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पटना की आबोहवा मेहमान परिंदों को भायी, सर्दी शुरू होते राजधानी पटना पहुंचने लगे प्रवासी पक्षी

पटना का ‘राजधानी जलाशय’, गंगा का किनारा, पटना सिटी का जल्ला क्षेत्र और दानापुर के आर्मी कैंट का इलाका ‘प्रवासी पक्षियों’ का पसंदीदा जगह है. ठंड का मौसम शुरू होते ही प्रवासी पक्षियों का कलरव यहां गूंजने लगता है. यह पटना के स्थानीय लोगों के लिए काफी सुखद अनुभव होता है.

जूही स्मिता,पटना: विदेशी मेहमानों की अठखेलियां और उनका कलरव राजधानी पटना, पटना सिटी और दानापुर के इलाके में गूंजने लगी है. ये विदेशी पक्षी अब मार्च तक इन इलाकों में नजर आयेंगे. इनके यहां आने की मुख्य वजह हैं, इस सीजन में मिलने वाला पर्याप्त मात्रा में भोजन और वातावरण इनके अनुकूल होता है. पटना के सचिवालय परिसर में 10 एकड़ से ज्यादा में फैला राजधानी जलाशय इन दिनों देशी-विदेशी पक्षियों के आगमन से गुलजार हो गया है. चारों तरफ प्राकृतिक आवास में पेड़-पौधों से घिरे राजधानी जलाशय में इन मेहमानों को नजदीक से देखने का मजा ही कुछ और है. यहां अब तक कई प्रजाति के देसी-विदेशी पक्षी पहुंच चुके हैं.

ऐसे पटना पहुंचते हैं प्रवासी पक्षी

आप सभी के मन में एक सवाल जरूर आता होगा कि हर साल ये पक्षियां हजारों मील का सफर तय कर आखिर इन इलाकों तक कैसे पहुंच जाते हैं? ये अपना रास्ता क्यों नहीं भटकते? इसका जवाब है कि वे ‘फ्लाइवेज’ के जरिये यहां पहुंचते हैं. इसके बारे में बर्ड एक्सपर्ट अरविंद मिश्रा बताते हैं, जिस तरह से विमान का अपना एक रूट होता है, ठीक वैसे ही अलग-अलग देशों में रहने वाले बर्ड का भी एक तय रूट होता है, जिसे ‘फ्लाइवेज रूट’ कहते हैं, वे इसी के सहारे यहां पहुंचते हैं. कुल मिलाकर नौ फ्लाइवेज रूट हैं, जिनमें मुख्य तौर पर सेंट्रल एशियन फ्लाइवेज रूट का इस्तेमाल पक्षियां ज्यादा करती हैं. बिहार में 15-20 देशों की प्रवासी पक्षियां आती हैं. इनमें कई देशी पक्षियां भी शामिल हैं.

20 से ज्यादा देशी-विदेशी प्रजातियां हैं मौजूद

सचिवालय परिसर में 10 एकड़ से ज्यादा में फैले राजधानी जलाशय में देशी-विदेशी मेहमान नजर आने लगे हैं. इस जलाशय में एशिया, इंडोनेशिया, यूरोप, नॉर्थ अमेरिका और नॉर्थ अफ्रीका की प्रवासी पक्षी गैडवॉल, ऑस्ट्रेलियन कूट या कॉमन कूट भी पहुंच चुके हैं. साउथ अफ्रीका, भारत, बांगलादेश, आस्ट्रलेशिया में पायी जाने वाली गेरगेनी, यूरोसाइबेरिया की फेरोजिनस डक या वाइट आइड पोकार्ड समेत जलाशय में देशी और विदेशी पक्षियों के 20 से ज्यादा जोड़े देखे जा चुके हैं. वहीं 4700 से अधिक विभिन्न प्रजातियों की पक्षी आ चुके हैं.

