नहीं रहे ‘क्षिप्रा साक्षी है’ और ‘कश्मीर की बेटी’ उपन्यास के रचयिता प्रख्यात साहित्यकार डॉ शत्रुघ्न प्रसाद
पटना : 'क्षिप्रा साक्षी है' और 'कश्मीर की बेटी' जैसे कालजयी उपन्यास के रचयिता डॉ शत्रुघ्न प्रसाद का 88 वर्ष की आयु में बुधवार को राजधानी पटना में निधन हो गया. हिंदी की ऐतिहासिक उपन्यास परंपरा के अग्रणी हस्ताक्षर डॉ शत्रुघ्न प्रसाद पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे.
पटना : ‘क्षिप्रा साक्षी है’ और ‘कश्मीर की बेटी’ जैसे कालजयी उपन्यास के रचयिता डॉ शत्रुघ्न प्रसाद का 88 वर्ष की आयु में बुधवार को राजधानी पटना में निधन हो गया. हिंदी की ऐतिहासिक उपन्यास परंपरा के अग्रणी हस्ताक्षर डॉ शत्रुघ्न प्रसाद पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे.
बिहार के सारण (छपरा) जिले में जन्मे डॉ प्रसाद पिछले 60 वर्षों से रचनात्मक साहित्य जगत में सक्रिय थे. उनकी स्नातक तक की पढ़ाई छपरा में ही हुई. छपरा के राजेंद्र कॉलेज से स्नातक करने के बाद पटना विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की. नालंदा जिले के सोहसराय स्थित किसान कॉलेज में हिंदी के प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष रहे. साहित्य में उनके रचनात्मक योगदान को देखते हुए साल 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित किया था.
उन्होंने त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘सदानीरा’ और ‘पिनाक’ का संपादन भी किया. राजधानी पटना में रहते हुए उन्होंने ‘क्षिप्रा साक्षी है’ और ‘कश्मीर की बेटी’ जैसे कालजयी उपन्यास लिखे. नालंदा, दारा शिकोह के साथ-साथ कबीर केंद्रित उपन्यास लिखे. डॉ शत्रुघ्न प्रसाद कई वर्षों तक अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे. साथ ही अनेक हिंदी सलाहाकार समितियों के सदस्य भी थे. वह केंद्रीय हिंदी संस्थान की शासी परिषद के सदस्य भी रहे.
डॉ प्रसाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाल स्वयंसेवक थे. वह संघ के दक्षिण बिहार प्रांत के संघचालक भी रह चुके थे. आपातकाल में लंबे समय तक वह जेल में रहे. 1932 में जन्मे डॉ शत्रुघ्न प्रसाद ‘कश्मीर की बेटी’ समेत कई रचनाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहे. वह अपने पीछे तीन पुत्र और तीन पुत्री समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं.