एचआइवी संक्रमण अब मातृत्व के लिए अभिशाप नहीं रह गया है. बशर्तें महिलाओं को पता हो कि वे एचआइवी संक्रमित हैं. चिकित्सा पद्धति ने मां के एचआइवी संक्रमण से उनके गर्भ में पल रहे बच्चे का बचाव मुमकिन कर दिया है. पटना जिले में 2021-22 में कुल 272 एचआइवी संक्रमित महिलाओं में से 244 ने स्वस्थ बच्चाें को जन्म दिया है. यह इसलिए संभव हुआ है कि गर्भधारण के दौरान एचआइवी टेस्ट अनिवार्य किया गया है. इस टेस्ट में गर्भवती की पॉजिटिव रिपोर्ट आते ही इलाज शुरू कर दिया गया. इससे गर्भ में पल रहे बच्चे पर इस संक्रमण का असर नहीं पड़ा.
बिहार एड्स कंट्रोल सोसाइटी का दावा है कि पटना सहित पूरे राज्य में एचआइवी पीड़ित महिलाओं में जागरूकता आयी है. साथ ही सरकारी स्तर पर जांच व इलाज की सुविधाएं बढ़ी हैं. नतीजतन 90% तक शिशु स्वस्थ जन्म ले रहे हैं. सोसाइटी व प्रिवेंशन ऑफ पेशेंट टू चाइल्ड ट्रांसमिशन (पीपीटीसीटी) के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान समय पर एचआइवी का इलाज करा कर गर्भस्थ शिशु को जानलेवा संक्रमण के खतरों से बचाया जा सकता है. वहीं, सोसाइटी के संयुक्त निदेशक मनोज कुमार सिन्हा ने बताया कि गर्भावस्था में सभी महिलाएं एचआइवी की जांच जरूर कराएं. टेस्ट पॉजिटिव आने पर महिलाएं गर्भावस्था के तीसरे माह से दवा खाना शुरू कर दें. इससे शिशु को 90 से 95% तक संक्रमण से बचाया जा सकता है. 18 माह तक शिशु को डॉक्टर से संपर्क रहने की जरूरत है.
पटना जिले में 2020-21 में करीब 4500 से अधिक लोगों की एचआइवी जांच और काउंसेलिंग की गयी है. इनमें पुरुष व महिलाएं और बच्चे तीनों शामिल हैं. इन महिलाओं में करीब 245 गर्भवती ने बच्चों को जन्म दिया. वहीं, जिन महिलाओं की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी, उनका समय पर ही स्वास्थ्य विभाग ने इलाज शुरू कर दिया था, जिससे सभी नवजात की एचआइवी रिपोर्ट निगेटिव आयी है. उन्होंने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया के तहत एंटी रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट (एआरटी) सेंटर में एचआइवी संक्रमित महिला के गर्भवती होते ही उसका विशेष ख्याल रखा जाता है. इसके बाद उसे दवा खाने के लिए विशेष रूप से निर्देश दिया जाता है. इससे गर्भस्थ शिशु पर बीमारी का असर नहीं पड़ा है. समय पूरा होने पर एचआइवी संक्रमित गर्भवती को सुरक्षित प्रसव के लिए पीएमसीएच, आइजीआइएमएस, एनएमसीएच मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रेफर किया जाता है.