जूही स्मिता,पटना: जहां एक ओर कोरोना संक्रमण रूकने का नाम नहीं ले रही है वहीं दूसरी ओर इस संक्रमण के खिलाफ जंग लड़ रहे या जीत चुके मरीजों को बेहतर मेंटल हेल्थ के लिए काउंसेलिंग का सहारा लेना पड़ रहा है. इसका मुख्य कारण यह है कि जो मरीज हॉस्पिटल में है वहां उनके आस-पास कोरोना संक्रमित मरीज है और परिस्थिति निरंतर बदलती रहती है ऐसे में मेंटल स्टेबिलिटी का ना होना आम बात है. वहीं घर में आइसोलेशन में रह रहे लोग भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं. ऐसे में काउंसेलर्स की मदद से वे ना सिर्फ मेंटली फिट हो रहे बल्कि अपने अंदर साकारात्मक उर्जा का संचार भी कर रहे हैं.
पहला- जिंदगी को लेकर अनिश्चिता?
दूसरा- ब्रेन फोग या फिर मेमोरी लॉस की शिकायत होना?
तीसरा- पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का होना?
क्लिनिकल साइकोलॉडिस्ट रेखा कुमारी बताती हैं कि ज्यादातर मरीज इन तीन सवालों को ज्यादा सोचकर परेशान हो जाते हैं. खासकर उम्र दराज लोगों में डर और अकेलापन ज्यादा हावी हो रहा है. जिन्हें जिंदगी को लेकर अनिश्चिता होती है हम उन्हें आत्मनिरिक्षण करने को कहते हैं. इससे उनके अंदर का आत्म विश्वास बना रहता है और वे साकारात्मक सोच को ओर अग्रसर होते हैं. जिन मरीजों को ब्रेन फोग यानी कि मेमोरी लॉस की शिकायत होती है हम उन्हें मेडिटेशन, एक्सरसाइज और इको थेरेपी से मदद करते हैं. इको थेरेपी में हम नेचर से कनेक्ट होने को कहते हैं यानी कि अपना कुछ समय प्रकृति के साथ बिताएं इससे आपके अंदर पॉजिटिव उर्जा का संचार होता है. आप सुबह में मेडिटेशन, अलोम-विलोम, भ्रामरी और कपाल-भारती कर सकते हैं. पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर में मरीजों को डिप्रेशन, अकेलापन, नकारात्मकता आदि होती है. ऐसे में मरीजों को कोगनिटिव बिहेवियर थेरेपी दी जाती है जिसमें उन्हें अपने भावनाओं को साकारात्मक रखने को लेकर बताया जाता है. इसमें इको थेरेपी भी काफी काम करती है. पांच से सात सेशन में मरीज के मेंटल स्टेबिलिटी नॉर्मल हो जाती हैं और जल्द रिकवर हो जाते हैं.
Also Read: बिहार में जिनके पास नहीं है कोई पहचान-पत्र, उन्हें भी लगेगा कोरोना का टीका, जानें सरकार क्या कर रही व्यवस्था
मोनवैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार बताते हैं कि अभी कोरोना मरीजों को लगातार काउंसेलिंग की जा रही है. ज्यादातर मामलों में उनका मेंटल हेल्थ काफी ज्यादा प्रभावित रहता है. ऐसे में हम उन्हें रिलैक्सेशन थेरेपी देते हैं जिसमें माइंडफूलनेस, प्राणायाम, योगा आदि शामिल हैं. हम कोशिश करते हैं कि मरीज अपने अंदर उत्पन्न हो रहे नकारात्मक और डर की भावना को काबू कर उन्हें रोके. इसके लिए कोगनिटिव बिहेवियर थेरेपी के जरिये हम उनके विचारों को बदलने की कोशिश करते हैं जिसमें की सृजनात्मक एक्टिविटी भी शामिल होती है. पांच से आठ दिनों में मरीज साकारात्मक उर्जा से भर जाता है. बस सोच को सही दिशा देने की जरूरत है.
कंकड़बाग के 55 वर्षीय राधेश्याम को कोरोना हो गया.समय रहते परिवावालों ने सही खान-पान और उपचार की मदद से ठीक हो गये लेकिन इन 15 दिनों में उन्हें काफी मानसिक तनाव भी रहा है. कई बार उन्हें लगा कि वे इस जंग में हार जायेंगे ऐसे में परिवारवालों ने काउंसेलर की मदद ली. काउंसेलिंग दौरान डॉक्टर ने कोगनेटिव बिहेवियर थेरेपी के साथ योगा और मेडिटेशन कराया. नाकारात्मक भावनाओं को सकारात्मकता में बदलने को लेकर कई एक्टिविटी भी करायी जिसके बाद अभी वे काफी बेहतर महसूस कर रहे हैं.
पाटलिपुत्र कॉलोनी के रहने वाले ओम ने जब महससू किया कि उनमें कोरोना के लक्षण है तो खुद को आइसोलेट कर लिया. शुरुआत के पांच से सात दिन ठीक रहे लेकिन धीरे-धीरे अकेलेपन की वजह से वे कई ऐसी बातों को सोचने लगे जिससे उनकी रिकवरी कम होने लगी. बड़े भाई को चिंता हुई काउंसेलर से सलाह ली. ऑनलाइन उनकी काउंसेलिंग चल रही हैं और वे अभी काफी बेहतर महसूस कर रहे हैं.
POSTED BY: Thakur Shaktilochan