हिमांशु देव, पटना : उपभोक्ताओं के हितों में संरक्षण के लिए बने आयोग को खुद संरक्षण की दरकार है. उपभोक्ताओं के अधिकार के लिए कई अधिनियम बढ़ाये गये, लेकिन लोगों के अधिकार के लिए जमीनी स्तर पर कोई कदम नहीं उठाये जा रहे हैं. आलम यह है कि करीब 15 साल पहले दर्ज किये गये कई मामले अब भी लंबित हैं. सैकड़ों उपभोक्ता सुनवाई के लिए तारीख-दर-तारीख आयोग की चौखट पर दस्तक दे रहे हैं. साल 2024 में कई ऐसे मामलों में सुनवाई हुई, जो करीब 20 साल पहले दर्ज कराया गया था. अधिवक्ता बताते हैं कि कुछ तो ऐसे मामलों में सुनवाई हो रही है, जिसके शिकायतकर्ता ही नहीं मिलते हैं. अब तक करीब 4800 मामले लंबित हैं.
पटना में कम-से-कम तीन बेंच की जरूरत :
लंबित केस की बढ़ती संख्या की वजह संसाधन का अभाव भी है. पटना में आयोग में एक बेंच गठित है. इसके अध्यक्ष भी अतिरिक्त प्रभार में हैं. प्रभारी अध्यक्ष प्रेम रंजन मिश्र जहानाबाद के भी अध्यक्ष हैं. पटना में तीन दिन बैठते हैं. पटना बेंच में एक महिला सदस्य का पद रिक्त है. यहां पुरुष सदस्य के पद पर रजनीश कुमार योगदान दे रहे हैं. अधिनियम के अनुसार 1500 केस की सुनवाई के लिए एक बेंच होनी चाहिए. लिहाजा पटना में लंबित मामलों के अनुसार कम-से-कम तीन बेंच की आवश्यकता है. नियमानुसार राज्य सरकार केस की संख्या देखते हुए एक से अधिक जिला आयोग का गठन कर सकती है. इसके अलावा यहां एक भी स्टेनोग्राफर हैं. मुकदमों की सुनवाई के बाद ऑर्डर लिखने वाला भी कोई नहीं है.सात माह में 303 मामलों की ही सुनवाई :
इस साल जनवरी से अब तक 303 मामलों की ही सुनवाई हो सकी है, जबकि हर कार्यदिवस पर 50-60 मामलों की सुनवाई होती है. इनमें सबसे ज्यादा क्रिप्टो करेंसी, बैंकिंग, बीमा, पोस्टल, मेडिकल की शिकायतें रहती हैं. एक तारीख के बाद आयोग में दूसरी तारीख के लिए कम-से-कम चार माह लग जाते हैं. कई दिन चक्कर लगाने के बाद भी तारीख देकर दूसरी तिथियों पर बुलाया जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है