जूही स्मिता,पटना पिता बच्चों के लिए सबसे पहले सुपरहीरो होते हैं. वे भले दिखते सख्त हैं, लेकिन उनका मन कोमल होता है. मां बच्चों को भावनाओं से परिचित कराती हैं तो पिता उन्हें बाहरी दुनिया का ज्ञान देते हैं. इस साल 16 जून को फादर्स डे है. सारे बच्चे इस दिन अपने पिता के लिए कुछ खास प्लान करेंगे. हमने हमेशा से देखा है कि बेटियां अपने पिता के काफी करीब होती है. शहर में कई ऐसी बेटियां है जिन्होंने अपने पिता के प्रोफेशन को अपनाया और उनका नाम रोशन कर रही हैं. इनमें से कुछ ने तो अपने पिता के कॉलेज से अपनी पढ़ाई की है. पेश है एक रिपोर्ट. पिता के प्रोफेशन को इशा ने अपनाया, पटना में हैं सीए : एक्जीविशन रोड निवासी इशा तुलसियान अपने पिता सुशील कुमार तुलसियान की तरह सीए हैं. इशा बताती हैं कि मैं बचपन से ही पापा की हर बात मानती थी. मुझे उनके काम करने का तरीका और चीजों को लेकर नजरिया काफी भाता था. यही वजह थी कि मैंने उनके प्रोफेशन को अपनाया. जैसे मेरे पिता ने मुंबई में जाकर अपनी सीए की तैयारी की और वहीं जॉब किया. मैंने भी अपनी तैयारी मुंबई से कर वहीं जॉब की. अभी पटना में कार्यरत हूं. पापा आज भी मेरे काम को मॉनिटर करते हैं और कोई परेशानी होने पर मुझे सलाह देते हैं. प्रोफेसर बनीं डॉ अमृता चौधरी के पिता हैं रोल मॉडल : मीठापुर निवासी पटना वीमेंस कॉलेज में भूगोल विभाग की एचओडी डॉ अमृता बताती हैं कि उनके पिता डॉ एसके चौधरी बिहार एग्रीकल्चर कॉलेज भागलपुर के प्रिसिंपल पद से रिटायर हुए हैं. बचपन से ही मुझे बाबा ने पढ़ाया है. उनके पढ़ाने के तरीके से मैं काफी प्रभावित हुई. ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने पीयू से मास्टर्स किया और वहीं से पीएचडी. ऐसा इसलिए किया क्योंकि मेरे बाबा ने भी पीयू से पढ़ाई के बाद वहीं से पीएचडी की थी. यह मेरे लिए उनके तरफ से एक खास तोहफा था. उनके लिए गर्व का पल तब आया जब मैंने भी उनकी तरह उन्हीं की यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल प्राप्त किया. उनकी दो सीख मेरे जीवन का हिस्सा है पहला अगर तुम सही तो दुनिया सही है. दूसरा तुममें इतना साहस होना चाहिए कि जो तुमने ठाना है उसे हर हाल में पूरा करो. मेरे पिता मेरे रोल मॉडल आज भी है. सिक्की कला में पिता की तरह राधा को भी मिला स्टेट अवार्ड : मधुबनी की रहने वाली राधा पेशे से सिक्की कला की कलाकार हैं. उन्होंने इस कला को अपने पिता चंद्र कुमार ठाकुर से सीखा है और आज कई लोगों को इस कला में प्रशिक्षण देने के साथ रोजगार से भी जोड़ रही हैं. राधा बताती हैं कि बचपन में पिता उन्हें यह कला खेल-खेल में सिखाया करते थे. वह बड़ी होकर टीचर बनना चाहती थी. फिर लगा कि टीचर बनने के बाद मैं एक ही जगह शिक्षा दे सकती हूं, लेकिन अगर इस कला से जुड़ती हूं तो मैं अपनी कला का प्रचार-प्रसार करने के साथ कई लोगों को इससे जोड़ने के साथ रोजगार भी दे सकती हूं .पापा हमेशा कहते थे कि हमारी संस्कृति हमारी पहचान है, जिसके साथ कभी समझौता नहीं करना है. मेरे पिता की तरह मुझे भी इस कला में स्टेट अवार्ड मिला है. पिता जिस कॉलेज से पढ़े, 30 साल बाद गरिमा वहीं से की थी पढ़ाई: शिवपुरी की रहने वाली गरिमा समीर अपने पिता सुनील कुमार सिंह की तरह इंजीनियर है. उन्होंने बताया कि मैंने स्कूल के दौरान मैथ और साइंस पापा से ही पढ़ा है. उनका हमेशा से कहना था जीवन में कई उतार-चढ़ाव आयेंगे, लेकिन हार नहीं मानना है. मैंने जब इंजीनियरिंग पढ़ने की इच्छा जतायी थी वह खुश हुए थे. मैंने अपनी इंजीनियरिंग उनके कॉलेज बीआइटी मेसरा रांची से किया. 30 साल के बाद जब वह मेरे साथ कॉलेज गये तो वह भावुक हो गये और कहा था कि यह उनके जीवन का सबसे बेहतरीन तोहफा यही है. पापा हैं डॉक्टर, तो शिवांगी कर रही एमबीबीएस की पढ़ाई : राजेंद्र नगर की रहने वाली शिवांगी श्रेया अभी एसवीआइएमएस- पद्मावती मेडिकल कॉलेज तिरुपति से अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैं. वह बताती हैं कि उनके पिता डॉ संतोष कुमार मिश्रा पीएमसीएच के आई विभाग में सीनियर सर्जन हैं. बचपन से ही पिता को लोगों के इलाज के साथ उनकी मदद करते हुए देखा है. 10वीं पास करने के बाद ही मेडिकल फील्ड से जुड़ने का मन बना लिया था. मुझे उनकी तरह बनना है, जो दयालु होने के साथ लोगों के लिए कार्य करते हैं.
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