Bihar Politics: लोकसभा चुनाव से पहले सहनी ने एनडीए और महागठबंधन को लेकर कही ये बात

Bihar Politics मुकेश सहनी ने कहा कि चुनाव में मेरा मुद्दा निषाद आरक्षण है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 13, 2024 5:06 PM

Bihar Politics लोकसभा चुनाव से पहले विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी ने बिहार एनडीए और महागठबंधन के नेताओं से दो टूक कहा कि जो निषादों को आरक्षण देने का काम करेगा हम उसके साथ रहेंगे. चुनाव में सीट मेरे लिए मायने नहीं रखता है. मेरे लिए निषादों का आरक्षण सबसे बड़ा मुद्दा है. मैं और मेरी पार्टी इससे समझौता नहीं करेगी.

संघर्ष कर नाम कमाया है, विरासत में नाम नहीं मिला था

सहनी ने कहा कि राजनीति में मैंने जो नाम हासिल किया है वह हमने संघर्ष कर के प्राप्त किया है. मुझे ये नाम विरासत में नहीं मिला है. अपनी और अपनी पार्टी के नाम को हासिल करने के लिए अपने साथियों के साथ सड़क पर उतरकर संघर्ष किया. इसका उद्देश्य केवल यही था कि निषाद समाज को आरक्षण मिले. देश के कई दूसरे राज्यों में निषाद समाज को आरक्षण मिल रहा है तो वह आरक्षण बिहार में क्यों नहीं मिल रहा है? तब जबकि देश एक है और संविधान एक है.

अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज में लगा दिया

मुकेश सहनी ने कहा कि 2018 में हमने पार्टी बनाई और उसके बाद से कई चुनाव को लड़ा. पूरे बिहार में मेहनत करके हमने अपनी एक दुनिया और पहचान बनाई है. उद्देश्य यही है कि समाज का भला है. मैंने अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा केवल समाज की भलाई के लिए लगा दिया.

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सीट नहीं आरक्षण चाहिए

मुकेश सहनी ने कहा कि आने वाले चुनाव में मेरी पार्टी के लिए सीट मायने नहीं रखता है. हमारा उदेश्य निषाद आरक्षण की मांग को स्वीकार करना है. मुकेश सहनी ने यह भी कहा कि एक तरफ एनडीए है तो दूसरी तरफ इंडी ब्लॉक. इन दोनों में से जिस किसी को भी निषाद समाज का वोट चाहिए उसे निषाद आरक्षण को स्वीकार करना होगा. जो भी इस पर सहमति देगा, मैं उसके साथ जाऊंगा. मुकेश सहनी ने यह भी कहा कि बगैर आरक्षण पर बात किये मैं किसी के साथ समझौता नहीं करूंगा.

निषाद समाज के वोटों को अनदेखा नहीं किया जा सकता

मुकेश सहनी ने कहा कि हमारे मुद्दे पर अभी गोल-गोल सहमति की बात सामने आ रही है लेकिन स्पष्ट रूप से भी कुछ नहीं कहा जा रहा है. सीएम नीतीश कुमार को लेकर सहनी ने कहा कि महागठबंधन को छोड़कर वे एनडीए में आ गए हैं. लेकिन बिहार की राजनीति में इसको लेकर ऐसा कोई बदलाव नहीं आया है जिससे निषाद समाज के मतों को अनदेखा किया जा सके.

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