Bihar Politics : प्रवासी नेताओं की एंट्री से टेंशन में राजद

Bihar Politics चुनाव से ठीक पहले राजद में सब कुछ ठीक नहीं है. दूसरी पार्टियों या प्रवासियों नेताओं की पार्टी में प्रवेश और उन्हें समय पूर्व अहमियत दिये जाने से राजद के धुर समाजवादी खेमे में जबर्दस्त बेचैनी है.

By Prabhat Khabar News Desk | June 27, 2020 7:41 AM

पटना : चुनाव से ठीक पहले राजद में सब कुछ ठीक नहीं है. दूसरी पार्टियों या प्रवासियों नेताओं की पार्टी में प्रवेश और उन्हें समय पूर्व अहमियत दिये जाने से राजद के धुर समाजवादी खेमे में जबर्दस्त बेचैनी है. उनकी छटपटाहट का विस्फोट डाॅ रघुवंश प्रसाद सिंह के पद से इस्तीफा देने की चेतावनी के रूप में सामने आयी है. सियासी जानकारों के मुताबिक बेशक धुर समाजवादी पार्टी न छोड़ें,लेकिन उनकी उदासीनता चुनावों में भारी पड़ सकती है. राजद में समाजवादियों का यह वह खेमा है, जिसने खराब दिनों में पार्टी का झंडा उठा रखा था.

राजद के पुराने नेता अंदर-ही-अंदर चल रहे नाराज

सियासी जानकारों के मुताबिक राजद में पिछले करीब एक साल में अच्छी- खासी तादाद में बाहरी नेताओं ने दस्तक दी है. आजाद गांधी, सुरेश पासवान, रमई राम, उदय नारायण चौधरी, सलीम परवेज, वृशिण पटेल, दसई चौधरी आदि ऐसे नेता हैं, जो राजद से बाहर निकले और चुनाव के पहले एक बार फिर दल में शामिल हो गये. राजद के पुराने नेता हाशिये पर किये जाने से अंदर -ही- अंदर नाराज हैं. इनकी नाराजगी को स्वर पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने दिया, जब उन्होंने रामा किशोर सिंह का पार्टी में आने की सूचना आते ही अपनी नाराजगी दो टूक व्यक्त कर दी. इसकी वजह से पार्टी आलाकमान भी टेंशन में है. पार्टी से जुड़े सियासी जानकारों के मुताबिक डॉ रघुवंश की साख पार्टी में कहीं ज्यादा बुलंद है. उनसे जुड़े तमाम राजद विधायक हैं,जो चाहते हैं कि पार्टी आलाकमान डॉ रघुवंश की नाराजगी को दूर करे.

स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं की हुई उपेक्षा

राज्यसभा की उम्मीदवारी हो या विधान पार्षद की उम्मीदवारी, इसमें अधिकतर मामले में पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं की उपेक्षा की गयी. खासतौर पर फारुख शेख की उम्मीदवारी को लेकर पार्टी कार्यकर्ता ज्यादा खुश नहीं हैं. राजद के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर कार्यकर्ताओं को सम्मान नहीं मिला, तो आने वाले समय में पार्टी के लिए कठिन चुनौती खड़ी हो सकती है. पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान सचिव कमर आलम का चला जाना भी इसी नाराजगी का उदाहरण माना जा रहा है.

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