Chauth Chandra: कलंकित चांद को क्यों पूजते है मिथिला के लोग, चौरचन पर क्या है खास परंपरा

Chauth Chandra: गणेश चतुर्थी वाले दिन मिथिला में चौठ चांद या चौरचन पर्व बड़े श्रद्धाभाव से मनाया जाता है. यह पर्व अन्य लोकपर्व की तरह ही सभी जाति वर्ण के लोग एक साथ मनाते हैं. छठ की तरह चौरचन भी पुरुष और स्त्री दोनों समान रूप से करते हैं.

By Ashish Jha | September 3, 2024 2:10 PM

Chauth Chandra: पटना. भारत में मिथिला अपनी लोक संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां के लोक पर्वों का महत्व देश के अन्य सांस्कृतिक इलाकों से अलग और खास है. समय के इतने पहिए घूम जाने के बाद भी यहां परंपराएं महज औपचारिकताएं नहीं रह गई हैं, बल्कि वह धमनियों में घुलकर बह रही हैं. परंपरा का ऐसा ही एक लोकरंग बिहार के मिथिला में चोरचन के मौके पर नजर आता है. चोरचन लोक भाषा में अपभ्रंश है, असल में यह चौठचंद है. चौरचन पर्व पर मिथिला में एक अलग ही परंपरा देखने को मिलती है. एक ओर जब पूरे देश में चतुर्थी का चांद देखने से लोग डरते हैं, वहीं इस दिन मिथिला में लोग चांद की उसी तरह पूजा करते हैं, जैसे छठ के दिन सूर्य की आराधना होती है.

कलंकित चांद देखने की परंपरा

पूरे देश में यह मान्यता रही है कि भादों की चौथ का चांद नहीं देखना चाहिए, यह कलंकित होता है. इसके उलट मिथिला वाले मानते हैं कि, उनका चांद कलंकित नहीं है, उनके आकाश में स्वच्छ चांद चमक रहा है. वह सच्चा है और उसको देखने वाला भी यूं ही सत्य से चमकता रहे. गणेश चतुर्थी वाले दिन मिथिला में चौठ चांद या चौरचन पर्व बड़े श्रद्धाभाव से मनाया जाता है. यह पर्व अन्य लोकपर्व की तरह ही सभी जाति वर्ण के लोग एक साथ मनाते हैं. छठ की तरह चौरचन भी पुरुष और स्त्री दोनों समान रूप से करते हैं. सुबह गणेश पूजा होती है, फिर व्रत रखकर चांद निकलने का इंतजार होता है. दिनभर इस इंतजार के साथ पकवान बनते हैं और फिर जब आकाश में चौथी का चांद उगने में देर करता है तो तो घर की बूढ़ी दादी, अम्मा या पूजा करने वाली स्त्री हाथ में खीर-पूरी लेकर कहती हैं, कहती हैं, उगा हो चांद, लपकला पूरी…

मिथिला में चांद देखने को व्याकुल रहते लोग

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रास्ते से आ रहे गणपति एक बार फिसल कर गिर पड़े तो उनके ढुलमुल शरीर को देखकर चंद्रमा हंस पड़ा. खुद को खूबसूरत समझने वाले चंद्र से गणेश जी ने चांदनी चुराकर उसे कांतिहीन कर दिया और श्राप दिया कि आज के दिन जो तुझे देखेगा, उसे भी चोरी और झूठ का कलंक लगेगा. कहते हैं कि इस श्राप के असर से श्रीकृष्ण भी नहीं बच पाए थे और उन्हें दिव्य मणि चुराने का झूठा आरोप झेलना पड़ा था. ऐसे में सवाल उठता था कि आखिर मैथिल समाज इस दिन चांद को देखने को व्याकुल क्यों रहता है. दरअसल जो चांद, गणेश जी से कलंकित रहा, उसे मिथिला के लोगों ने कलंकमुक्त करा लिया.

परंपरा के पीछे है एक सत्य घटना

कलंकित चांद देखने की परंपरा एक सत्य घटना पर आधारित है. सोलहवीं सदी में चोरी के आरोप में खंडवला राजवंश के मिथिला नरेश का हेमांगद ठाकुर को मुगलों ने कैद कर लिया. एक महात्मा राजा हेमांगद ठाकुर, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में महज बांस की खपच्चियों, पुआलों के तिनकों और जमीन पर कुछ गणनाएं करके अगले 500 वर्षों तक होने वाले सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की तिथियां बता डालीं और इसके आगे के लिए गणना की सरल विधि भी निकाल ली. उन्होंने ये सारा विवरण ग्रहण माला नामक पुस्तक में संकलित किया है, जिसे उन्होंने कैद में रहते हुए रचा था.

