हाइकोर्ट : यात्री को तभी मुआवजा जब उसके पास होगा टिकट
पटना हाइकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि यात्रा के दौरान चलती ट्रेन से किसी भी व्यक्ति के गिर जाने पर वह मुआवजा का तभी हकदार होगा,जब उसके पास यात्रा करने का वैद्य ट्रेन टिकट होगा. ट्रेन का टिकट नहीं रहने पर रेलवे उसे या उसके परिवार वालों को मुआवजा का भुगतान नहीं कर सकता.
मोकामा में स्पेशल ट्रेन से गिर जाने के मामले में दायर मुकदमे में कोर्ट का आया फैसला विधि संवाददाता,पटना पटना हाइकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि यात्रा के दौरान चलती ट्रेन से किसी भी व्यक्ति के गिर जाने पर वह मुआवजा का तभी हकदार होगा,जब उसके पास यात्रा करने का वैद्य ट्रेन टिकट होगा. ट्रेन का टिकट नहीं रहने पर रेलवे उसे या उसके परिवार वालों को मुआवजा का भुगतान नहीं कर सकता. हाइकोर्ट ने स्पेशल ट्रेन से यात्रा कर रहे एक व्यक्ति के मोकामा में गिर जाने के मामले में पीड़ित परिवार के सदस्यों की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया. न्यायमूर्ति नवनीत कुमार पांडेय की एकलपीठ ने इस मामले को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला दिया. क्या था मामला 19 मई, 2002 को याचिकाकर्ता का पति समर स्पेशल ट्रेन में जा रहा था कि रास्ते में चलती ट्रेन से मोकामा रेलवे स्टेशन पर गिर गया. उसे घायल स्थिति में इलाज के लिए पीएमसीएच भेजा गया और इलाज के क्रम में उसकी मौत हो गयी. पत्नी ने मुआवजे के लिए रेलवे दावा न्यायाधिकरण में आवेदन दे ब्याज के साथ मुआवजा राशि देने का गुहार लगाई. चूंकी उसके पति की ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी.पूर्व मध्य रेलवे के महाप्रबंधक ने कोर्ट में अपना लिखित बयान दायर कर कहा कि मृतक वास्तविक यात्री नहीं था क्योंकि उसके पास से रेल टिकट नहीं मिला था. न्यायाधिकरण ने मृतक को वास्तविक यात्री नहीं मान याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया . रेलवे दावा न्यायाधिकरण के आदेश की वैधता को हाइकोर्ट में चुनौती दी गयी . कोर्ट को बताया गया कि मुआवजा राशि के लिए रेलवे की ओर से दावा आवेदन का एक मुद्रित प्रोफाॅर्मा हैं जिसके कॉलम नंबर सात में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि टिकट खो गया था , लेकिन बाद में टिकट को प्रदर्शित किया गया. यही नहीं रेलवे की ओर से टिकट की वास्तविकता या प्रामाणिकता के बारे में कोई विरोध नहीं किया गया. मृतक के वास्तविक होने की सत्यता केवल कॉलम नंबर सात की प्रविष्टि के कारण यात्री पर अविश्वास नहीं किया जा सकता है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि टिकट खो गया है. रेलवे की ओर से इस बिंदु पर कोई जिरह नहीं किया गया. ऐसे में मृतक प्रामाणिक यात्री था को खारिज नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने रेलवे दावा न्यायाधिकरण के आदेश दिनांक तीन अक्तूबर, 2013 को रद्द करते हुए रेलवे को दो माह के भीतर मुआवजा राशि का भुगतान छह प्रतिशत प्रतिवर्ष ब्याज की दर से चार लाख रुपये करने का आदेश रेलवे को दिया.
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