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14 साल से केस लड़ रहे कांस्टेबल ने हाईकोर्ट में आत्महत्या करने की कही बात, …जानें मामला?

पटना : बिहार के वरीय पुलिस पदाधिकारी हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं और उधर आदेश पालन कराने के लिए दायर याचिका पर हाईकोर्ट सुनवाई नहीं कर रही है. यह दुर्भाग्यपूर्ण आपबीती उस कांस्टेबल की है, जिन्होंने पटना हाईकोर्ट में 2003 में अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका दायर की थी.

पटना : बिहार के वरीय पुलिस पदाधिकारी हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं और उधर आदेश पालन कराने के लिए दायर याचिका पर हाईकोर्ट सुनवाई नहीं कर रही है. यह दुर्भाग्यपूर्ण आपबीती उस कांस्टेबल की है, जिन्होंने पटना हाईकोर्ट में 2003 में अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका दायर की थी.

हाईकोर्ट ने 19 अप्रैल, 2019 में याचिकाकर्ता को वेतन सहित सभी प्रकार की सुविधाएं देते हुए बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने को लेकर कांस्टेबल ने संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की है. लेकिन, सुनवाई नहीं हो रही है. आर्थिक रूप से बेहद कमजोर कॉन्स्टेबल ने अब पटना हाईकोर्ट परिसर में ही आत्महत्या करने की बात कही है.

यह पीड़ा छपरा के दाउदनगर में रहनेवाले नाग नारायण राय की है. उसने विज्ञापन के आधार पर 1989 में फॉर्म भरा और 19 जून, 1990 को वह सफल भी घोषित हो गया. लेकिन, दुर्भाग्य से उच्च अधिकारियों ने 24 अप्रैल, 2003 को पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया. बाद में 17 जुलाई 2003 को नौकरी से भी हटा दिया.

अपनी बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की. उसकी याचिका पर लंबे समय बाद सुनवाई हुई. आखिरकार हाईकोर्ट ने 19 अप्रैल, 2019 को याचिका को स्वीकार कर वरीय पुलिस पदाधिकारी से कहा कि कॉन्स्टेबल को अवैध तरीका से हटाया गया है, इसलिए कॉन्स्टेबल की जब से नियुक्ति हुई है, तब से उसे वेतन और अन्य सुविधाएं भी दिय जायें.

लेकिन, अधिकारियों ने हाईकोर्ट की बात नहीं मानी. तत्पश्चात अपने मामले को लेकर भागदौड़ कर रहे याचिकाकर्ता ने कहा कि वह बेहद निर्धन है. सिर्फ ढाई कट्ठा जमीन उसके हिस्से में आयी थी, उसमें से एक कट्ठा जमीन की बिक्री भी हो गयी. पूरे परिवार का पालन करना कठिन हो गया है.

इतना ही नहीं उसे पूरे परिवार के आठ सदस्यों का भी पालन करना पड़ता है. ऐसी हालत में गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी. आदेश का पालन कराने के लिए सात फरवरी को अवमानना याचिका भी दायर की गयी थी. लेकिन, मामले की सुनवाई नहीं हो पा रही है. अब उसके पास मरने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. इसलिए बेहतर यही होगा कि हाईकोर्ट में आकर ही आत्महत्या कर लूं.

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