वर्मीकंपोस्ट से गोरखमुंडी की खेती करना सबसे कारगर, स्टीम कटिंग व टिश्यू कल्चर से भी उगा सकेंगे पौधे

रिसर्च स्कॉलर गौरव कुमार पंडित का स्फेरैंथस इंडिकस (गोरखमुंडी) को लेकर किये गये शोध जर्नल ऑफ एडवांस साइंटिफिक रिसर्च (जेएएसआर) में प्रकाशित

By Prabhat Khabar News Desk | December 12, 2024 1:56 AM

-पटना विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के रिसर्च स्कॉलर का शोध जेएएसआर में प्रकाशित

पटना.

पटना विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के रिसर्च स्कॉलर गौरव कुमार पंडित का स्फेरैंथस इंडिकस (गोरखमुंडी) को लेकर किये गये शोध जर्नल ऑफ एडवांस साइंटिफिक रिसर्च (जेएएसआर) में प्रकाशित हुआ है. वहीं, कोरोना से संबंधित शोध पर इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल्स साइंसेज एंड ड्रग रिसर्च व टिश्यू कल्चर एवं वर्मीकंपोस्ट से संबंधित शोध करंट एग्रीकल्चर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित होने वाला है. गौरव बताते हैं कि उन्होंने चार साल तक गोरखमुंडी पर शोध किया है, जिसमें सबसे पहले कोकोपीट, वर्मीकंपोस्ट व सामान्य मिट्टी में लगाया. इसमें वर्मीकंपोस्ट का रिजल्ट अच्छा रहा. इसके बाद हार्मोनल ट्रीटमेंट की मदद से टिश्यू कल्चर में पौधे को तैयार किया. इसकी पुष्टि दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय के लैब में कराया. इसके अलावे हैदराबाद विश्वविद्यालय के लैब में भी टेस्ट के लिए भेजा, जहां से पॉजिटिव रिस्पांस मिला.

इसकी खेती बहुत जरूरी

गौरव बताते हैं कि इस पौधे के औषधीय गुण को देखते हुए इसकी खेती बहुत जरूरी है. इसकी खेती कर आम आदमी अच्छी कमाई भी कर सकते हैं. क्योंकि, बाजार में अभी करीब 40 से अधिक इसके पैक्ड सामान उपलब्ध हैं. इसकी डिमांड इतनी है कि ध्यान नहीं दिया जाये, तो यह विलुप्त हो सकता है. वे कहते हैं कि स्टीम कटिंग पर भी हमने काम किया है. यह भी संभव है. उन्होंने कहा कि साल 2009 में कोरोना के लिए इस पर रिसर्च किया गया था. इसका परीक्षण चूहों पर किया गया. वहीं, कंप्यूटर सहायता प्राप्त औषधि डिजाइन में पता चला की मानव पर भी असर होने वाला स्फेरैन्थिन मॉलिक्यूल भी पाया जाता है. इससे इंसान पर दवा की तरह असर करने में सक्षम है. साथ ही कई संक्रमणों को ठीक करने में भी कारगर साबित होगा. यह शोध गौरव ने पटना विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो डॉ मीनाक्षी सिंह के नेतृत्व में किया.

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