Bihar Politics: कांग्रेस की दिल्ली में हार के बाद बिहार में बढ़ा सियासी हलचल, लालू-तेजस्वी के प्लान पर लगा ग्रहण

Bihar Politics दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई है. लेकिन कांग्रेस की इस हार के बाद बिहार में गठबंधन के सहयोगियों की नींद उड़ बैठकों का दौर शुरु हो गया है.

By RajeshKumar Ojha | February 9, 2025 3:25 PM

Bihar Politics दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई है. लेकिन, कांग्रेस की इस हार से सबसे ज्यादा बिहार में आरजेडी परेशान है. लोकसभा चुनाव तक गठबंधन की चर्चा करने वाले आरजेडी नेता अब नाप तौल कर बयान दे रहे हैं. कांग्रेस की कुछ दिनों से बिहार में बढ़ी सक्रियता को हल्के में लेने वाले आरजेडी के सीनियर नेता भी कह रहे हैं कि गठबंधन के बंधन से कांग्रेस निकली तो आरजेडी के लिए बिहार में कांग्रेस वर्ष 2020 विधान सभा चुनाव का चिराग पासवान बन जायेंगे. दिल्ली चुनाव की चर्चा कर वे पूरे समीकरण को भी समझा रहे हैं.

दिल्ली चुनाव में कांग्रेस ने हार कर के भी क्षेत्रीय दलों को एक बड़ा सबक सिखा दिया है. दिल्ली में कांग्रेस शून्य पर आउट हो गई है. लेकिन उसके वोटर आम आदमी पार्टी (AAP) की हार के लिए बड़ा कारण बन गए. इसके बाद ही इस बात की चर्चा भी शुरु हुई है कि बीजेपी विरोधी क्षेत्रीय दलों के लिए कांग्रेस से गठबंधन कितनी जरूरी है.

बिहार की राजनीति को समझने वाले वरीय पत्रकार लव कुमार कहते हैं कि अगर बिहार में भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस को भाव नहीं देंगे तो केजरीवाल बनने में उनको देर नहीं लगेगी. कांग्रेस ने दिल्ली से लालू यादव और तेजस्वी यादव को एक तरह से साफ-साफ संकेत भी दे दिया है बिहार विधान सभा चुनाव में हल्के में लिए तो दिल्ली बनने में देर नहीं लगेगी.

दरअसल, दिल्ली में कांग्रेस का खाता नहीं खुला. लेकिन पार्टी को 6 फीसदी से अधिक वोट मिले. AAP को 43 प्रतिशत से ज्यादा और भाजपा को करीब 46 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस के 6 फीसदी वोट ने AAP की सीटें 63 से घटाकर 22 कर दीं और बीजेपी को 48 सीटों के साथ बड़ी जीत मिली. यह हार AAP के लिए एक सबक है. कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करना. इसके साथ ही इस चुनाव में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के लिए जरूरी और मजबूरी के रूप में उभरी है. जो यह नहीं समझेगा उसके लिए कांग्रेस ‘हम तो डूबे हैं सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे’ वाली कहावत चरितार्थ कर देगी.

कांग्रेस जरूरत और मजबूरी क्यों ?

कांग्रेस जरूरत और मजबूरी क्यों है? इसका जवाब जानने के लिए हरियाणा विधानसभा चुनाव को समझना होगा. जहां AAP ने कांग्रेस से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया था. कांग्रेस और AAP अलग-अलग लड़े. नतीजा, हरियाणा में कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह AAP बनी. दिल्ली में भी दोनों के बीच गठबंधन नहीं हुआ और नतीजा सबके सामने है. यहां भी AAP की हार की वजह कांग्रेस बनी. मतलब हरियाणा वाला बदला दिल्ली में ले लिया गया.

दिल्ली चुनाव से पहले बिहार में आरजेडी, कांग्रेस को भाव नहीं दे रही थी. विधान सभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और आरजेडी का अनबन कई बार सामने आ चुके हैं. लेकिन, हाल के दिनों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का बिहार में बार बार जातिगत जनगणना वाला बयान आरजेडी को असहज कर रखा है. राहुल गांधी के इस बयान से तेजस्वी यादव बैकफुट पर हैं. इधर कांग्रेस हर हाल में 2020 वाली सीट आरजेडी से चाहती है.

राजनीतिक पंडित कांग्रेस की इस पहल को प्रेशर पॉलटिक्स के रुप में देख रही है. आरजेडी सूत्रों का कहना है कि लालू यादव अभी तक कांग्रेस को 70 सीट देने के मूड में नहीं थे. लालू-तेजस्वी कांग्रेस को 50 से भी कम विधानसभा सीट देने का मन बनाया था. लेकिन दिल्ली रिजल्ट के बाद साफ हो गया है कि अगर कांग्रेस महागठबंधन से बाहर हो जाती है तो लालू परिवार को अरविंद केजरीवाल तो बिहार में बना ही सकती है.

दिल्ली के चुनाव नतीजों ने क्षेत्रीय दलों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कांग्रेस की अनदेखी करना उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है. सियासी पंडितों का भी मानना है कि बीजेपी विरोधी गठबंधन में कांग्रेस एक महत्वपूर्ण कड़ी है. इसकी उपेक्षा करके रीजनल पार्टियां अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे. हालांकि अब यह देखना होगा कि बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी कांग्रेस को कितना भाव देती है.

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