Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव-2024 के मद्देनजर राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन ने बिहार में एनडीए को रोकने की खास रणनीति बनायी है. इस के तहत उसने ऐसे मुद्दों पर रार न करने का फैसला किया है, ताकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में न हो. यही वजह है कि सीएए जैसे मुद्दों पर महागठबंधन नेताओं ने केवल नरम बयानी ही की है. धरातल पर खासकर मुस्लिम मतदाताओं को समझाया जा रहा है, महागठबंधन आपके साथ है.
इसके लिए राजद और वामदलों ने मुस्लिम मतदाताओं को भरोसा दिलाने के लिए बाकायदा एक्टिविस्ट्स की एक पूरी फौज उतार दी है. जानकार बताते हैं, महागठबंधन के सामने चुनौती दोतरफा है. पहली, भाजपा को रोकने के लिए किस प्रकार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण रोका जाये. दूसरी, एआइएमआइएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन) को लेकर है. राजद का मानना है कि ध्रुवीकरण होते ही हिंदुओं का वोट भाजपा और मुस्लिम वोट आक्रामक एआइएमआइएम के पक्ष में एकजुट हो सकता है.
महागठबंधन की चिंता एआइएमआइएम को मिले पांच लाख वोट
सियासी जानकारों के मुताबिक अल्पसंख्यक वोटर्स को लेकर चिंता 2020 के विधानसभा चुनाव परिणामों ने पैदा की है, जिसमें एआइएमआइएम ने पांच सीटें जीतीं. बेशक उनमें से चार विधायक राजद के पाले में हैं, लेकिन यह एक जमीनी सच्चाई बतायी जा रही है कि वे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के दौर में चुनाव जीते थे. इसलिए विधायकों के भरेासे पांच लाख वोट महागठबंधन के पक्ष में लाना बड़ी चुनौती होगी. हालांकि, इस चुनौती से निबटने के लिए राजद ने तीन एमएलसी विधान परिषद में पहुंचाये हैं. हाल ही में अब्दुल बारी सिद्दीकी , सैयद फैसल अली और इससे पहले कॉरी साहेब शामिल हैं.
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अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर इस बार महागठंधन की मुख्य चुनौतियां
अररिया में राजद या महागठबंधन प्रत्याशी को जीत के लिए करीब 11 फीसदी वोट की बढ़त बनाने की चुनौती होगी,क्योंकि पिछले चुनाव में वह इतने ही वोट से हारा था. किशनगंज में कांग्रेस उम्मीदवार ने अपेक्षाकृत काफी कम मतों से एआइएमआइएम प्रत्याशी को हराया था. यहां उसे बढ़त बनाये रखनी होगी. कटिहार में छह फीसदी वोट से कांग्रेस हारी थी. यहां उसे मेहनत करनी होगी. दरभंगा में पिछले लोकसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार भारी मतों से हारे थे. जीते प्रत्याशी की तुलना में राजद प्रत्याशी को 27 फीसदी कम वोट मिले थे. सीवान में कमोबेश यही स्थिति थी. हालांकि, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह सीट महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. यह देखते हुए कि हिना शहाब अब उनके साथ नहीं हैं.