बिहार में दस साल में 100 गुना बढ़े साइबर अपराध, 2015 से इन मामलों में बेहद तेजी से हुई बढ़ोतरी
साइबर अपराध की प्रकृति पर नजर डालें, तो सबसे ज्यादा एटीएम या क्रेडिट कार्ड के फ्रॉड से जुड़े मामले ही हुए हैं यानी जिनमें लोगों से ठगी कर आसानी से पैसे निकाले जा सकें. अब तक दर्ज हुए कुल दो हजार 26 मामलों में एक हजार 194 मामले सिर्फ एटीएम या क्रेडिट कार्ड फ्रॉड से जुड़े हैं.
पटना. समाज में जिस तेजी से आर्थिक गतिविधियां ऑनलाइन या डिजिटल आधारित होती जा रही हैं, उसी गति से साइबर अपराध भी बढ़ रहे हैं. बिहार में ऑनलाइन लेनदेन पिछले 10 वर्षों में 15 से 20 गुना बढ़ गये हैं. इससे ज्यादा गति से साइबर अपराध के मामले 10 वर्ष में सौ गुणा बढ़ गये हैं. पूरे बिहार में 2011 में साइबर अपराध का सिर्फ एक मामला दर्ज हुआ था, जिनकी संख्या 2020 में बढ़ कर 99 हो गयी. बीच के वर्षों पर नजर डालें, तो इनकी संख्या प्रतिवर्ष 300 से ज्यादा हो गयी थी.
2015 से इन मामलों में जबर्दस्त उछाल आया और यह 202 पर पहुंच गया. इसके बाद 2017 में 335, 2018 में 282, 2019 में 344 और 2020 में 171 मामले दर्ज किये गये. कोरोना के कारण लॉकडाउन की अवधि में साइबर अपराध से जुड़े मामलों में काफी बढ़ोतरी आयी. मौजूदा वर्ष 2022 के बीते सिर्फ डेढ़ महीने में नौ मामले पूरे राज्य से सामने आये हैं. इस अपराध के 11-12 वर्षों के सफरनामा पर नजर डालें, तो 2011 से 2022 तक पर नजर डालें, तो अब तक दो हजार 26 मामले दर्ज किये जा चुके हैं. इसमें एक हजार 953 मामलों का निष्पादन या डिस्पोजल कर लिया गया है. जबकि 73 मामले पेंडिंग हैं और उनकी जांच अभी चल रही है.
सबसे ज्यादा एटीएम या क्रेडिट कार्ड फ्रॉड के मामले
साइबर अपराध की प्रकृति पर नजर डालें, तो सबसे ज्यादा एटीएम या क्रेडिट कार्ड के फ्रॉड से जुड़े मामले ही हुए हैं यानी जिनमें लोगों से ठगी कर आसानी से पैसे निकाले जा सकें. अब तक दर्ज हुए कुल दो हजार 26 मामलों में एक हजार 194 मामले सिर्फ एटीएम या क्रेडिट कार्ड फ्रॉड से जुड़े हैं, यानी करीब 51 फीसदी मामले इससे संबंधित ही हैं. इसके बाद 405 मामले वेबसाइट, ट्वीटर, यू-ट्यूब, व्हाट्स-एप, इंटरनेट कॉल समेत अन्य इंटरनेट अव्यवयों से जुड़े हुए हैं. इसी तरह फेसबुक हैकिंग या छेड़छाड़ से जुड़े 349 और 78 मामले ई-मेल से जुड़े हैं.
करोड़ों रुपये की ठगी हो चुकी साइबर मामलों में
एटीएम या क्रेडिट कार्ड से जुड़े फ्रॉड के मामले में कितने रुपये की ठगी सही रूप से हो चुकी है, इसका कोई सटीक आंकड़ा विभाग के पास नहीं है. इसमें सैकड़ों ऐसे मामले भी हैं, जिन्हें हल कर लिया गया और पीड़ित को पैसे वापस मिल गये. कुछ लोगों के आधे या लूटी गयी कुल राशि का कुछ हिस्सा ही लौट पाया. परंतु एक अनुमान के मुताबिक, औसतन एक ठगी में तीन से चार लाख रुपये की चोरी ही मान ली जाये, तो इस आधार पर 45 से 50 करोड़ रुपये शामिल हैं. साइबर चोरों ने इतने रुपये आम लोगों के चुरा लिये.
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साइबर फ्रॉड करने के कई तरीके
सबसे ज्यादा एटीएम या क्रेडिट कार्ड से जुड़े फ्रॉड की घटनाओं को अंजाम देने के लिए कई तरह से तिगड़म ठग अपनाते हैं. इसमें कार्ड की क्लोनिंग, फोन कॉल करके बैंक या अन्य किसी शॉपिंग साइट से जुड़ी कंपनी का अपने को प्रतिनिधि बताते हुए ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) पूछना या बैंक खाता या कार्ड से संबंधित पूरी जानकारी हासिल कर लेना. इन दिनों फर्जी शॉपिंग साइट या नौकरी के आवेदन से जुड़े साइट बनाकर लोगों से पैसे किसी खाते में मंगवा लेना.
एटीएम मशीन में छेड़छाड़ करके कार्ड ब्लॉक कर या पासवर्ड चोरी करके खाते से पैसे निकाल लेना. किसी दुकान या अन्य स्थान पर पेमेंट के लिए डेबिट या क्रेडिट कार्ड स्वाइप करने पर इसका पूरी जानकारी चोरी कर लेना या क्लोन तैयार कर लेना. साइबर ठगों के चालबाजियों से बचने का सबसे बेहतरीन उपाए डिजिटल जानकारी रखना या इन बातों को लेकर जागरूक रहना है.
पुलिस महकमे की व्यापक स्तर पर तैयारी जारी
साइबर अपराधी छद्म दुनिया में रहने वाले पढ़े-लिखे और बेहद शातिर होते हैं, जो दिखते नहीं हैं. इन आभाषी दुनिया के अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस महकमा ने भी इसी स्तर की तैयारी की है, जिसे दिन-ब-दिन निरंतर पुख्ता किया जा रहा है. वर्तमान में सभी जिलों में एक-एक साइबर सेल का गठन कर दिया गया है, जो पूरी तरह से काम कर रहा है. इन्हें कंप्यूटर, इंटरनेट, लैपटॉप समेत तमाम चीजों से लैस कर दिया गया है. साथ ही सभी थाना में कम से कम एक दारोगा को साइबर क्राइम से जुड़ी तमाम तथ्यों को लेकर सघन ट्रेनिंग दे दी गयी है.
थाना में इस तरह के मामले आने पर ये प्रशिक्षित दारोगा को ही केस देखने का निर्देश दिया गया है. इसके अलावा इंस्पेक्टर, डीएसपी, एसपी से लेकर ऊपर तक के सभी अधिकारियों को भी साइबर ट्रेनिंग दी गयी है. वहीं, राज्य स्तर पर आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) की देखरेख में एक विशेष साइबर यूनिट का गठन किया गया है. इसमें तकनीकी एक्सपर्ट, कंप्यूटर इंजीनियर से लेकर पूरी तरह से प्रशिक्षित कर्मियों की पूरी टीम तैयार की गयी है. ये सभी एक्सपर्ट जिलों को जटिल मामलों में समुचित मार्गदर्शन करते हैं. इनकी मदद से दर्जनों जटिल मामले भी हल किये गये हैं.