Thalassemia day : बोन मैरो ट्रांसप्लांट से मिल रहा थैलेसीमिया से निजात, पर पटना के सरकारी अस्पतालों में सुविधा का अभाव
आज विश्व थैलेसीमिया दिवस है. यह हर साल आठ मई को मनाया जाता है. यह दिन थैलेसीमिया के मरीजों को समर्पित है, जो इस बीमारी से जूझ रहे होते हैं. यह एक गंभीर समस्या है, जिससे दुनियाभर में कई लोग पीड़ित हैं. यह मुख्य रूप से रक्त से जुड़ा एक तरह का आनुवंशिक रोग है. इसमें शरीर में हीमोग्लोबिन ठीक से नहीं बन पाता है. ऐसे मरीजों में ब्लड ट्रांसयूजन होता है. जिन्हें विशेष देखभाल की जरूरत होती है. पटना के सरकारी अस्पतालों में इसकी सुविधा और थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की स्थिति पर पेश है खास रिपोर्ट.
आनंद तिवारी,पटना
Thalassemia day : चिकित्सा जगत में बोन मैरो ट्रांसप्लांट से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के जीवन की राह आसान हुई है. इस सुविधा के आने के बाद पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों की तरह जीवन यापन कर सकते हैं. लेकिन वर्तमान में यह सुविधा पटना सहित पूरे बिहार के किसी भी सरकारी अस्पतालों में नहीं है. इसके लिए मरीजों को या तो प्राइवेट अस्पतालों में या फिर अन्य किसी दूसरे शहरों में जाना पड़ता है. हालांकि, बोन मैरो से थैलेसीमिया के इलाज की सुविधा हाल के दिनों में पटना एम्स अस्पताल में की गयी थी. यहां बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट लगाये गये थे, लेकिन आज तक यहां पीड़ित बच्चों का इलाज इस तकनीकी से नहीं हो पाया है. वहीं दूसरी ओर पटना छोड़ जिले के करीब 70 प्रतिशत जिला अस्पतालों में कंपोनेंट मशीन तक नहीं है. ऐसे में पीड़ित बच्चों को पैक्ड सेल खून के लिए पटना आना पड़ता है.
बिहार में पांच हजार से अधिक बच्चे जूझ रहे इस बीमारी से
स्वास्थ्य विभाग के सरकारी आंकड़ों के अनुसार पटना सहित पूरे बिहार में करीब 1050 थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे पंजीकृत हैं. जिन्हें हर साल करीब 12500 यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है. हालांकि सूत्रों की मानें तो प्रदेश में करीब पांच हजार से अधिक बच्चे ऐसे हैं जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं. इन बच्चों को हर साल 45 से 50 हजार यूनिट खून की जरूरत पड़ती है. ऐसे में विशेषज्ञ कहते हैं कि सभी लोग आगे आकर रक्तदान करेंगे तो इन बच्चों की जिंदगी बचायी जा सकती है.
थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का ये बन रहे सहारा, दे रहे जीवनदान
1. मां ब्लड बैंक : 46 बच्चों का कराया बोन मैरो ट्रांसप्लांट से इलाज
शहर के मां ब्लड बैंक थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को ब्लड देने के साथ-साथ उनका बोन मैरो ट्रांसप्लांट तकनीक से इलाज करा रहा है. ब्लड बैंक के अधिकारियों के मुताबिक बीते ढाई से में अब तक 46 बच्चों का ट्रांसप्लांट कराया जा चुका है. इन बच्चों का इलाज सीएमसी वेल्लोर, नारायणा हॉस्पिटल बैंगलोर और मुंबई के कोकिला बेन हॉस्पिटल में इलाज कराया गया. ये सभी बच्चे पटना के अलावा बिहार के अलग-अलग जिलों के रहने वाले हैं. ट्रांसप्लांट के बाद ये सभी बच्चे सामान्य बच्चों की तरह जीवन यापन कर रहे हैं. वहीं जानकारों के अनुसार बोन मैरो ट्रांसप्लांट बहुत खर्चीला है. एक ट्रांसप्लांट में करीब 10 लाख रुपये खर्च आता है. जबकि मां ब्लड बैंक की ओर से इस योजना के तहत नि:शुल्क ट्रांसप्लांट कराया गया.
