पारंपरिक जांच से निकल नहीं पा रहे पुलिस पदाधिकारी
एक जुलाई 2024 से तीन नये कानून लागू होने के बाद सूबे के थानों में दर्ज होने वाले केसों की वैज्ञानिक जांच अनिवार्य हो गयी है.
नये कानून के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जुटा कर उसका संरक्षण बनी बड़ी चुनौती
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संवाददाता, पटना.भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के तहत राज्य सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की पहचान, संरक्षण और संग्रहण को लेकर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की है. सभी पुलिस जांच पदाधिकारी को इसका पालन करना अनिवार्य है. इसके तहत हर पुलिसकर्मी को अपने मोबाइल पर एप के जरिये मौके से जब्त सामान, निरीक्षण आदि की ऑडियो-वीडियो बनानी है. साथ ही इन डिजिटल साक्ष्यों को 48 घंटे में अदालत पहुंचाना है. आवश्यकता पड़ने वाले इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जब्त करने में एफएसएल की मदद भी लेनी है. फिलहाल एफएसएल की उपलब्धता सीमित होने से आइओ को अधिकतर मामलों में खुद ही फोरेंसिक रिकॉर्ड रखना होता है. ऐसे में एसओपी का पूरी तरह पालन नहीं होने से चूक की गुंजाइश बनी हुई है.
गड़बड़ी होने पर न्यायालय में प्रमाणिकता होगी प्रभावितइलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को टाइम सेंसेटिव माना जाता है. मसलन इसके आसानी से बदले जाने या क्षतिग्रस्त होने की गुंजाइश रहती है. इसको देखते हुए एसओपी में जांच पदाधिकारियों को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की चेन ऑफ कस्टडी को बनाये रखने के लिए इसकी जब्ती, हस्तांतरण, भंडारण और जांच को ठीक से लिखे जाने का निर्देश दिया गया है. इसमें किसी स्तर पर त्रुटि होने पर न्यायालय के समक्ष उक्त इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की प्रमाणिकता प्रभावित हो सकती है. इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के मामले में बीएनएस की धारा 36(4) के तहत आम आदमी से लेकर पुलिसकर्मी को यह लिखित देना है कि वीडियो के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गयी है.
व्यावहारिक परेशानियां भी झेल रहे आइओकई जांच पदाधिकारियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि नये कानून में घटनास्थल, तलाशी लेने और जब्ती करने के दौरान की वीडियोग्राफी अनिवार्य है, लेकिन कई जगहों पर हालात इसके अनुकूल नहीं होते. कई मामलों में पुलिसकर्मी को अपनी पहचान उजागर किये बिना ही कार्रवाई पूरी करनी पड़ती है. यदि पुलिसकर्मी हथियार लेकर आये किसी बदमाश को पकड़ने के दौरान वीडियोग्राफी करेगा तो उसे पकड़ पाना मुमकिन नहीं होगा. ऐसे में घटनास्थल पर वीडियोग्राफी करना पुलिसकर्मियों के लिए भी घातक होगा. एक व्यावहारिक परेशानी यह भी है कि थानों में एक ही जांच अधिकारी को कई मामले सौंपे जाते हैं. ऐसे में उस जांच अधिकारी के लिए सभी घटनास्थलों पर पहुंचना, वीडियोग्राफी करना और मामले की जांच करना एक साथ संभव नहीं हो पा रहा है.
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