कम खर्च में सस्ते मजदूर की चाहत में बाल श्रम को लेकर बच्चों की तस्करी अभी रुकी नहीं है. राज्य के कई जिले अभी ऐसे हैं जहां काफी संख्या में बच्चों को बाल श्रम के लिए अन्य राज्यों में भेजा जा रहा है. पिछले वर्ष लॉकडाउन के बाद कई जिलों से बसों में भर कर बच्चों को राजस्थान, दिल्ली के आसपास के क्षेत्र, महाराष्ट्र आदि अन्य राज्यों में भेजने की खबर है.
अब उन राज्यों की पुलिस की मदद से ऐसे बच्चों की बरामदगी की कोशिशें हो रही हैं. पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक इस वर्ष जनवरी से लेकर अब 106 बच्चों को रेस्क्यू किया गया है, जिनमें अधिकांश राजस्थान के जयपुर से हैं. जिन्हें अब भी बिहार में अपने घर आने का इंतजार है. रिपोर्ट के अनुसार गया, समस्तीपुर, नालंदा, सीतामढ़ी आदि जिलों से अपेक्षाकृत अधिक बच्चे बाहर जा रहे हैं.
जनवरी से अब तक विभिन्न राज्यों से बिहार के बच्चों की बरामदगी की जा रही है. इसमें सबसे अधिक गया के 33, सीतामढ़ी में 15, समस्तीपुर के आठ, नालंदा के 11, वैशाली के एक, नवादा के एक, दरभंगा के तीन, सहरसा के एक, मुजफ्फरपुर के तीन, मधुबनी के तीन और जहानाबाद के नौ बच्चों के अलावा 16 और बच्चे विभिन्न जिलों के हैं. जिनका रेस्क्यू किया गया है. मगर, कोरोना की दूसरी लहर व लॉकडाउन के कारण अभी तक उनकी वापसी बिहार नहीं हो सकी है.
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आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2010 से लेकर वर्ष 2020 के दिसंबर तक 428 नाबालिग लड़कियों का रेस्क्यू किया जा सकता, जबकि इतने वर्षों में रेस्क्यू होने वाले नाबालिग लड़कों की संख्या लगभग पांच गुना अधिक 2342 है. हालांकि, बीते वर्ष दिसंबर के बात करें तो पिछले अन्य वर्षों से पिछले वर्ष रेस्क्यू होने की संख्या घटी है.
वर्ष – रेस्क्यू लड़की – रेस्क्यू लड़के
2015 – 34 – 193
2016 – 15 – 183
2017 -35 – 379
2018 – 10 – 529
2019 – 33 – 261
2020 – 35 – 77
बीते तीन वर्षों में केवल जयपुर व आसपास के क्षेत्रों से ही गया जिले के 229 बच्चों को रेस्क्यू कर घर वापस लाया गया है. इसके बाद समस्तीपुर जिले के 158, अररिया जिले के तीन, अरवल के दो, औरंगाबाद के दो, बेगूसराय के 35, दरभंगा के 53, पूर्वी चंपारण के चार, गोपालगंज के पांच, जहानाबाद के 40, कैमूर के सात, किशनगंज के तीन, कटिहार के 51, मधुबनी के 36, मुजफ्फरपुर के 96, नालंदा के 40, नवादा के 45, पटना के 36, पूर्णिया के नौ, रोहतास व सहरसा के चार-चार, सीतामढ़ी के 11 और वैशाली के 48 बच्चों को रेस्क्यू कर वापस लाया गया है.
बाल श्रम के बच्चों के रेस्क्यू व पुनर्वास काम से जुड़े सुरेश कुमार बताते हैं कि कई विशेष उद्योगों में बच्चों की मांग अधिक होती है. चूड़ी फैक्टरी, कपास तोड़ने के काम, पटाखा बनाने जैसे कई काम हैं जिनमें छोटी उंगलियां विशेष रूप से अच्छा काम करती है.
Posted By: Thakur Shaktilochan