गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर बिहार की राजनीति में जो उबाल आया, उसने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है. सत्तारूढ़ गठबंधन के दल हों या विपक्षी दल, सभी की अलग-अलग बैठकों का दौर जारी है. बिहार में सरकार बनाने और बिगाड़ने के लिए सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति बना रहे हैं. जनता दल यूनाइटेड (जदयू) सुप्रीमो नीतीश कुमार के साथ सत्ता में साझीदारी कर रही राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों सरकार बनाने की जुगत में लग गईं हैं. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की पार्टी के बीच में जिस तरह की तल्की आई है, उसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है. यह गठबंधन कभी भी टूट सकता है. भाजपा और राजद दोनों इसमें अपना-अपना नफा-नुकसान देख रहे हैं. सबसे बड़ी चुनौती राजद के लिए है, जो किसी भी हाल में बिहार की सत्ता में बने रहना चाहती है.
यही वजह है कि इस राजनीतिक संकट से निबटने के लिए राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव खुद सक्रिय हो गए हैं. लालू ने पूरी कमान अपने हाथों में ले ली है. सरकार बनाने के लिए 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में किसी भी पार्टी को 122 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी. अगर जदयू ने राजद से अलग होने का ऐलान कर दिया, तो लालू प्रसाद की पार्टी के लिए बहुमत जुटाना मुश्किल हो जाएगा. इस वक्त विधानसभा में राजद के 79, कांग्रेस के 19 और वामदलों के 16 विधायक हैं. कुल मिलाकर 114 सदस्यों का समर्थन इस गठबंधन को है. उसे आठ और सदस्यों की जरूरत है. इसलिए कथित तौर पर लालू प्रसाद ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी पर भी डोरे डालने शुरू कर दिए हैं.
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खबर है कि राजद सुप्रमो लालू प्रसाद ने हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा (हम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी को बिहार का उप-मुख्यमंत्री बनाने का ऑफर दिया. हालांकि, जीतनराम मांझी ने इस ऑफर की बात को महज अफवाह करार दिया है. जीतनराम मांझी इससे पहले भी कह चुके हैं कि उन्हें राजद या महागठबंधन के साथ नहीं जाना. मांझी की पार्टी ‘हम’ के पास 4 विधायक हैं. उधर, भाजपा के 78 विधायक हैं. अगर नीतीश कुमार एक बार फिर भाजपा के साथ जाते हैं, तो उनके 43 और एक निर्दलीय विधायक को मिलाकर कुल 122 विधायक हो जाते हैं. हालांकि, नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में वापसी को लेकर भी कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले हैं. हालांकि, यह जरूर कहा जा रहा है कि राजनीति में बंद दरवाजे खुल जाया करते हैं.
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ज्ञात हो कि हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब बिहार की यात्रा पर आए थे, तो उन्होंने स्पष्ट कहा था कि नीतीश कुमार के लिए अब एनडीए के दरवाजे बंद हो चुके हैं. वहीं, कल रोहिणी के ट्वीट से जब राजद और जदयू के बीच तल्खी बढ़ी, तो चर्चा तेज हो गई कि नीतीश कुमार एक बार फिर लालू का साथ छोड़कर भाजपा के साथ जा सकते हैं. सुशील मोदी ने बयान दिया कि केंद्र का जो फैसला होगा, वह मानेंगे. ऐसे में देखना है कि बिहार की राजनीति में आगे क्या होता है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बिहार का गठबंधन टूट जाता है या कांग्रेस और लालू प्रसाद मिलकर इस गठबंधन को बचाने में कामयाब हो जाते हैं.