दादा की ही संपत्ति का हो रहा सौ रुपये में बंटवारा

दादा की संपत्ति को पैतृक मानते हुए इसकी रजिस्ट्री 100 रुपये का शुल्क लेकर कर देते हैं, लेकिन पिता की संपत्ति को उनके जीते जी पैतृक नहीं मानते हैं. इसे पारिवारिक बंटवारा नहीं मानते हुए इस पर सामान्य रजिस्ट्री की तरह ही शुल्क लेते हैं. इस तरह की शिकायत बड़े स्तर पर राज्य मुख्यालय में आयी है.

By Pritish Sahay | March 13, 2020 7:27 AM

कौशिक रंजन, पटना : राज्य में सबसे ज्यादा संपत्ति बंटवारे का विवाद है. इसे सुलझाने के लिए राज्य सरकार ने पारिवारिक बंटवारा कानून में अहम बदलाव करते हुए 100 रुपये के सांकेतिक शुल्क पर निबंधन या रजिस्ट्री कराने की सुविधा बहाल की है, परंतु दिसंबर, 2018 में इस कानून के लागू होने के बाद से अब तक पूरे राज्य में महज दो हजार 691 पारिवारिक बंटवारा हुए हैं, जबकि पूरे राज्य में रोजाना साढ़े चार से पांच हजार रजिस्ट्री होती है.

नइतने महत्वपूर्ण और विवादित मुद्दे पर रजिस्ट्री शुल्क इतना कम होने के बाद भी इनकी संख्या बढ़ नहीं रही है. इसका प्रमुख कारण जिला स्तरीय निबंधन कार्यालय पैतृक, पारिवारिक बंटवारा कानून की व्याख्या ही अपने ढंग से करते हैं. दादा की संपत्ति को पैतृक मानते हुए इसकी रजिस्ट्री 100 रुपये का शुल्क लेकर कर देते हैं, लेकिन पिता की संपत्ति को उनके जीते जी पैतृक नहीं मानते हैं. इसे पारिवारिक बंटवारा नहीं मानते हुए इस पर सामान्य रजिस्ट्री की तरह ही शुल्क लेते हैं. इस तरह की शिकायत बड़े स्तर पर राज्य मुख्यालय में आयी है.

पिता की संपत्ति को उनके जीते जी पैतृक नहीं मानते : इस नये नियम के तहत संपत्ति विवाद का बंटवारा नहीं होने की वजह से एक ही घर में बंटवारे की संपत्ति पर दो तरह का निबंधन शुल्क देना पड़ता है. अगर दादा की संपत्ति का पारिवारिक बंटवारा कर रहे हैं, तो 100 रुपये में ही रजिस्ट्री हो जायेगी. अगर पिता अपनी संपत्ति का बंटवारा पुत्रों या पुत्रियों के बीच करना चाहते हैं, तो निबंधन विभाग वाले इसमें इस नियम को लागू नहीं करते हैं. अगर इसमें सभी की सहमति है, फिर भी नये नियम के तहत रजिस्ट्री नहीं करते हैं.

ऐसी स्थिति में उन्हें सामान्य निबंधन शुल्क ही देना पड़ता है, जो कुल संपत्ति के बड़े हिस्से को छोड़कर शेष हिस्से का पांच प्रतिशत होता है. वहीं, अगर पिता की मृत्यु हो जाती है, तो ऐसी परिस्थिति में बंटवारा करने पर निबंधन महकमा वाले नये नियम को मान लेते हैं. इस तरह निबंधन विभाग के स्तर से इस नये नियम की उलझाने वाली व्याख्या करने के कारण इसका फायदा सभी तरह के पैतृक या पारिवारिक बंटवारे में नहीं हो रहा है.

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