तीन हजार किमी दूर से आते हैं ये पक्षी

विशेषज्ञों के मुताबिक जलाशय में 50% पक्षी विदेशों ये आये हैं. वहीं 50 फीसदी बिहार के ही हैं. ग्रीनिश वार्बलर करीब तीन हजार किमी की दूरी तय कर पटना पहुंची हैं. यह पक्षी मध्य एशिया, कजाकिस्तान, मंगोलिया और अफगानिस्तान को पार कर भारत आती हैं. यह हमेशा झुंड में रहती हैं. प्रवासी पक्षी किसी खास जगह पर अनुकूल मौसम और भोजन की तलाश में आते हैं.

ये पक्षियां पहुंची हैं राजधानी जलाशय

गैडवॉल, कॉमन कूट, गैरगेनी, व्हाइट आइड पोकार्ड, ब्लैकबी हॉर्न, ब्राउन विंग्ड जकाना, लेसर व्हिसलिंग डक, कॉमन मूर हेन, व्हाइट ब्रेस्टेड वॉटर हेन, लिटल ग्रीब, कॉटन टील बर्ड, जंगल बैबलर,एशियन कोयल, व्हाइट ब्रेस्टेड किंगफिशर, रफस ट्रीपाइ, ब्लैक काइट, पॉन्ड हिरोन, कैटल इगरेट, साउंड ऑफ वार्बलर, लिटल कार्मोरेंट

विदेशी पक्षियों का झुंड जलाशय में आने लगा है

पटना पार्क के डीएफओ शशिकांत कुमार ने कहा कि राजधानी जलाशय में प्रवासी पक्षी के लिए प्राकृतिक निवास स्थान को नैसर्गिक रूप में रखा गया है. यहां आने वाली पक्षियों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ उनके भोजन के लिए मछली, पानी में उगने वाले पौधे और मुलायम गीली घास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. ठंड के आते ही विदेशी पक्षियों का झुंड जलाशय में आने लगे हैं. इसमें अब तक 20-25 जोड़े देशी-विदेशी पक्षी के आ चुके हैं.

हर साल लाखों की संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं 

बिहार के बर्ड एक्सपर्ट अरविंद मिश्रा बताते हैं कि हर साल लाखों की संख्या में बिहार में प्रवासी पक्षी आती हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि वे जिन देशों में प्रवास करती है वहां इस वक्त काफी ज्यादा ठंड और बर्फ पड़ती है. जिसकी वजह से उनके रहने के साथ खाने की समस्या उत्पन्न होती है. ऐसे में यह पक्षी दूसरे देश में अनुकूल वातावरण में रहने के लिए हजारों मील का सफर तय करते हैं. तीन रास्तों से यह पक्षी मुख्य तौर पर आते हैं. ऑस्ट्रेलियाई क्षेत्रों से इस्ट ऑस्ट्रेलिया फ्लाइवेज, अफ्रीकी क्षेत्र से वेस्ट अफ्रीकन फ्लाइवेज और सबसे ज्यादा सेंट्रल एशियन फ्लाइवेज से पक्षी आते हैं. मार्च तक आप इन पक्षियों को देख सकते हैं.

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पक्षियां उड़ने के लिए फ्लाइवेज का इस्तेमाल करती हैं

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के लाइफ मेंबर नवीन कुमार का कहना है कि पक्षियां उड़ने के लिए फ्लाइवेज का इस्तेमाल करती हैं. कुल 9 फ्लाईवेज है, जिसकी मदद से 30 से ज्यादा देशों की पक्षियां इसका इस्तेमाल करती हैं. वहीं बिहार में आपको 10-15 देशों की प्रवासी पक्षियां देखने को मिलती है. आज से 15 साल पहले कई जगहों पर जहां पहले यह पक्षियां आती थी उन जगहों पर लोग रहने लगे हैं.एक और बात मैं बताना चाहता हूं कि लोगों में यह भ्रांति हैं कि दानापुर कैंटोनमेंट में जो पक्षियां वे प्रवासी पक्षियां है. ऐसा नहीं है. इनका नाम एशियन ओपन बिल स्टोर्क है जो कि भारत में पायी जाती हैं और यही की रहने वाली है.

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