राजा हेमांगद पर क्यों लगा चोरी का आरोप

मिथिला नरेश हेमांगद ठाकुर अपने भाई की मौत के बाद राजा तो बन गए, लेकिन जनता से कर लेना, प्रताड़ित करना ये सब उनके बस की बात नहीं थी. दिल्ली के बादशाह को तो लगान समय पर चाहिए था, लिहाजा उसने मिथिला नरेश को तलब करा लिया. मिथिला नरेश से पूछताछ हुई तो बोले, पूजा-पाठ में कर का ध्यान न रहा. बादशाह इस बात को नहीं माना. उसने कर चोरी का आरोप लगाया और कैद में डाल दिया. हेमांगद ठाकुर कैद में यही खगोल गणना में जुट गए. एक दिन पहरी ने देखा तो ये सब बादशाह को बताया. बोला कि मिथिला का राजा पागल हो गया है. जमीन पर दिवाल पर अंकों को लिखता मिटाता रहता है.

बादशाह ने मिथिला को कर दिया लगान मुक्त

बादशाह खुद हेमांगद को देखने कारावास पहुंचा. जमीन पर अंकों और ग्रहों के चित्र देख पूछा कि आप पूरे दिन यह क्या लिखते रहते हैं. राजा हेमांगद ठाकुर ने कहा कि यहां दूसरा कोई काम था नहीं सो ग्रहों की चाल गिन रहा हूं. करीब 500 साल तक लगनेवाले ग्रहणों की गणना पूरी हो चुकी है. बादशाह ने तत्काल हेमांगद को ताम्रपत्र और कलम उपलब्ध कराने का आदेश दिया और कहा कि अगर आपकी भविष्यवाणी सही निकली, तो आपकी सजा माफ़ कर दी जाएगी. हेमांगद ने बादशाह को माह, तारीख और समय बताया. उन्होंने चंद्रग्रहण की भविष्यवाणी की थी. उनके गणना के अनुसार चंद्रग्रहण लगा और बादशाह ने न केवल उनकी सजा माफ़ कर दी, बल्कि आगे से उन्हें किसी प्रकार लगान देने से भी मुक्त कर दिया.

इसलिए होती है चौरचन पूजा

अकर(टैक्स फ्री) राज लेकर हेमांगद ठाकुर जब मिथिला आये तो रानी हेमलता ने कहा कि मिथिला का चांद आज कलंकमुक्त हो गये हैं, हम उनका दर्शन और पूजन करेंगे. रानी हेमलता के पूजन की बात जन जन तक पहुंची. लोगों ने भी चंद्र पूजा की इच्छा व्यक्त की. मिथिला के पंडितों से राय विचार के उपरांत राजा हेमांगद ठाकुर ने इसे लोकपर्व का दर्जा दे दिया. इस प्रकार मिथिला के लोगों ने कलंकमुक्ति की कामना को लेकर चतुर्थी चन्द्र की पूजा प्रारम्भ की. हर साल इस दिन मिथिला के लोग शाम को अपने सुविधानुसार घर के आँगन या छत पर चिकनी मिट्टी या गाय के गोबर से नीप कर पीठार से अरिपन देते हैं. पूरी-पकवान, फल, मिठाई, दही इत्यादि को अरिपन पर सजाया जाता है और हाथ में उठकर चंद्रमा का दर्शन कर उन्हें भोग लगाया जाता है.

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हर घर में पकवान की व्यवस्था

चौरचन के दिन हर मैथिल के लिए पकवान खाना अनिवार्य है. रानी हेमलता ने चौरचन पर हर घर पकवान उपलब्ध हो इसके लिए लोगों ने पकवान बनाने के साथ ही पकवान बांटने की भी अपील की थी, जिससे कोई पकवान खाने से वंचित न रह सके. यह परंपरा आज भी कायम है. इस दिन लोग एक दूसरे को पकवान उपहार स्वरूप देते हैं.

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