पटना : बिहार विधान परिषद में सदस्य व कांग्रेस नेता प्रेमचंद्र मिश्रा ने भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी और सूचना जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार के विधान परिषद की सदस्यता का कार्यकाल खत्म होने पर भी मंत्री बने रहने पर हैरानी जतायी है. साथ ही मंत्री पद पर बने रहने को अनैतिक औेर संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत बताया है.
प्रेमचंद्र मिश्रा ने कहा है कि यह सही है कि मुख्यमंत्री किसी भी सदन के सदस्य ना रहने के बावजूद किसी को भी मंत्री बना सकते हैं. उसे मंत्री पद की शपथ के छह माह के अंदर सदन का सदस्य होना अनिवार्य होता है, लेकिन अशोक चौधरी और नीरज कुमार कोई नये मंत्री नहीं, बल्कि मंत्री पद पर रहते हुए बतौर विधान परिषद सदस्य उनका कार्यकाल छह मई को समाप्त हो गया. अब वे किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहे. अतः उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देकर नैतिक और संवैधानिक परंपरा का पालन करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि दोनों मंत्रियों के साथ बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सभापति हारून रशीद का भी कार्यकाल पूरा हुआ है. उन्होंने परिषद के सभापति पद का त्याग कर दिया है. मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है कि बिना किसी सदन के सदस्य को मंत्री बना सकते हैं. अगर चाहे तो अशोक चौधरी और नीरज कुमार को आगे भी मंत्रिमंडल में रख सकते हैं. लेकिन, इसके लिए उन्हें दोनों मंत्रियों का त्यागपत्र लेकर पुनः उनका शपथ ग्रहण कराना उचित और संविधान के अनुरूप होगा.
उन्होंने राज्यपाल और न्यायविदों का ध्यान आकृष्ट कराते हुए आग्रह किया है कि उपरोक्त मंत्रियों के संबंध में कानून सम्मत व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक प्रबंध करने का आग्रह किया है. मालूम हो कि बिहार विधान परिषद के उपसभापति सह कार्यकारी सभापति रहे हारून रशीद, भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी, सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा सहित 17 सदस्यों का छह वर्षीय कार्यकाल बुधवार को समाप्त हो गया था.
जेडीयू के वरिष्ठ नेता और राज्य के सूचना एवं जनसपंर्क मंत्री नीरज कुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है कि किसी सदन के सदस्य नहीं होते हुए भी कोई व्यक्ति छह माह तक मंत्री पद पर कायम रह सकता है. उन्होंने कांग्रेस एमएलसी प्रेमचंद्र मिश्रा पर पलटवार करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 164 (4) में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जो विधानमंडल का सदस्य नहीं रहने के बावजूद छह माह तक मंत्री पद पर कायम रह सकता है. उन्हें छह माह के अंदर विधान मंडल का सदस्य बनना पड़ेगा.
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने 1971 में हरशरण वर्मा बनाम त्रिभुवन नारायण सिंह के मामले में 16 मार्च, 1971 को ऐसी ही व्यवस्था दी है. यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह के मामले में कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि कोई भी व्यक्ति विधान मंडल का सदस्य नहीं रहते हुए मंत्री पद पर रह सकता है.
मंत्री नीरज ने कांग्रेस नेता को सलाह देते हुए कहा कि सजायाफ्ता कैदी नंबर 3351 एवं दागी को अपना नेता माननेवाले वो नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं. नीरज कुमार ने कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम, कोलगेट घोटाला जैसे भ्रष्टाचार के मामले में जिस पार्टी के दामन पर अनगिनत दाग हों, वैसे नेता को संविधान का अनुच्छेद एवं न्यायिक निर्णय का अवलोकन करना चाहिए, ना की ज्ञान का आतंक फैलाना चाहिए.