बिहार कांग्रेस की हालत फिलहाल किसी से छिपी नहीं है. आलाकमान जहां लगातार नये-नये प्रयोगों से प्रदेश में कांग्रेस की हालत को दुरुस्त करने के प्रयास में जुटा है वहीं धरातल पर कांग्रेस लगातार फिसलती ही जा रही है. बड़े नेताओं की बयानबाजी से अलग होकर हकीकत की तरफ झांके तो कांग्रेस की बिहार में ग्राउंड रियालिटी बेहद ही चिंताजनक है. आगामी विधान परिषद चुनाव को लेकर कांग्रेस अब बड़े धर्मसंकट में उलझी हुई लग रही है.
विधानसभा उपचुनाव में राजद और कांग्रेस के बीच विवाद पनपा और दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े. एमएलसी चुनाव में साथ लड़ने की इच्छा कांग्रेस ने ही जताई और अंत तक दिल्ली में भी उनके नेता राजद सुप्रीमो से सकारात्मक पहल को लेकर डटे रहे. लेकिन राजद ने जब साफ कर दिया कि कांग्रेस के साथ वो बिहार में कोई कदम नहीं उठाएगी तो अब कांग्रेस को चुनावी मैदान में अकेले उतरना मुश्किल पड़ रहा है. यह कोई बयान नहीं बल्कि हकीकत की तरफ झांकने पर साफ दिख रहा है.
कांग्रेस ने तय किया है कि सभी 24 सीटों पर दिल्ली ही अंतिम फैसला लेगी. सभी सीटों के लिए अलग-अलग ऑब्जर्वर भेजे गये जो ग्राउंड हकीकत देखकर उम्मीदवारों का फैसला करेंगे. उनके सुझाव पर दिल्ली से अंतिम फैसला सामने आएगा. वहीं कितने सीटों पर उम्मीदवार उतरेंगे ये भी अभी तय नहीं हुआ है.
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चुनाव लड़ने को तैयार कांग्रेस के पास फिलहाल अभी तक किसी भी जिला परिषद के नव निर्वाचित अध्यक्ष या प्रखंड के प्रमुख या पंचायत के मुखिया का समर्थन नहीं है. कांग्रेस पार्टी से सिर्फ दर्जन भर पंचायत समिति के सदस्य ही जुड़े हैं. सदस्यता अभियान में एक भी नव निर्वाचित जिला परिषद अध्यक्ष या प्रमुख ने सदस्यता नहीं ली है.
नगरपालिका क्षेत्रों में भी कोई मेयर या मुख्य पार्षद भी कांग्रेस समर्थक नहीं हैं. इनके साथी भी विधान परिषद के प्रत्याशियों के निर्वाचन में मतदाता होते हैं. मतदाताओं के स्तर पर कांग्रेस की पकड़ मजबूत नहीं है, जिसके कारण उम्मीदवार को अपने बल पर ही मैदान में उतरना होगा.
POSTED BY: Thakur Shaktilochan