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अदालती आदेश का समय से पालन नहीं होने पर दायर हो रहे हैं ज्यादातर अवमानना के मामले : हाइकोर्ट

सरकारी अधिकारियों द्वारा अदालती आदेशों का पालन समय से नहीं करने पर हाइकोर्ट ने नाराजगी जतायी है.

विधि संवाददाता, पटना सरकारी अधिकारियों द्वारा अदालती आदेशों का पालन समय से नहीं करने पर हाइकोर्ट ने नाराजगी जतायी है. कोर्ट ने कहा कि यही कारण है कि हाइकोर्ट में अदालती आदेश की अवमानना के हजारों मामले दायर हो रहे हैं. न्यायाधीश पीबी बजनथ्री और न्यायाधीश आलोक कुमार पांडेय की खंडपीठ ने संजय कुमार द्वारा अदालती आदेश की अवमानना से संबंधित दायर मामले पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की .कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अदालत में उपस्थित अधिकारियों को कड़ी फटकार भी लगायी. कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में अवमानना याचिका दायर किये बिना कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं हो पा रहा है. कोर्ट ने कहा कि हमने कई मामलों में देखा है कि अवमानना याचिका के बिना इस अदालत के आदेशों को लागू नहीं किया जा रहा है. आरा मिल से संबंधित एक याचिका पर दो साल पहले दिये गये आदेश का पालन नहीं किये जाने पर यह याचिका दायर की गयी थी.जहां प्रदान की गयी समय- सीमा के लगभग दो साल बाद भी अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया था. अदालत ने अवमानना के मामले में प्रधान मुख्य वन संरक्षक एन जवाहर बाबू को अवमानना की कार्रवाई शुरू करने या जुर्माना लगाने के संबंध में स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया था.स्पष्टीकरण सुनने के बाद अदालत ने टिप्पणी की कि तलब किये जाने के बाद ही अधिकारियों ने इस मामले पर कार्रवाई की.पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वन विभाग ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता की शिकायत को दूर करने में कुछ प्रशासनिक कठिनाइयां थीं, जिसके कारण और विलंब हुआ.आदेश का अनुपालन नहीं किया जाने पर कोर्ट ने संबंधित अधिकारी को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तीन हजार रुपये का भुगतान करे. कोर्ट ने अपने आदेशों का बार-बार अनुपालन न होने पर भी अपनी चिंता जताते हुए कहा कि यह अपवाद के बजाय एक नियम बन गया है कि वादी संवैधानिक कोर्ट से आदेश प्राप्त करने के बाद भी उस आदेश के असर के बारे में निश्चित नहीं होता है कि वास्तविक रूप में उसे राहत मिलेगी या नहीं. कोर्ट ने इस पर निराशा व्यक्त की कि प्रत्येक वादी को विभिन्न परिस्थितियों में एक ही कारण से बार-बार अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया जाता है. कोर्ट ने कुछ अधिकारियों के असंवेदनशील रवैये की आलोचना भी की जिसने अवमानना की गंभीर संवैधानिक शक्ति को कम कर दिया था. कोर्ट ने टिप्पणी की कि अवमानना की याचिका दायर होने तक वे सचेत नहीं होते हैं . हाइकोर्ट द्वारा जब अवमानना के मामले में उन्हें नोटिस भेजा जाता है, तो उनके द्वारा यह बताया जाता है कि उन्होंने आदेश के खिलाफ अपील दायर की है.

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