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अक्षय ऊर्जा की नयी नीति का ड्राफ्ट तैयार, कैबिनेट की मंजूरी के बाद जल्द होगा लागू

बिहार में अक्षय ऊर्जा (गैर परंपरागत बिजली) को बढ़ावा देने के लिए नयी नीति का ड्राफ्ट तैयार हो गया है. ऊर्जा विभाग की कंपनी बिहार रिन्युएबल इनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (ब्रेडा) द्वारा तैयार इस नयी नीति को जल्द ही राज्य कैबिनेट की मंजूरी के बाद अगले पांच साल के लिए लागू कर दिया जायेगा.

योजना. अगले पांच साल के लिए प्रभावी होगी नयी नीति

संवाददाता, पटना.

बिहार में अक्षय ऊर्जा (गैर परंपरागत बिजली) को बढ़ावा देने के लिए नयी नीति का ड्राफ्ट तैयार हो गया है. ऊर्जा विभाग की कंपनी बिहार रिन्युएबल इनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (ब्रेडा) द्वारा तैयार इस नयी नीति को जल्द ही राज्य कैबिनेट की मंजूरी के बाद अगले पांच साल के लिए लागू कर दिया जायेगा. ऊर्जा विभाग के अधिकारियों के मुताबिक नयी नीति में सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए सोलर परियोजना में स्टांप ड्यूटी व निबंधन शुल्क का पुनर्भुगतान व प्रतिपूर्ति की सुविधा देने की योजना है. साथ ही एक निश्चित दूरी वाले सब-स्टेशन तक बिजली ले जाने का खर्च सरकार वहन करेगी. राज्य के भीतर स्थापित परियोजनाओं के लिए क्रॉस सब्सिडी को सरचार्ज से छूट दी जा सकती है. वहीं, 33 किलोवाट या इससे कम वाली इकाइयों में संचरण-वितरण हानि की छूट दी जायेगी. विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विशेष छूट का प्रावधान होगा. राज्य में रिन्युएबल एनर्जी प्लांट की स्थापना से संबंधित प्रक्रिया को सरल बनाया जायेगा.

पहली अक्षय ऊर्जा नीति में मिला था उद्योग का दर्जा

जानकारी के मुताबिक ब्रेडा ने पहली बार वर्ष 2017 में अक्षय ऊर्जा नीति तैयार की थी. चूंकि 2022 में ही उस नीति की अवधि समाप्त हो चुकी है. अभी वैकल्पिक व्यवस्था में पुरानी नीति को ही विस्तार दे दिया गया है. उसी समय अक्षय ऊर्जा को उद्योग का दर्जा दे दिया गया था. वह नीति पांच साल के लिए प्रभावी थी. उस नीति में पांच साल में 2969 मेगावाट सौर ऊर्जा, 244 मेगावाट जैव ईंधन और 220 मेगावाट पनबिजली उत्पादन का लक्ष्य था. साथ ही सौर ऊर्जा में विदेशी कंपनियों को भी आकर्षित भी करना था. लेकिन पहली नीति में तय किये गये लक्ष्य पूरे नहीं हो सके.

उपभोग की जाने वाली कुल बिजली का 17 फीसदी अक्षय ऊर्जा होना जरूरी

केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग के नियमों के मुताबिक कुल बिजली उत्पादन का 17 फीसदी अक्षय ऊर्जा का होना जरूरी है. राज्य सरकार को रिन्युएबल परचेज ऑब्लीगेशन (आरपीओ) की बाध्यता है. ऐसा नहीं करने पर राज्य सरकार को करोड़ों रुपये हर्जाना के तौर पर विनियामक आयोग को भुगतान करना पड़ता है. इसलिए ब्रेडा की ओर से अगले पांच वर्षों के लिए ऐसी नीति तैयार की जा रही है, जिससे राज्य में अधिक से अधिक निवेश आ सके. केंद्र सरकार के पीएम सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना को देखते हुए आने वाले समय में इस क्षेत्र में काफी उम्मीदें हैं.

23 हजार करोड़ से अधिक निवेश की संभावना

अक्षय ऊर्जा में सोलर के क्षेत्र में निवेश की असीम संभावनाएं हैं. विभाग के अनुमान के मुताबिक इस क्षेत्र में 23,886 करोड़ का निवेश हो सकता है. इसके तहत सोलर मॉड्यूल में 10,558 करोड़ का निवेश हो सकता है. जबकि इन्वर्टर के क्षेत्र में 4040 करोड़, इलेक्ट्रिक केबल्स में 23 करोड़, एलआइ-बैट्री में 100 करोड़ और अन्य जरूरी उपकरणों में 5775 करोड़ का निवेश हो सकता है.

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