2. पीड़ित मरीजों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रिदम भांबरी
कंकड़बाग के रहने वाले समाजसेवी रिदम भांबरी अक्सर जरूरतमंद मरीजों खासकर थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित बच्चों के लिए रक्तदान करते हैं. वे कहते हैं गरीब और पीड़ित बच्चे जिनको खून की जरूरत होती है, उनके लिए मैं साल में दो बार खुद अपना ब्लड दान करता हूं. क्योंकि थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों के लिए खून की जरूरत हमेशा पड़ती है. ऐसे में खून की कमी न हो, इसलिए मैं पिछले पांच साल से लगातार ब्लड दान करता आ रहा हूं. इतना ही नहीं मैं थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित बच्चों को हौसला बढ़ाने के लिए भी काम करता हूं. मैं आम लोगों से भी अपील करता हूं कि वह गरीब व जरूरतमंद लोगों के लिए आगे आएं, ताकि उन्हें नयी जिंदगी मिल सके.
पीड़ित बच्चों को गोद ले करें रक्तदान
थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को रक्त की आवश्यकता लोगों की ओर से किये जा रहे स्वैच्छिक रक्तदान से ही पूरी होती है. ऐसे में आप कम से कम अपने क्षेत्र के एक पीड़ित बच्चे को गोंद लेकर उसके लिए अपना रक्तदान जरूर करें. खासकर गर्मी के मौसम में आप सभी रक्तदानियों को और अधिक सक्रिय होना होगा. वहीं मां ब्लड बैंक की ओर से अब तक 46 पीड़ित बच्चों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जा चुका है. कुल 100 बच्चों के ट्रांसप्लांट का लक्ष्य रखा गया है.
– मुकेश हिसारिया, मां ब्लड सेंटर.
छह साल तक के बच्चों में सफल है प्रत्यारोपण
थैलेसीमिया अनुवांशिक बीमारी है. यह बच्चों में माता-पिता से होती है. इसकी पहचान बच्चों में तीन महीने बाद ही हो पाती है. इस बीमारी में बच्चों के शरीर में खून की कमी होने लगती है. सही समय पर उपचार न मिलने पर बच्चे की गंभीर हालत होने के बाद मौत तक हो जाती है. बोन मैरो प्रत्यारोपण से इस बीमारी का करीब 90 प्रतिशत इलाज संभव है. छह साल तक की उम्र तक के बच्चों का प्रत्यारोपण हो जाना चाहिए. ब्लड चढ़ाने व आयरन थेरेपी देने से इन बच्चों को काफी फायदा मिलता है और वे सामान्य जिंदगी जी सकते हैं.
– डॉ अविनाश सिंह, हेमाटोलॉजिस्ट.
खून की कमी का करना पड़ता है सामना
- आयुष्मान भारत योजना में थैलेसीमिया शामिल है, पर निजी अस्पताल नहीं देते सुविधा.
- निजी अस्पतालों द्वारा ब्लड कैंप नहीं लगाने से मरीजों को खून की कमी का सामना करना पड़ता है.
- निजी अस्पतालों को मरीज के परिजनों को ब्लड रिक्युजिशन फॉर्म भी नहीं देना है, पर इसका अनुपालन नहीं होता.
- स्वास्थ्य विभाग ने सभी निजी अस्पतालों को अपने मरीजों के लिए ब्लड कैंप करने का निर्देश दिया था, फिर भी निजी अस्पताल कैंप नहीं कर रहे हैं.
- अगर पटना में संचालित करीब डेढ़ हजार निजी अस्पताल व नर्सिंग होम हर दिन एक यूनिट भी ब्लड डोनेट कर लें तो महीने में काफी संख्या में जमा यूनिट से रक्त की कमी दूर हो जायेगी.