राजदेव पांडेय, पटना : कोविड मरीजों के शवों को गंगा में बहाने पर लगी पाबंदी का सख्ती से पालन नहीं किया गया, तो गंगा कुछ समय के लिए बैक्टीरियल और फंगस बीमारियों का घर बन जायेगी. विज्ञानियों का मानना है कि पूरे शव का नदी में पूर्ण अपघटन आसान नहीं होता है. ऐसे में संक्रमित शरीर के तमाम अंग बैक्टीरियल और फंगस के पनपने का जरिया बन सकते हैं. जहां तक कोरोना वायरस का सवाल है, उसका संक्रमण नदी के बहाव में बिल्कुल संभव नहीं है. हालांकि अगर बहाया गया शव नदी किनारे रुके हुए पानी के संपर्क में है, तब वहां निश्चित तौर पर कोराना संक्रमण की आशंका बनी रहेगी. हालांकि जलीय जीवों में कोरोना की आशंका नगण्य है.
विज्ञानियों का मानना है कि अगर शव बहाने का सिलसिला लंबे समय तक चला, तो नदी के पर्यावरण पर घातक असर पड़ेगा. ऑक्सीजन की मात्रा घटेगी. खास तौर पर बैक्टीरियल लोड बढ़ जायेगा. मानव स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ेगा. नदी में बहाये शवों को विशेष प्रकार के कछुआ और मछलियां खाती हैं. चूंकि इन शवों में बैक्टीरियल और फंगल पनप चुके होते हैं, वह भी उनके पेट में पहुंचेंगे. चूंकि मछलियां लोगों का खाद्य स्रोत भी हैं. ऐसे में ये तत्व आदमी की थाली में भी पहुंचेंगे.
लाशों को नदी में बहाने से उसमें बैक्टीरियल लोड बढ़ जायेगा. यह गंभीर खतरा होगा. नदी के पानी का नहाने, पीने आदि में उपयोग में लाने वाले लोगों को तमाम तरह के संक्रमण हो सकते हैं. हालांकि राहत की बात है कि अपनी गंगा में मुलायम त्वचा वाले कछुए और टेंगरा, झींका जैसी मछलियां हैं, जो लाश को खा जाती हैं. बाढ़ भी आने वाली है. इससे नदी कुछ क्लीन हो जायेगी. संक्रामक शव फेंकने से बैक्टीरियल बीमारियों का खतरा तो रहेगा. किनारे रुके हुए पानी से सतर्क रहना होगा.
– प्रो आरके सिन्हा, जलीय जीव विज्ञानी (पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित)
कोरोना वायरस संक्रमित शव किनारे पर हैं, तो वहां पानी का स्पर्श भी घातक साबित हो सकता है. हालांकि लंबे समय तक कोरोना वायरस जिंदा नहीं रहेगा, क्योंकि उसके पोषण के लिए वहां कुछ नहीं मिलेगा. ऐसी स्थिति में वह अपनी संख्या नहीं बढ़ा पायेगा. अंत में खत्म हो जायेगा.
– प्रो बीरेंद्र प्रसाद, बायोटेक, पटना विश्वविद्यालय
नदी में संक्रामक शवों को फेंकना घातक है. इससे जल में ऑक्सीजन की मात्रा घट जायेगी. अगर लंबे समय तक शव फेंके जाते रहे, तो पानी के भौतिक-रासायनिक गुण जैसे पीएचमान भी बदल सकता है.
– डॉ विनायक सिंह, सदस्य इंटरनेशनल एकेडमी साइंस एंड रिसर्च एवं प्राणी विज्ञानी
POSTED BY: Thakur Shaktilochan