाई से उसके पैर में लगे स्टील के रड तक बाहर निकल आए थे.
पुलिस कस्टडी में मौत का आरोप सहरसा में कोसी के कुख्यात पप्पू देव की मौत के बाद भी पुलिस पर लगा था. आरोप था कि पुलिस ने जमीन विवाद के एक मामले में पप्पू देव को उठाया और इस कदर बेरहमी से उसकी पिटाई की थी कि उसकी मौत हो गयी. पुलिस इसे दिल का दौरा पड़ने से मौत की बात बताती रही. लेकिन सोशल मीडिया पर पप्पू देव की जो तस्वीरें वायरल हो रही थी उसमें बहुत कुछ साफ प्रतीत हो रहा था.
पिछले साल भोजपुर में एक महिला की मौत के मामले में भी पुलिस पर सवाल खड़े हुए थे. वहीं भागलपुर के बिहपुर में एक साल पहले एक युवक को छोटी सी वजह पर थानेदार ने हाजत में बंद करके पीटा था. मृतक आशुतोष पाठक का मुद्दा काफी गरमाया था और थानेदार के निलंबन मात्र से मामला ठंडे बस्ते में चला गया. आशुतोष पाठक के मृत शरीर पर काफी गहरे जख्मों के निशान थे. थाना परिसर में लहू पसरा मिला था जबकि मेडिकल रिपोर्ट में उसके सीना, दोनों पैर के घुटने, नाक पर चोट व खून का दाग और शरीर के पिछले हिस्सों में भी चोट के निशान मिले थे.
भागलपुर के ही एक मामले में बरारी थाना अंतर्गत ऐसा मामला सामने आया था जब पुलिस कस्टडी में एक व्यक्ति की मौत के बाद पुलिस के रवैये पर सवाल खड़े हुए थे. इन तमाम उदाहरण पर सेवा से रिटायर हो चुके एक आइपीएस अधिकारी बताते हैं कि कई बार ऐसे मामले तब आते हैं जब व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रसित हो और सहन नहीं कर सके. जबकि कई मामलों में चोट गलत जगह लगने से ऐसी मौतें होती है. पुलिसकर्मी को कई बातों का ख्याल रखकर ही पूछताछ करना चाहिए.
POSTED BY: Thakur Shaktilochan