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बिहार के इन जिलों में तैनात हुए तीनों ट्रांसजेंडर दारोगा, SI मधु ने बताया किस तरह थाने में करेंगी काम…

बिहार पुलिस में चयनित ट्रांसजेंडर दारोगा को उनका जिला आवंटित कर दिया गया है. ट्रांसजेंडर दारोगा मधु ने बताया कि वो किस तरह थाने में काम करेंगी.

By ThakurShaktilochan Sandilya | October 22, 2024 6:14 AM

बिहार पुलिस में 1239 दारोगा को सीएम नीतीश कुमार ने सोमवार को नियुक्ति पत्र सौंपा. इन पुलिस अवर निरीक्षकों में तीन ट्रांसजेंडर्स (bihar transgender daroga) भी शामिल हैं. बंटी कुमार, रोनित झा और मधु कश्यप को भी अब पोस्टिंग मिल चुकी है. पहली बार बिहार पुलिस में तीन ट्रांसजेंडर दारोगा शामिल किए गए हैं. वहीं सीएम नीतीश कुमार ने घोषणा की है कि 78 हजार और पुलिसकर्मियों की बहाली की जाएगी. छह महीने के अंदर यह बहाली होगी. इधर, तीनों ट्रांसजेंडर दारोगा को जिला आवंटन कर दिया गया है.

तीनों ट्रांसजेंडर दारोगा की तैनाती

बिहार पुलिस में पहली बार तीन ट्रांसजेंडर दारोगा चयनित किए गए हैं. तीन ट्रांसजेंडर में समस्तीपुर के बंटी कुमार, सीतामढ़ी के रोनित झा और पटना की मधु कश्यप का चयन हुआ है. इनमें बंटी कुमार को बक्सर, रोनित झा को सुपौल और मधु कश्यप को समस्तीपुर जिले में पोस्टिंग मिली है. तीनों अब अपने-अपने आवंटित जिलों में जाकर योगदान देंगे.

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संघर्ष आसान नहीं था, पर पढ़ाई ने साथ दिया : मधु

बांका की रहने वाली ट्रांसजेंडर मधु कश्यप ने कहा कि उनका संघर्ष आसान नहीं था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सुप्रीम कोर्ट के प्रति आभार जताते हुए उन्होंने कहा कि हरप्रकार की चुनौतियों के लिए वह तैयार हैं. सोमवार को दारोगा की नियुक्ति पत्र लेने के बाद मधु ने कहा कि उसका जज्बा हाइ है. वह हर परिस्थिति से लड़ने को तैयार हैं, लड़कर ही मैं यहां तकपहुंची हूं. उन्होंने कहा कि पिछले दस साल से घर से बाहर रह रही है.यह भी ट्रेनिंग ही है. आप जब इस स्टेज पर हैं जब कुछ भी नहीं होता है, तो डरना क्या है. ट्रांसजेंडर भाई बहनों से अपील है कि पढ़ लो भाई, पढ़ो. जीवन की रक्षा पढा़ई या विद्या ही करती है. आप कहीं भी दो यब्द पूछने का हैसियत रख सकते हैं. समाज थाली परोसकर नहीं देता. क्लास में आने की अपील की. एक होकर पढ़ने की सलाह दी.

जो परेशानी खुद झेली, उसपर भी करेंगी काम…

दारोगा मधु ने कहा कि पद मिलने से वह बहुत ख्रुश हैं. बहुत कठिन सफर रहा. लेकिन कई लोगों का सहारा मिला. कई बहने मेरे लिये खाना लेकर आती थी. पढ़ने के क्रम में रास्ते में भी टोकाटोकी होती थी. लेकिन,इन सबसे लड़ कर संघर्ष किया. रहने खाने में भी दिक्क्त आया. सेल्टर होम में रहने के कारण आने-जाने में भी परेशानी होती थी. जब लोगों ने जाना कि ट्रांस हूं तो डेरा मिलने में भी परेशानी हुई. दारोगा बनने का तय नहीं किया था, लेकिन यह सोचा था कि अच्छे पद पर जायेंगी. पटना में रहने वाले ट्रांसजेंडर के साथ बहुत मारपीट होती थी और प्राथमिकी भी दर्ज नहीं करती थी. इस समाज के लिए लड़ने का मन में आया तो पुलिस में जाने का सोची.

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